प्रत्येक प्रदेश को क्यों चाहिए जलनीति से अलग नदी नीति?
नीति नदी प्रवाह पर बनाये बाधों को विरोध करती है। नदी प्रवाह पर बने बांधों में जलभंडारण की बजाय आसपास मौजूद प्राकृतिक ढांचों में जलभंडारण कर सिंचाई व बिजली की आवश्यकता पूर्ति की जानी चाहिए। कम से कम पहाड़ी/पठारी नदियों के मामले में यह सहज संभव है। मल को चाहे इंसान ढोये या नाला-यह प्राकृतिक अपराध है। इसके स्थान पर कचरे को स्रोत पर शोधित किए जाने की नीति घोषित हो। कर की लालच में खड़ी की गई सीवेज प्रणाली के स्थान पर सेप्टिक टैंक की त्रिकुण्डीय प्रणाली को प्राथमिकता मिले। नदी क्या है? नदियां किसकी हैं? संवैधानिक तौर पर नदी जिंदा है या मरी हुई? किसी नदी को कब जिंदा और कब मृत माना जाये? किसी नदी में कब, कितना और कैसा पानी विद्यमान रहना ही चाहिए? कितनी और कहां तक जमीन नदी की मानी जाये? नदी भूमि का भू-उपयोग क्या हो? नदी भूमि का भू उपयोग बदलने का अधिकार होना चाहिए या नहीं? नदी भूमि, बाढ़ क्षेत्र और नदी जलग्रहण क्षेत्र में किन गतिविधियों को इजाजत हो और किन्हें प्रतिबंधित किया जाये? किसी नदी के क्या-क्या अधिकार हैं? नदी, उसके भीतर रहने वाले जीव-वनस्पति और नदी के बाहर रहते हुए नदी पर आश्रित आबादी के नदी आधारित अधिकारों की रक्षा के लिए कोई कानूनी प्रावधान होना चाहिए या नहीं? नदियों को नुकसान पहुंचाने या उनके अधिकारों को छीनने वाले के दंड का निर्णय कैसे व किसके द्वारा किया जाये? प्राथमिकता पर नदी प्रदूषण नियत्रंण होना चाहिए या प्रदूषण हो ही न इसकी व्यवस्था? होना क्या चाहिए-नदियों को प्रदूषित करने वाले नालों को पहले नदी तक आने देना और फिर उन्हें साफ करने के लिए देश की बड़ी धनराशि लगाना या फिर नदियों से गंदे नालों को मिलने ही नहीं देना? प्रदूषण को कहां शोधित किया जाये- उसके मूल स्रोत पर या उसे ढोकर पहले नदी किनारे ले जाया जाये और फिर शोधित किया जाये? नदी संरक्षण में शासन-प्रशासन की क्या भूमिका है और समाज की क्या? केन्द्र की क्या भूमिका है और राज्य की क्या? नदी संरक्षण के लिए अंतिम रूप से जिम्मेदार एक व्यक्ति या एजेंसी का नाम बताइये? नदी संरक्षण में असफल रहने का क्या मतलब है? नदी जल के सीधे उपयोग की प्राथमिकता का आधार क्या हो? नदी प्रबंधन योजना की व्यापक योजना बननी चाहिए या प्रत्येक नदी की अलग-अलग योजना? नदियों पर बांध व तटबंधों को लेकर राष्ट्रीय सहमति क्या है?
ये तमाम सवाल ऐसे हैं, शासकीय स्तर पर जिसे लेकर कोई नीति न केन्द्र के पास है और न राज्यों के पास। ताज्जुब है कि कोई भी काम करने से पहले उसके लिए मागदर्शक सिद्धांत तय किये जाते हैं। किंतु भारत में मामला उल्टा है। शासकीय स्तर पर नदी संरक्षण हेतु कार्यक्रम हैं; बजट है; लेकिन उन्हें निर्देशित करने वाले मूल नीतिगत सिद्धांत नहीं हैं। इसी का नतीजा है कि नदियों को लेकर जलबंटवारे के अनसुलझे विवाद हैं और नदी संरक्षण के नाम पर बहाये बजट के बावजूद नदियां प्रदूषित हैं। नदियों के जल का अनियंत्रित दोहन है। नदियों की भूमि पर सरकारी-गैरसरकारी कब्जे हैं। नदियों के बारे में किसी एक के पास न तो सारे आंकड़े हैं और न सम्पूर्ण जानकारी देने का दायित्व। इसी के कारण नदियों को लेकर आंदोलन हैं। कह सकते हैं कि नदियों के सत्यानाश पर लगाम न लग पाने का एक बड़ा कारण किसी नीति और उसकी पालना के प्रभावी तंत्र का न होना है।
इन तमाम विसंगतियों से निजात पाने के लिए जरूरी है कि देश में नदियों को लेकर कोई नीति हो। चूंकि भारत विविध भूगोल व भूसंस्कृति वाला राष्ट्र है; अतः स्थानीय जैव व भूसांस्कृतिक विविधता का सम्मान करते हुए प्रत्येक प्रदेश की अपनी एक प्रादेशिक नदी नीति होनी ही चाहिए। इसी निर्णय के साथ कई नीति विशेषज्ञ, लेखक, पत्रकार व नदी कार्यकर्ता 16-17 सितंबर को मेरठ में जुटे थे।
पांच मूल सिद्धांतों पर विशेषज्ञ हुए एकमत
उल्लेखनीय है कि पिछले दो साल से जलपुरुष राजेन्द्र सिंह की पहल पर नदी नीति निर्माण की कवायद होती रही है। मेरठ का दो दिवसीय सम्मेलन उ.प्र. नदी नीति प्रारूप व्यापक जनसहमति हासिल करने की दिशा में उठा एक कदम था। जिन पांच बिंदुओं को नदी नीति का मूल सिंद्धात माना गया, वे हैं:
1. नदी को एक जीवंत प्रणाली मानते हुए इसे ’नैचुरल पर्सन’ का संवैधानिक दर्जा दिया जाये, ताकि नदियों को वे सभी अधिकार हासिल हो सकें, जो एक व्यक्ति को संवैधानिक तौर पर हासिल हैं।
2. उद्गम/प्रदेश में प्रवेश बिंदु से नदी के अंतिम छोर/प्रदेश सीमा छोड़ने तक प्रत्येक नदी के पारिस्थितिकीय प्रवाहों का आकलित व सुनिश्चित किया जाये, ताकि नदी और उसकी पारिस्थितिकी के प्रत्येक अंग का जीवन सुनिश्चित हो सके।
3. प्रत्येक नदी की भूमि का चिन्हीकरण व सीमांकन कर यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उसका भू उपयोग किसी भी स्थिति में बदला न जाये; ताकि नदियां आजादी से बह सकें।
4. शोधित-अशोधित किसी भी प्रकार के अवजल व ठोस अपशिष्ट को नदियों में जाये जाने पर पूर्ण प्रतिबंध हो; ताकि नदियों की प्रदूषित मुक्ति से समझौते की कोई गुंजाइश बचे ही न और प्रदूषण मुक्ति के नाम पर बर्बाद हो रहा राष्ट्र का ढेर सारा धन बच जाये।
5. नदी नीति क्रियान्वयन हेतु एक ऐसी समन्वित तंत्र विकसित किया जाये, जिसमें राज व समाज की भूमिका स्पष्ट रूप से परिभाषित हो।
राजनेता, किसान नेता व प्रशासक ने भी जताई सहमति
सुखद है कि नदी नीति के जिन पांच सिद्धांतों के वहां मौजूद समुदाय के अलावा जिन खास लोगों ने एकमत से मंजूर किया, उनमें मेरठ सांसद राजेन्द्र अग्रवाल, भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख राकेश टिकैत और मेरठ जिलाधिकारी विकास गोठवाल प्रमुख हैं। जिलाधिकारी ने तो आगे बढ़कर मेरठ जिले में पानी पर्यावरण के मसलों पर जनभागीदारी के साथ शीघ्र एक टास्क फोर्स गठन की बात कही। मुख्यमंत्री से चर्चा के लिए प्रारूप की एक प्रति उत्तर प्रदेश के ग्रामीण अभियांत्रिकी विभाग के मंत्री राजेन्द्र सिंह राणा को सौंपी गई। जलपुरुष राजेन्द्र सिंह, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष परितोष त्यागी, नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी, रुड़की के वरिष्ठ वैज्ञानिक वी के गोयल, राज्य जलस्रोत अभिकरण ‘स्वारा’- लखनऊ के वैज्ञानिक रवीन्द्र कुमार, नीति विशेषज्ञ एम एस वाणी के अलावा उ.प्र. जलबिरादरी, डब्ल्यू डब्ल्यू एफ, इंडिया वाटर पोर्टल, इंडिया वाटर पार्टनरशिप, यमुना वाटरकीपर्स, यमुना जिये अभियान, लोकभारती, लोक विज्ञान संस्थान, ग्लोबल ग्रीन, हमारी धरती, नीर फाउंडेशन तथा हिंडन बचाओ अभियान के प्रतिनिधियों ने नीति प्रारूप पर अत्यंत महत्वपूर्ण सुझाव दिए।
चिंतन ने खोली कई खिड़कियां
चिंतन ने कई मुद्दों पर व्यापक जनसहमति के रास्ते खोले: नीति नदी प्रवाह पर बनाये बाधों को विरोध करती है। नदी प्रवाह पर बने बांधों में जलभंडारण की बजाय आसपास मौजूद प्राकृतिक ढांचों में जलभंडारण कर सिंचाई व बिजली की आवश्यकता पूर्ति की जानी चाहिए। कम से कम पहाड़ी/पठारी नदियों के मामले में यह सहज संभव है। मल को चाहे इंसान ढोये या नाला-यह प्राकृतिक अपराध है। इसके स्थान पर कचरे को स्रोत पर शोधित किए जाने की नीति घोषित हो। कर की लालच में खड़ी की गई सीवेज प्रणाली के स्थान पर सेप्टिक टैंक की त्रिकुण्डीय प्रणाली को प्राथमिकता मिले। छोटी नदियों के पुनरुद्धार के कार्य को मनरेगा में प्राथमिकता पर लाने के लिए नीतिगत निर्णय किया जाना चाहिए। प्रत्येक नदी का अपना मास्टर प्लान बने। चूंकि नदी प्रबंधन में समाज की अहम भूमिका की अपेक्षा की जाती है; अतः नदियों के बारे में सभी आंकड़े तथा योजना-परियोजना-कार्यक्रम संबंधी सभी सूचनायें अतिरिक्त प्रयास कर नदी समाज को पहुंचाई जानी चाहिए। नदी जन निगरानी तंत्र विकसित किया जाना चाहिए। नदी व समाज के बीच अंतर्संवाद को गति प्रदान करने के लिए हरसंभव उपाय किए जायें। नदी पर्वों को नदी चिंतन दिवसों में तब्दील किये जाने की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए। प्रत्येक नदी का इतिहास, भूगोल व सरोकार लिखे जाने चाहिए। पर्यावरण के पीरियडों में दुनिया का पर्यावरण पढ़ाने से पहले स्थानीय पर्यावरण से परिचय कराने को प्राथमिकता मिले। प्रत्येक नदी का अपना एक नदी दिवस घोषित होना चाहिए। प्रत्येक राज्य अपनी सबसे प्रमुख नदी को ‘राज्य नदी’ का दर्जा दे।
बहस के मुद्दे
जलनीति प्रारुप - 2012 ने पानी को ‘आर्थिक वस्तु’ बताया है।
• नदी महज पानी है या इससे अधिक कुछ और?
• नदी जल के सीधे उपयोग की प्राथमिकतायें क्या होनी चाहिए?
• अलग-अलग भूसांस्कृतिक क्षेत्रों में यह कैसे तय हो कि कृषि व उद्योग क्षेत्र अपनी आवश्यकता पूर्ति के लिए कितना नदी जल पर, कितना तालाब आदि अन्य सतही जलसंरचनाओं पर तथा कितना भूजल पर निर्भर करे?
• इनके बीच उपयोग का अनुपातिक आधार क्या बने?
• नदी जल बंटवारे का सुनिश्चित आधार क्या हो?
• नदी जल व भूजल एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं। भूजल के अति दोहन को नियंत्रित करने के लिए उसे भू मालिक से अधिकार से निकालकर जनसंपत्ति घोषित करना सही उपाय है या बोर व खनन की गहराई सुनिश्चित करना श्रेयस्कर साबित होगा?
• भारत जैसे राष्ट्र की खेती व किसानों की माली हालत को ख्याल में रखते हुए क्या भूजल नियंत्रण के नाम पर कृषि क्षेत्र में बिजली व पानी की कीमतों को बढ़ाना सही है?
• प्राकृतिक बाढ़ नुकसानदेह होती है या फायदेमंद?
• बाढ़ को नियंत्रित करना चाहिए या बाढ़ के विनाश को?
• तटबंध बाढ़ व बाढ़ से होने वाले विनाश को बढ़ाते हैं या कम करते हैं?
ये कई मुद्दे अभी ऐसे हैं जिन पर व्यापक बहस व रायशुमारी की जरूरत महसूस की गई। जुटे नदी प्रेमियों ने निर्णय लिया कि उत्तर प्रदेश नदी नीति के सर्वसम्मत बिंदुओं का दस्तावेज प्रदेश मुख्यमंत्री को सौंपकर उनसे प्रादेशिक नदी नीति घोषित करने की मांग की जायेगी। नीति के आधार पर नदी संरक्षण हेतु एक लोक कार्य योजना भी काम किया जायेगा। इसके लिए पंडा, मल्लाह, मछुआरों, किसान, उद्योगों से लेकर सभी संबंधित समुदाय व शासन-प्रशासन से व्यापक संवाद चलाया जायेगा। इसके लिए छोटे-छोटे समूहों में जनसंवाद व सर्वेक्षण आयोजित किए जायेंगे। मौजूद सभी संगठनों ने अपने-अपने स्तर पर ऐसा करने का संकल्प जताया।
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