कलाबाई ने अपने 13 साल के बेटे को हमारे सामने खड़ा कर दिया और बताया कि देखो इसके पूरे शरीर पर कैसे चकत्ते बन रहे हैं। पिछले तीन महीने से उसका इलाज चल रहा है और अब तक हजारों रुपए खर्च हो चुके हैं। यही हाल 65 वर्षीय बाबूलाल मेवाडे का है, जिनके दोनों पैरों में घुटने के पास खुजली चल–चल कर अब सोरायसिस हो चुका है। खुजली और जलन के साथ शरीर से छाल की तरह चमड़ी निकलती रहती है। डॉक्टर ने इस पानी से दूर रहने को कहा है पर हम कहाँ जाएँ। रासायनिक उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों ने यहाँ का भूजल इतनी बुरी तरह से प्रदूषित कर दिया है कि इस पानी को पीने से यहाँ के लोग बीमार हो रहे हैं। करीब दो दर्जन से ज्यादा लोग यहाँ तरह–तरह के चर्म रोगों से पीड़ित हैं तो करीब सौ से ज्यादा लोग पेट की बीमारियों से ग्रस्त हैं।
बार–बार शिकायतों के बाद भी ग्रामीणों की माँग पर नगर निगम या जिला प्रशासन कोई भी फिलहाल गम्भीर नजर नहीं आ रहा है। यहाँ के जलस्रोतों से पीले रंग का बदबूदार पानी आ रहा है, जिसे पीना तो दूर मुँह के पास लाना भी सम्भव नहीं हो पा रहा है।
यह है मध्य प्रदेश के देवास शहर के औद्योगिक क्षेत्र स्थित बीराखेडी बस्ती। करीब साढ़े तीन सौ परिवारों की यह बस्ती नगर निगम के क्षेत्राधिकार में आती है पर यहाँ के लोगों की मानें तो वोट देने के अलावा नगर निगम उनके लिये कुछ नहीं करती।
कुछ दिनों पहले यहाँ विश्व बैंक की एक योजना में सीमेंट की सडकें तो बना दी गई है लेकिन पानी जैसे बुनियादी जरूरतों की ओर किसी का ध्यान नहीं है। इस बस्ती में पानी के लिये न तो कोई कुँआ है और न ही कोई अन्य साधन। बस्ती भर के लोग स्कूल के पास लगे ट्यूबवेल का पानी ही पीने को मजबूर हैं।
यहाँ तीन हैण्डपम्प भी हैं पर तीनों का ही पानी प्रदूषित है और इतना कड़वा है कि मुँह पर ही नहीं आता। ट्यूबवेल का पानी भी प्रदूषित है और यहाँ के लोग बीमार होते जा रहे हैं।
यहाँ के लोग बताते हैं कि इसके लिये कई बार उन्होंने अपने पार्षद और नगर निगम के दफ्तर में जाकर भी बताया। शिकायतें भी की गई, जिला कलेक्टर को जन सुनवाई में आवेदन भी दिया पर कभी कुछ नहीं हुआ। इस पानी का सैम्पल तक नहीं किया गया कि जो पानी यह बस्ती पी रही है, वह पीने लायक भी है या नहीं।
बीराखेडी में हमारी मुलाकात हुई स्कूल के पास रहने वाली कलाबाई से। कलाबाई बताती हैं कि पूरी बस्ती के लोग पीने के पानी के लिये तो परेशान हैं ही, रोजमर्रा के लिये भी पानी की बहुत समस्या है। इस पानी से नहाने के बाद शरीर की चमड़ी पर बुरी तरह खुजली होती है। उन्हें खुद बीते दिनों डॉक्टर को दिखाना पड़ा।
डॉक्टर ने बताया कि पानी से दूर रहो पर साफ़ पानी कहाँ से लाएँ और रोज कहाँ भागदौड़ करें। यहाँ के ज्यादातर लोग सुबह से शाम तक मजदूरी और अन्य काम के लिये बाहर या शहर में जाते हैं। ऐसे में पानी की किल्लत हमारे लिये किसी बड़ी परेशानी से कम नहीं है।
कलाबाई ने अपने 13 साल के बेटे को हमारे सामने खड़ा कर दिया और बताया कि देखो इसके पूरे शरीर पर कैसे चकत्ते बन रहे हैं। पिछले तीन महीने से उसका इलाज चल रहा है और अब तक हजारों रुपए खर्च हो चुके हैं।
यही हाल 65 वर्षीय बाबूलाल मेवाडे का है, जिनके दोनों पैरों में घुटने के पास खुजली चल–चल कर अब सोरायसिस हो चुका है। खुजली और जलन के साथ शरीर से छाल की तरह चमड़ी निकलती रहती है। डॉक्टर ने इस पानी से दूर रहने को कहा है पर हम कहाँ जाएँ। यहीं पास में रहने वाली चंदाबाई भी यही बातें दोहराती हैं।
वे बताती हैं कि पानी का स्वाद पानी जैसा नहीं होकर खारा–खारा है। उनके पति को हमेशा पेट में दर्द बना रहता है और उनकी भूख भी अब लगातार कम होती जा रही है। हम बीते 20 सालों से यह नरक झेल रहे हैं लेकिन अब तक कुछ नहीं बदला।
बीएससी तक पढ़ी हुई रेखा बताती है कि हमारी बस्ती के पास से गुजरने वाले नाले में आसपास के रासायनिक उद्योगों का गन्दा पानी और हानिकारक रसायन बहाए जाते हैं और यही वजह है कि हमारे यहाँ का पानी इतनी बुरी तरह से प्रदूषित हो रहा है।
रेखा बताती है नाले में रासायनिक खाद बनाने वाली कम्पनी गणेश फ़र्टिलाइज़र, दवाईयाँ बनाने वाली कम्पनी सॉफ्ट मेडिकेयर और सोयाबीन का तेल निकालने वाले प्लांट प्रीमियर सोया से निकलने वाले हानिकारक रसायन के कारण नाले का पानी रंग–बिरंगा हो जाता है। विजयाबाई बरगडे ने हमें अपने घर के पीछे से बहने वाला नाला भी दिखाया, जिसमें गहरे पीले रंग का तेल की तरह का गाढ़ा और झाग का पानी बह रहा था।
विजया बाई बरगडे के घर के पास ही एक हैण्डपम्प भी लगा है, लेकिन इससे भी उसी तरह का पीला पानी आ रहा है। सुशीला बाई ने बताया कि उनके पति पास की ही एक फ़ैक्टरी में काम करते हैं। वे सुबह काम पर जाते समय अपने साथ पानी के लिये एक खाली केन अपनी साइकिल पर ले जाते हैं और शाम को जब लौटते हैं तो फ़ैक्टरी से एक केन पानी ले आते हैं इसी से चाय और दाल बनानी पड़ती है। हैण्डपम्प और ट्यूबवेल के पानी से न तो दाल पकती है और न ही चाय बन पाती है। यही पानी थोड़ा–थोड़ा कर दिन भर चलाना पड़ता है।
मंदरूप मालवीय बताते हैं कि इस बस्ती के लोगों ने कई बार महापौर और निगम के बड़े अधिकारियों को इसके बारे में बताया लेकिन कभी किसी ने ध्यान नहीं दिया। यहाँ तक कि हम कुछ लोग जनसुनवाई में जिला कलेक्टर से भी मिले पर अब तक कुछ नहीं हुआ। दरअसल इन फ़ैक्टरियों के पानी और अपशिष्ट पदार्थों की निकासी इस नाले के जरिए ही होती है और इसी वजह से यहाँ स्थिति ऐसी हुई है।
यहीं रहने वाले रतनदास महन्त बताते हैं कि पानी का कोई वैकल्पिक स्रोत नहीं होने से लोगों को यही प्रदूषित पानी पीना पड़ रहा है और यही पानी रोजमर्रा के काम भी लेना पड़ता है। इससे लोग बीमार होते जा रहे हैं। वे बताते हैं कि कुछ सालों पहले तक तो आसपास के खेत मालिक उनके यहाँ से पीने लायक पानी भर लेने देते थे पर अब उन्होंने भी बन्द कर दिया है।
कितनी बुरी बात है कि खेतों में साफ़ पानी दे रहे हैं और हमें पीने को भी साफ़ पानी नहीं मिल पा रहा है। हमारे साथ ऐसा भेदभाव क्यों। यहाँ रहने वाले लोग जिनमें ज्यादातर के लिये दो वक्त की रोटी ही मुश्किल है वे अपने लिये पानी का इन्तजाम कहाँ से करें।
उधर इस मुद्दे पर क्षेत्रीय पार्षद के अपने तर्क हैं। यहाँ से निर्वाचित पार्षद राजेश डांगी बताते हैं कि पहले तो और भी समस्या थी, उनके आने के बाद तो समस्या और भी कम हुई है। वे आँकड़ों में गिनाते हुए बताते हैं कि उन्होंने स्कूल के पास के ट्यूबवेल में मोटर डालकर करीब–करीब पूरी बस्ती में पाइपलाइन के जरिए पानी पहुँचाने का काम किया है पर दूषित पानी की बात पर उनके पास बताने लायक कुछ भी नहीं लेकिन वे यह जरूर जोड़ते हैं कि इसे भी दूर करने के लिये प्रयास कर रहा हूँ।
अब देवास में नगर निगम नर्मदा नदी से पानी आने के तृतीय चरण के लिये काम कर रहा है। अभी द्वितीय चरण के बाद भी पानी उतने प्रवाह से नहीं आ पा रहा है, इसी वजह से इस बस्ती को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। पर अब अगले चरण के आने से पर्याप्त पानी मिलेगा और इस बस्ती को भी उसका फायदा मिल सकेगा। फ़ैक्टरियों से प्रदूषण की बात पर वे कहते हैं कि इसकी शिकायत भी करेंगे।
महापौर सुभाष शर्मा बताते हैं कि बस्ती को साफ़ पानी देने के लिये हरसम्भव कोशिश की जाएगी। फिलहाल देवास को पर्याप्त पानी मिलने लगा है। अब क्षिप्रा के नवनिर्मित बाँध से भी पानी मिल सकेगा। इस तरह बस्ती के लिये पानी का इन्तजाम आसान हो सकेगा। इससे पहले तक तो शहर के लिये ही पानी की बहुत किल्लत थी।
जनप्रतिनिधियों के अपने दावे हैं और अपने तर्क पर फिलहाल तो बीराखेडी के लोग पीने के पानी जैसी बुनियादी सुविधा से भी महरूम हैं। जबकि सरकार विभिन योजनाओं के जरिए लोगों को पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिये करोड़ों रुपए खर्च कर रही है।
बार–बार शिकायतों के बाद भी ग्रामीणों की माँग पर नगर निगम या जिला प्रशासन कोई भी फिलहाल गम्भीर नजर नहीं आ रहा है। यहाँ के जलस्रोतों से पीले रंग का बदबूदार पानी आ रहा है, जिसे पीना तो दूर मुँह के पास लाना भी सम्भव नहीं हो पा रहा है।
यह है मध्य प्रदेश के देवास शहर के औद्योगिक क्षेत्र स्थित बीराखेडी बस्ती। करीब साढ़े तीन सौ परिवारों की यह बस्ती नगर निगम के क्षेत्राधिकार में आती है पर यहाँ के लोगों की मानें तो वोट देने के अलावा नगर निगम उनके लिये कुछ नहीं करती।
कुछ दिनों पहले यहाँ विश्व बैंक की एक योजना में सीमेंट की सडकें तो बना दी गई है लेकिन पानी जैसे बुनियादी जरूरतों की ओर किसी का ध्यान नहीं है। इस बस्ती में पानी के लिये न तो कोई कुँआ है और न ही कोई अन्य साधन। बस्ती भर के लोग स्कूल के पास लगे ट्यूबवेल का पानी ही पीने को मजबूर हैं।
यहाँ तीन हैण्डपम्प भी हैं पर तीनों का ही पानी प्रदूषित है और इतना कड़वा है कि मुँह पर ही नहीं आता। ट्यूबवेल का पानी भी प्रदूषित है और यहाँ के लोग बीमार होते जा रहे हैं।
यहाँ के लोग बताते हैं कि इसके लिये कई बार उन्होंने अपने पार्षद और नगर निगम के दफ्तर में जाकर भी बताया। शिकायतें भी की गई, जिला कलेक्टर को जन सुनवाई में आवेदन भी दिया पर कभी कुछ नहीं हुआ। इस पानी का सैम्पल तक नहीं किया गया कि जो पानी यह बस्ती पी रही है, वह पीने लायक भी है या नहीं।
बीराखेडी में हमारी मुलाकात हुई स्कूल के पास रहने वाली कलाबाई से। कलाबाई बताती हैं कि पूरी बस्ती के लोग पीने के पानी के लिये तो परेशान हैं ही, रोजमर्रा के लिये भी पानी की बहुत समस्या है। इस पानी से नहाने के बाद शरीर की चमड़ी पर बुरी तरह खुजली होती है। उन्हें खुद बीते दिनों डॉक्टर को दिखाना पड़ा।
डॉक्टर ने बताया कि पानी से दूर रहो पर साफ़ पानी कहाँ से लाएँ और रोज कहाँ भागदौड़ करें। यहाँ के ज्यादातर लोग सुबह से शाम तक मजदूरी और अन्य काम के लिये बाहर या शहर में जाते हैं। ऐसे में पानी की किल्लत हमारे लिये किसी बड़ी परेशानी से कम नहीं है।
कलाबाई ने अपने 13 साल के बेटे को हमारे सामने खड़ा कर दिया और बताया कि देखो इसके पूरे शरीर पर कैसे चकत्ते बन रहे हैं। पिछले तीन महीने से उसका इलाज चल रहा है और अब तक हजारों रुपए खर्च हो चुके हैं।
यही हाल 65 वर्षीय बाबूलाल मेवाडे का है, जिनके दोनों पैरों में घुटने के पास खुजली चल–चल कर अब सोरायसिस हो चुका है। खुजली और जलन के साथ शरीर से छाल की तरह चमड़ी निकलती रहती है। डॉक्टर ने इस पानी से दूर रहने को कहा है पर हम कहाँ जाएँ। यहीं पास में रहने वाली चंदाबाई भी यही बातें दोहराती हैं।
वे बताती हैं कि पानी का स्वाद पानी जैसा नहीं होकर खारा–खारा है। उनके पति को हमेशा पेट में दर्द बना रहता है और उनकी भूख भी अब लगातार कम होती जा रही है। हम बीते 20 सालों से यह नरक झेल रहे हैं लेकिन अब तक कुछ नहीं बदला।
बीएससी तक पढ़ी हुई रेखा बताती है कि हमारी बस्ती के पास से गुजरने वाले नाले में आसपास के रासायनिक उद्योगों का गन्दा पानी और हानिकारक रसायन बहाए जाते हैं और यही वजह है कि हमारे यहाँ का पानी इतनी बुरी तरह से प्रदूषित हो रहा है।
रेखा बताती है नाले में रासायनिक खाद बनाने वाली कम्पनी गणेश फ़र्टिलाइज़र, दवाईयाँ बनाने वाली कम्पनी सॉफ्ट मेडिकेयर और सोयाबीन का तेल निकालने वाले प्लांट प्रीमियर सोया से निकलने वाले हानिकारक रसायन के कारण नाले का पानी रंग–बिरंगा हो जाता है। विजयाबाई बरगडे ने हमें अपने घर के पीछे से बहने वाला नाला भी दिखाया, जिसमें गहरे पीले रंग का तेल की तरह का गाढ़ा और झाग का पानी बह रहा था।
विजया बाई बरगडे के घर के पास ही एक हैण्डपम्प भी लगा है, लेकिन इससे भी उसी तरह का पीला पानी आ रहा है। सुशीला बाई ने बताया कि उनके पति पास की ही एक फ़ैक्टरी में काम करते हैं। वे सुबह काम पर जाते समय अपने साथ पानी के लिये एक खाली केन अपनी साइकिल पर ले जाते हैं और शाम को जब लौटते हैं तो फ़ैक्टरी से एक केन पानी ले आते हैं इसी से चाय और दाल बनानी पड़ती है। हैण्डपम्प और ट्यूबवेल के पानी से न तो दाल पकती है और न ही चाय बन पाती है। यही पानी थोड़ा–थोड़ा कर दिन भर चलाना पड़ता है।
मंदरूप मालवीय बताते हैं कि इस बस्ती के लोगों ने कई बार महापौर और निगम के बड़े अधिकारियों को इसके बारे में बताया लेकिन कभी किसी ने ध्यान नहीं दिया। यहाँ तक कि हम कुछ लोग जनसुनवाई में जिला कलेक्टर से भी मिले पर अब तक कुछ नहीं हुआ। दरअसल इन फ़ैक्टरियों के पानी और अपशिष्ट पदार्थों की निकासी इस नाले के जरिए ही होती है और इसी वजह से यहाँ स्थिति ऐसी हुई है।
यहीं रहने वाले रतनदास महन्त बताते हैं कि पानी का कोई वैकल्पिक स्रोत नहीं होने से लोगों को यही प्रदूषित पानी पीना पड़ रहा है और यही पानी रोजमर्रा के काम भी लेना पड़ता है। इससे लोग बीमार होते जा रहे हैं। वे बताते हैं कि कुछ सालों पहले तक तो आसपास के खेत मालिक उनके यहाँ से पीने लायक पानी भर लेने देते थे पर अब उन्होंने भी बन्द कर दिया है।
कितनी बुरी बात है कि खेतों में साफ़ पानी दे रहे हैं और हमें पीने को भी साफ़ पानी नहीं मिल पा रहा है। हमारे साथ ऐसा भेदभाव क्यों। यहाँ रहने वाले लोग जिनमें ज्यादातर के लिये दो वक्त की रोटी ही मुश्किल है वे अपने लिये पानी का इन्तजाम कहाँ से करें।
उधर इस मुद्दे पर क्षेत्रीय पार्षद के अपने तर्क हैं। यहाँ से निर्वाचित पार्षद राजेश डांगी बताते हैं कि पहले तो और भी समस्या थी, उनके आने के बाद तो समस्या और भी कम हुई है। वे आँकड़ों में गिनाते हुए बताते हैं कि उन्होंने स्कूल के पास के ट्यूबवेल में मोटर डालकर करीब–करीब पूरी बस्ती में पाइपलाइन के जरिए पानी पहुँचाने का काम किया है पर दूषित पानी की बात पर उनके पास बताने लायक कुछ भी नहीं लेकिन वे यह जरूर जोड़ते हैं कि इसे भी दूर करने के लिये प्रयास कर रहा हूँ।
अब देवास में नगर निगम नर्मदा नदी से पानी आने के तृतीय चरण के लिये काम कर रहा है। अभी द्वितीय चरण के बाद भी पानी उतने प्रवाह से नहीं आ पा रहा है, इसी वजह से इस बस्ती को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। पर अब अगले चरण के आने से पर्याप्त पानी मिलेगा और इस बस्ती को भी उसका फायदा मिल सकेगा। फ़ैक्टरियों से प्रदूषण की बात पर वे कहते हैं कि इसकी शिकायत भी करेंगे।
महापौर सुभाष शर्मा बताते हैं कि बस्ती को साफ़ पानी देने के लिये हरसम्भव कोशिश की जाएगी। फिलहाल देवास को पर्याप्त पानी मिलने लगा है। अब क्षिप्रा के नवनिर्मित बाँध से भी पानी मिल सकेगा। इस तरह बस्ती के लिये पानी का इन्तजाम आसान हो सकेगा। इससे पहले तक तो शहर के लिये ही पानी की बहुत किल्लत थी।
जनप्रतिनिधियों के अपने दावे हैं और अपने तर्क पर फिलहाल तो बीराखेडी के लोग पीने के पानी जैसी बुनियादी सुविधा से भी महरूम हैं। जबकि सरकार विभिन योजनाओं के जरिए लोगों को पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिये करोड़ों रुपए खर्च कर रही है।
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