उत्तर पश्चिम भारत में भूजल 100 मीटर नीचे गिर सकता है

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उत्तर पश्चिम भारत में लगभग 100 मीटर की गहराई पर पाया जाने वाला भूजल अगले 10 वर्षों के अंदर खत्म हो जाएगा। इस क्षेत्र में हो रहे है अत्याधिक शोषण और दोहन के बारे में केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) ने अपनी एक रिपोर्ट में यह सब बताया है। इस रिपोर्ट को सीजीडब्ल्यूबी ने राज्य सरकारों के सामने प्रस्तुत किया। ये रिपोर्ट 1994 और मई 2018 के बीच दर्ज आंकड़ों पर आधारित है और यह दर्शाता है कि भूजल की निकासी, भूजल के रिचार्ज से अधिक हो रही है। इस रिपार्ट में बताया गया है कि इस क्षेत्र में वार्षिक सकल भूजल निकासी 35.78 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) है और वार्षिक रिचार्ज केवल 21.58 बीसीएम है। इस रिपोर्ट के अनुसार, ग्राउंड वाटर का जल स्तर हर वर्ष 51 सेमी. गिरता जा रहा है। इस समय, इस क्षेत्र का जल स्तर 10-65 मीटर गहरा है।

पिछले कई दशकों में, इस क्षेत्र में सूखे जैसी स्थितियों में बार-बार वृद्धि के कारण ग्राउंड वाटर से अत्याधिक निकासी की गई है। भारतीय मौसम विभाग की रिपोर्ट (2012-2017) बारिश के पैटर्न पर बताती है कि हिमाचल और उत्तराखंड में 25-40 फीसदी बारिश हुई है जबकि पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के कुछ हिस्सों में 15-20 प्रतिशत बारिश हुई है। इन राज्यों के लिए सीजीडब्ल्यूबी के द्वारा जारी ग्राउंड वाटर के आंकड़ों में प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

सीडब्ल्यूजीबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में 300 मीटर की गहराई तक सभी ग्राउंड वाटर संसाधनों की निकासी इसी दर से चलती रही तो अगले 20-25 वर्षों में ग्राउंड वाटर पूरे तरह से खत्म हो जाएगा। सीडब्ल्यूजीबी की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इन क्षेत्रों में ग्राउंड वाटर की निकासी 2013 में 149% से बढ़कर 2018 में 165% हो गई है। राष्ट्रीय स्तर पर स्थिति थोड़ी बेहतर है। 411 बीसीएम की वार्षिक ग्राउंड वाटर उपलब्धता के खिलाफ, इस साल निकासी 253 बीसीएम होने का अनुमान है।

पंजाब के जिले लुधियाना, जालंधर, कपूरथला, नवाशहर, संगरूर, पटियाला और बरनाला ग्राउंड वाटर लेवल के अत्यधिक दोहन के लिए जाना जाता है। पंजाब जल संसाधन विभाग के एक अधिकारी जिन्होंने अपनी पहचान बताने से मना किया है वे बताते हैं, ‘ये रिपोर्ट खतरनाक है और स्पष्ट रूप से कहती है कि 100 मीटर की गहराई पर पाये जाने वाले भूजल अगले 10 वर्षों में समाप्त हो जाएगा, क्योंकि अत्याधिक निकासी लगातार जारी है’।

इसी तरह हरियाणा में जिला सिरसा, यमुनानगर, करनाल, कुरूक्षेत्र, गुरूग्राम, फरीदाबाद, भिवानी, रेवाड़ी ग्राउंड वाॅटर लेवल के अत्याधिक शोषण व दोहन की सूची में सबसे ऊपर हैं। हरियाणा के कुछ क्षेत्र जैसे सिरसा में ग्राउंड वाटर लेवल की स्थिति पंजाब से भी बदतर थी। उत्तरी और पश्चिमी राजस्थान के पूरे कृषि क्षेत्र में, ग्राउंड वाटर लेवल तेजी से नीचे गिरा है और अब ये पूरा क्षेत्र बहुत विकट स्थिति में है। सीजीडब्ल्यूबी वेबसाइट के नये आंकड़ों के अनुसार, दक्षिणी राजस्थान और पूर्वी राजस्थान के कुछ हिस्सों को छोड़कर पूरे राज्य में ग्राउंड वाटर आपातकाल की स्थिति में हैं।

दिल्ली में, केवल दक्षिणी भाग का ग्राउंड वाटर लेवल खतरे में हैं। देश की राजधानी में उत्तर-पश्चिमी और पूर्वी भागों में ग्राउंड वाटर लेवल में काफी सुधार हुआ है। केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने ग्राउंड वाटर लेवल में विकट समस्या वाले जिन क्षेत्रों को चिन्ह्रित किया है उनमें से अधिकांश क्षेत्र इन्हीं चार राज्यों में से हैं। इन राज्यों में लगातार गिरते ग्राउंड वाटर लेवल से पेयजल की आपूर्ति के साथ-साथ कृषि के दस लाख से अधिक ट्यूबवेलों में पानी उपलब्ध कराना भी बड़ी समस्या है। हालांकि, हरियाणा और पंजाब में सिंचाई की सुविधा है, लेकिन राजस्थान का एक बड़ा हिस्सा अपनी जरूरतों के लिए पूरी तरह ग्राउंड वाटर पर निर्भर है।

सीजीडब्ल्यूबी के सदस्य सचिव पी नंदकुमारम ने कहा, ग्राउंड वाटर लेवल की मूल्यांकन रिपोर्ट जल संसाधन मंत्रालय को सौंप दी गई है। उन्होंने मंत्रालय द्वारा रिपोर्ट के लंबित होने की वजह को बताने से इनकार कर दिया। ‘स्थिति खराब है, लेकिन चिंताजनक नहीं है’ बोर्ड के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा। जिन्होंने यह बात अपनी पहचान उजागर न होने की शर्त पर बताई थी क्योंकि वो मीडिया में नहीं आना चाहता था। यदि हम ग्राउंड वाटर का दोहन लगातार इसी तरह से करते रहे, तो हम एक बड़ी आपदा की ओर बढ़ रहे हैं। हम जमीन से 50-60 मीटर नीचे तक जल रख सकते हैं लेकिन इसके लिए हमें कुछ नियम की जरूरत है।

हिमांशु ठक्कर जो एक आईआईटी भूतपूर्व छात्र हैं और जो एक गैर-सरकारी संगठन साउथ एशिया नेटवर्क आफ पीपल, रिवर्स एंड डैम्स चला रहे हैं वो कहते हैं, ग्राउंड वाटर पर किसानों की अधिक निर्भरता जल की कमी का प्रमुख कारण थी। हिमांशु ठक्कर आगे कहते हैं, ‘भले ही भारत में हर साल अच्छी बारिश होती है, फिर भी कई क्षेत्रों में पानी जमीन से 100 मीटर नीचे उपलब्ध है। कुछ क्षेत्रों में तो ग्राउंड वाटर का लेवल 200 मीटर से भी नीचे है। यह स्थिति स्पष्ट रूप से दिखाती है कि वर्षा के जल का समुचित उपयोग नहीं हो रहा है और ग्राउंड वाटर लेवल का घोर दुरुपयोग है, जो भारत की जल जीवन रेखा है’।

सीडब्ल्यूजीबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में 300 मीटर की गहराई तक सभी ग्राउंड वाटर संसाधनों की निकासी इसी दर से चलती रही तो अगले 20-25 वर्षों में ग्राउंड वाटर पूरे तरह से खत्म हो जाएगा। सीडब्ल्यूजीबी की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इन क्षेत्रों में ग्राउंड वाटर की निकासी 2013 में 149% से बढ़कर 2018 में 165% हो गई है। राष्ट्रीय स्तर पर स्थिति थोड़ी बेहतर है। 411 बीसीएम की वार्षिक ग्राउंड वाटर उपलब्धता के खिलाफ, इस साल निकासी 253 बीसीएम होने का अनुमान है। बोर्ड ने भारत में 30,000 स्थानों पर कुओं का अवलोकन किया है, जो एक वर्ष में चार मौसमों के लिए 16 विशेषताओं पर डेटा देते हैं। 

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