उसे हड़बड़ी थी

पिछली रात
ठीक 3.22 पर एक हादसा हुआ...
मई-जून की वो भरी-पूरी झेलम
नील-निर्मल प्रवाहों वाली वो ‘वितस्ता’
मेरे ऊपर से होकर गुजरी-पिछली रात!
लगातार आधा घंटा तक, नहीं 45 मिनट लगे!
प्रवाहित होती रही मुझ पर से
मैं लेटा रहा, निमीलित-नेत्र...
मन ही मन जागरूक, मोद-मग्न...
आशीष की मुद्रा में मेरे होंठ हिलते रहे
जी हां, मैं मगन-मन लेटा रहा उतनी देर
जी हां, झेलम को हड़बड़ी थी-
वो सिंध से मिलने जा रही थी,
मुझे झेलम पिछली रात निहाल कर गई!

1982

नागार्जुन की कविताएं, ‘प्रतिनिधि कविताएं’ : (पेपरबैक) सं. : नामवर सिंह, राजकमल प्रकाशन, दिल्ली और ‘नागार्जुन : चुनी हुई रचनाएँ,’ वाणी प्रकाशन, दिल्ली से ली गई है।

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