उत्तराखण्ड में औसतन हर 22 वें दिन भूकम्प आ रहा है। बीते तीन सालों के आंकड़ों के मुताबिक सबसे अधिक भूकम्प चमोली (14 बार) और पिथौरागढ़ (12 बार) में आए हैं।
भारतीय भूकम्प सर्वेक्षण की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक बीते तीन सालों में उत्तराखण्ड में 50 भूकम्प रिकॉर्ड किए गए हैं। साल दर साल भूकम्प के आंकड़े भी बढ़ रहे हैं। 2015 में 13, 2016 में 17 और 2017 में 18 भूकम्प दर्ज किए गए। 2018 में अब तक दो भूकम्प दर्ज किए गए हैं। तीन सालों में सबसे कम क्षमता का भूकम्प 2.9 मैग्नीट्यूट का रहा, जो चमोली जिले में आया था। इतनी कम क्षमता के भूकम्प से नुकसान नहीं होता। भूकम्प का पिछला आंकड़ा पाँच साल पहले का था। जिसके मुताबिक यह औसतन 30 दिन का था। इस अवधि में सबसे तेज भूकम्प फरवरी 2017 में रिक्टर स्केल पर 5.7 मैग्नीट्यूट क्षमता का आँका गया। इसका केंद्र रुद्रप्रयाग जनपद रहा। इसके अलावा बारत-नेपाल बॉर्डर पर पिथौरागढ़ में 5.5 और 5.2 क्षमता के कुछ अधिक क्षमता के भूकम्प दर्ज किए गए थे।
क्यों आते हैं भूकम्प
भारत में भूकम्प आने का कारण, इंडियन प्लेट का यूरेशियन प्लेट की ओर मूव करना है। हिमालय वह बिन्दु है, जहाँ हर रोज प्लेटों का ये संघर्षण होता है। इस संघर्षण से हिमालय के भीतर व ईर्द-गिर्द मेन बाउंटी थ्रस्ट व मेन सेंट्रल थ्रस्ट का निर्माण हुआ है। भारत में आने वाले लगभग सभी भूकम्प इन्हीं फॉल्ट के इर्द-गिर्द केन्द्रित रहते हैं। कमजोर स्थलों को ही फॉल्ट कहा जाता है। हिमालय के बाहर आने वाले भूकम्पों की तीव्रता कम रहती है।
भूकम्प का वर्गीकरण | |
हल्का | रिक्टर स्केल पर 4.9 मैग्नीट्यूड तक |
मॉडरेट | रिक्टर स्केल पर 5 से 6.9 मैग्नीट्यूड |
भारी | रिक्टर स्केल पर 7 से 7.9 मैग्नीट्यूड |
अति भारी | रिक्टर स्केल पर 8 या उससे अधिक |
केन्द्र
इसको एपीसेन्टर कहते हैं। भौगोलिक रूप से उस बिन्दु को केन्द्र मानते हैं, जहाँ प्रारम्भिक हलचल शुरू हुई हो। भूकम्प का फोकस, वह बिन्दु है जहाँ से भूकम्पीय लहरें पैदा होती हैं।
पूर्वानुमान
विज्ञान की तमाम प्रगति के बावजूद, अभी तक भूकम्प का पूर्वानुमान कर पाना सम्भव नहीं है। कोई भी देश भूकम्प के बारे में पहले से कुछ नहीं बता सकता। इसकी तीव्रता, गहराई व समय के बारे में नहीं जाना जा सकता।
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Post By: RuralWater