उन्नत बागवानी (Advanced gardening)


बागवानी यानि हार्टिकल्चर फसलोत्पादन में हमारे देश का समूचे विश्व में विशेष योगदान है फल तथा सब्जी दोनों के उत्पादन में हमारे देश का दूसरा स्थान है। इसी प्रकार अन्य बागवानी फसलों के उत्पादन में हम किसी से कम नहीं। परन्तु अन्तरराष्ट्रीय बाजार में हमारे बागवानी उत्पादों की कीमत अन्य देशों की तुलना में कम आंकी जाती है, यही नहीं कुछ उत्पादों के निर्यात पर भी हमारी सरकार को रोक लगानी पड़ी। बागवानी उत्पादों के अन्तरराष्ट्रीय बाजार के चलते हमारी बागवानी परम्परागत स्वरूप धूमिल पड़ने लगा है। इस विशाल समस्या का समाधान जो उभरकर सामने आया है वह है बागवानी की आधुनिक तकनीकी रूप जिसे आमतौर पर ‘‘हाई-टेक हार्टिकल्चर’’ कहा जाता है। इसी का प्रभाव है कि आज टिशू कल्चर, जीन इंजीनियरी, जैव प्रौद्योगिकी, पाली हाउस ग्रीन हाउस तकनीक, माइक्रोप्रोपेगेशन या सूक्ष्म-प्रवर्धन समेकित नाशीजीव प्रबन्धन तथा फलों, सब्जियों एवं फूलों का आधुनिक तकनीक से परिरक्षण जैसी विधियों का प्रयोग कर सकते हैं तथा बागवानी फसलों का उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पादों को पैदा करके विश्व व्यापार संघ में अपनी फिर से धाक जमा सकते हैं। बागवानी का यही आधुनिक रूप ही उन्नत बागवानी के नाम से जाना जाता है, यही आज हमारे देश के लिये सफलता की कुँजी है।

सूक्ष्म-प्रवर्धन


सूक्ष्म-प्रवर्धन और प्रयोगशाला में पादपों के गुणों में हेर-फेर करने की विधि अभी हाल में ही विकसित हुई है। इसने औद्योगिक प्रौद्योगिकी का रूप ले लिया है पिछले दो दशकों में इन तकनीकों ने बागवानी फसलों के नये आयाम खोले हैं। आज बागवानी करने वालों को बीज या कलम की कोई कमी नहीं है। ‘टिशू कल्चर’ की आधुनिक तकनीक इन्हें भारी मात्रा में उम्दा क्वालिटी की पौध सामग्री उपलब्ध करा रही है। ‘जीन इंजीनियरी’ तथा प्रजनन की उन्नत तकनीकों के द्वारा मनचाही गुणों वाली बागवानी फसलेें तैयार की जा रही है। जैसे अधिक लाल तथा ज्यादा मीठा तरबूज, डिस्को पपीता, कम कड़वा करेला, अधिक टिकाऊ टमाटर, मिर्च आदि सब्जियाँ, ज्यादा समय तक तरोताजा बने रहने वाले फूल आदि चमत्कार इसी आधुनिक तकनीक के हैं। इस तकनीक के द्वारा हमारे देश में अनेक औद्योगिक कम्पनियाँ विभिन्न बागवानी फसलों की पौध तैयार कर रही हैं।

ग्रीन हाउस तकनीक


तकनीक का समुचित विकास एवं इससे फसलोत्पादन भारत की कृषि नीति का महत्त्वपूर्ण अंग बनता जा रहा है। खाद्यान्न के मामले में देश भले ही स्वावलंबी हो चुका है, परन्तु बागवानी फसलों के उत्पादन और आवश्यकता में बहुत अन्तर है। इस अन्तर को परंपरागत बागवानी द्वारा पाटने के लिये जितने कृषि योग्य क्षेत्र की आवश्यकता है उतनी बढ़ती जनसंख्या के कारण उपलब्ध कराना संभव न होगा।

ग्रीन हाउस तकनीकी का उपयोग करने से प्रतिकूल कृषि जलवायु वाले क्षेत्रों में आवश्यक फसलें पैदा की जा सकती हैं जैसे लद्दाख क्षेत्र में मौसम की प्रतिकूलता के बावजूद सब्जियाँ पैदा की जाती हैं। यह ग्रीन हाउस तकनीक का एक ज्वलंत उदाहरण है यही नहीं बेमौसमी सब्जियों एवं अन्य पौधे भी आसानी से पैदा किये जाते हैं। उच्चतम गुणवत्ता के फूलों एवं अलंकारी पौधों के उत्पादन से विदेशी मुद्रा कमाने के अच्छे साधन बन गये हैं इस क्षेत्र में अनुसंधान एवं शिक्षा के विकास के लिये भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली, कृषि में प्लास्टिक के उपयोग के लिये राष्ट्रीय समिति, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद तथा रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन प्रयासरत हैं।

हाई-टेक विधि द्वारा सब्जी उत्पादन


सब्जी उत्पादन बढ़ाने के लिये अच्छे गुणों वाले बीजों का महत्त्वपूर्ण स्थान है कुछ सब्जियों के अच्छे बीज आज भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होते, लेकिन हाई-टेक तकनीक से अब सभी सब्जियों के बीज आसानी से प्राप्त किये जा सकते हैं। स्वयं परागण वाली सब्जियों जैसे मटर, मेथी, सेम, बाकला, टमाटर, बैंगन, मिर्च, लोबिया, ग्वार जैसी सब्जियों के उन्नत बीज थोड़ी सी जानकारी के साथ सभी किसान अपने पॉलीहाउस में उगा सकते हैं। इसी प्रकार पर-परागण वाली सब्जियों जैसे कद्दू वर्गीय (लौकी, तोरई, करेला, खीरा, ककड़ी, खरबूजा, तरबूज, टिंडा आदि) फूल गोभी, गांठ गोभी, मूली, शलजम, गाजर, प्याज, पालक ब्रोकली तथा संकर किस्मों के बीज हमारे पढ़े लिखे किसान थोड़ी सी जानकारी एवं प्रशिक्षण लेकर सफलतापूर्वक पैदा कर सकते हैं।

जनन द्रव्य संरक्षण और अभिलक्षण


बागवानी फसलों में जननद्रव्य का यथारथाने संरक्षण और मैदानी जीन बैंकों का रख-रखाव बहुत कठिन एवं जोखिम भरा है। कई बागवानी फसलों के लिये उपयुक्त तापमान पर दीर्घ अवधि भण्डारण की विधियों का मानकीकरण किया गया है। बीजों, तनों, सोमेटिक और जायेगोटिक भ्रूणों का सफल हिम संरक्षण कसावा, आलू, नारियल, नींबू वर्गीय फसलों, काली मिर्च, इलायची, अंगूर आदि फसलों में किया गया है। नाशपाती, स्ट्राबेरी और आलू के मेरीस्टेम के कैप्सूल में जमाव को भी संभव बनाया गया है। बागवानी फसलों में जनन द्रव्य के यथास्थाने भण्डारण को अब काफी अपनाया जाने लगा है। जनन द्रव्य के सुरक्षित हस्तान्तरण के लिये यथास्थाने तनीक बहुत अच्छी है। केला, आलू, कसावा और शकरकंद में अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर जनन द्रव्य का आदान-प्रदान आमतौर पर किया जा रहा है।

जैव प्रौद्योगिकी


बागवानी फसलों में जैव प्रौद्योगिकी की अनंत संभावनाएं हैं। बागवानी फसलों में रंग, गंध, गुणवत्ता आदि में थोड़ा सा परिवर्तन भी बहुत व्यवसायिक महत्त्व रखता है। आनुवांशिक परिवर्तन, सूक्ष्म संवर्धन, जनन द्रव्य का प्रयोगशाला में संरक्षण, सिनसीड प्रौद्योगिकी, एस.टी.जी. तकनीक से विषाणु जैव उर्वरक, जैव कीटनाशक, फसल कटाने के बाद जैव प्रौद्योगिकी आदि ऐसे क्षेत्र हैं जिनसे बागवानी फसलों में काफी सुधार किया गया है तथा भविष्य में ढेर सारी संभावनाएं हैं। आनुवांशिक इंजीनियरी द्वारा विभिन्न वांछित प्रजातियों द्वारा करना संभव हो गया है सेब की फसल में एरबीनिया एमीलोवोरा स्कैब और झुलसा प्रतिरोधी और पपीते में गोल धब्बे रोधी जीन प्रतिरोपित किये गये हैं टमाटर में कई पराजीनी किस्मों का विकास किया गया है।

जैव उर्वरक


नाइट्रोजन स्थिरीकरण की अधिक प्रभावी प्रजातियों के विकास और फास्फोरस घुलनशील सूक्ष्म अवयव को जैव प्रौद्योगिकी द्वारा विकसित करने के लिये आनुवांशिक विधियों से जैव उर्वरकों की क्षमता बढ़ाई जा सकती है बागवानी फसलों में नाइट्रोजन और फास्फोरस की अधिक जरूरत पड़ती है जिसकी नाइट्रोजन स्थिरीकरण अवयवों जैसे ‘राइजोबियम’ एजोटोबैक्टर और ‘एजोस्पाइरीला’ की जाति द्वारा आपूर्ति की जा सकती है साथ ही फास्फेट घुलनशील जीवाणु ‘स्यूडोमोनास’ और बेसीलस तथा पेलिसिलियम और एजोस्परलिस द्वारा आपूर्ति होती है। पपीता, नींबू, वर्गीय, फल, आम, केला और अनार में वी0ए0एम0 फफूंदी अत्यंत लाभकारी है।

जैव कीटनाशी


बागवानी फसलों को हानि पहुँचाने वाले कीटों के विनाश के लिये कई सूक्ष्म जीव रोगाणुओं का पता लगाया गया है। इस क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी ने जीव नियंत्रक एजेंटों के उत्पादन की तकनीकों को और भी प्रभावी बढ़ा दिया है। इस तकनीक द्वारा शिमला स्थित केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने आलू के कद-मॉथ के प्रतिरोध के लिये बीटीटोक्सिन वाले पराजीनी आलू के विकास का प्रयास किया है। यह कदम अपने क्षेत्र में एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उपलब्धि होगी। इसी तरह बंगलौर के भारतीय उद्यान अनुसंधान संस्था के वैज्ञानिकों ने बीटी के बीजाणु रहित उत्प्रेरक के विकास का दावा किया है।

फसल प्रौद्योगिकी


फलों, सब्जियों तथा फूलों की तुड़ाई के बाद सही ढंग से देखभाल न की जाए तो काफी नुकसान हो जाता है। हमारे देश में फलों और सब्जियों के वितरण के साधन ठीक न होने के कारण प्रतिवर्ष लगभग 80 अरब रुपये की फल सब्जियाँ सड़-गलकर नष्ट हो जाती हैं। ताजे फलों एवं सब्जियों को विभिन्न उपायों द्वारा परिरक्षण के मूल सिद्धांतों के अनुसार फलों एवं सब्जियों को क्षतिग्रस्त करने वाले एंजाइमों और सूक्ष्मजीवों को निष्क्रिय या नष्ट करना होता है। इसके अतिरिक्त पैकेजिंग भण्डारण और व्यापार के दौरान सूक्ष्मजीवों को पैदा न होने देना अति आवश्यक है।

फलों की तुड़ाई के बाद की जैव प्रौद्योगिकी में जीन इंजीनियरों के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा रहा है और जीनों की क्लोनिंग से फलों को पकने की अवधि बढ़ रही है। क्लोनिंग और जीन परिवर्तन द्वारा फलों की तुड़ाई के बाद उनमें रोगाणुओं से होने वाली हानि से बचा जा सकता है। भविष्य में कम लागत की पराजीनी विधि द्वारा फलों को पकाने से देर तक रोका जा सकेगा तथा ज्यादा समय तक ताजा रखा जा सकेगा। इससे फलों और सब्जियों को ताजा बेचकर किसान ज्यादा लाभ कमाने में कामयाब हों।

लेखक परिचय


नीरज कुमार एवं अविनाश कुमार
शोध छात्र, विभाग कृषि मौसम विज्ञान, गोविन्द वल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पन्तनगर, उत्तराखण्ड

शोध छात्र, विभाग सब्जी विज्ञान, नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, नरेन्द्र नगर, कुमार गंज, फैजाबाद, उ.प्र.

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