प्रदेश के कई औद्योगिक क्षेत्रों में कचरा निपटान और इन्फ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट नहीं होने की वजह से इस कचरे का प्रबन्धन नहीं हो सका है। उधर मप्र प्रदूषण नियंत्रण मण्डल का कहना है कि बन्द पड़े उद्योग समूह में कचरा निपटान और उसके प्रबन्धन का दायित्व राज्य सरकार का नहीं होकर केन्द्र सरकार के केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड का है। राज्य मण्डल ने इस सम्बन्ध में केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड को कई बार पत्र लिखे हैं लेकिन अब तक केन्द्रीय बोर्ड ने इन पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है। मध्य प्रदेश के कुछ बन्द पड़ चुके उद्योगों में बीते दसियों साल से इकट्ठा औद्योगिक कचरे और अपशिष्ट की वजह से कई शहरों और गाँवों का भूजल खतरनाक स्तर तक प्रभावित हो रहा है। कई जगह पानी की जाँच में यह साबित हुआ है कि इसके आसपास रहने वाले लोगों को इसकी वजह से कई बीमारियों का भी सामना करना पड़ रहा है।
पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय की रिपोर्ट भी इसकी पुष्टि करती है कि इन इलाकों में रहने वाले लोगों का पानी इतनी बुरी तरह दूषित हो चुका है कि वह पीने लायक नहीं कहा जा सकता। पानी के साथ यहाँ की हवा और मिट्टी के लिये भी यह खतरा साबित हो रहा है।
खासतौर पर भोपाल, इन्दौर, देवास और रतलाम में कई साल पहले बन्द पड़ चुके उद्योगों में अब भी हजारों टन औद्योगिक कचरा अपशिष्ट लावारिस स्थिति में पड़ा हुआ है। यह अपशिष्ट कचरा बारिश के पानी के साथ मिलकर वहाँ के भूजल भण्डारण पर अपना दूषित असर डाल रहा है, जिससे आसपास के भूजल स्रोत बुरी तरह प्रदूषित हो चुके हैं। लेकिन अब तक प्रशासन ने इस मुद्दे पर कोई ध्यान नहीं दिया है।
मप्र प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के अध्ययन की प्रारम्भिक रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है मात्र बड़े शहरों भोपाल, इन्दौर, देवास और रतलाम में ही इन बन्द पड़ चुके उद्योगों के परिसरों में अब भी हजारों टन कचरा होने की बात कही गई है। उद्योग क्षेत्रों में 20 से 40 साल गुजर जाने के बाद भी अब तक कचरा निपटान या उसके प्रबन्धन पर कोई ठोस योजना सामने नहीं आई है। प्रदेश भर में एकमात्र प्लांट ही इस पर काम कर रहा है।
अध्ययन की रिपोर्ट सामने आने के बाद इस पर पर्यावरणविदों ने सवाल खड़े किये हैं। पर्यावरणविदों के मुताबिक इस मामले में घोर लापरवाही बरती जा रही है जिसका खामियाजा इन बन्द पड़े उद्योगों के आस-पास रहने वाले हजारों लोगों को भुगतना पड़ रहा है। इससे उनके स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ रहा है। जानकारों के मुताबिक औद्योगिक अपशिष्ट का कचरा मानव स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर डालता है।
मप्र प्रदूषण मण्डल के प्रारम्भिक सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि भोपाल इन्दौर रतलाम के समीप बन्द पड़े कारखानों में रखे कचरे से गन्दा और जहरीला पानी आसपास की उपजाऊ जमीन और वहाँ के जलस्रोतों के लिये बहुत बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रहा है।
सूचना के अधिकार में मिली जानकारी के आधार पर पता चला है कि बीते दिनों प्रदेश सरकार ने चार करोड़ रुपया खर्च कर इस बात के लिये सर्वे करवाया था कि प्रदेश के इन्दौर भोपाल और रतलाम शहरों में बन्द पड़े उद्योगों में कचरे की क्या स्थिति है।
प्रदेश के कई औद्योगिक क्षेत्रों में कचरा निपटान और इन्फ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट नहीं होने की वजह से इस कचरे का प्रबन्धन नहीं हो सका है। उधर मप्र प्रदूषण नियंत्रण मण्डल का कहना है कि बन्द पड़े उद्योग समूह में कचरा निपटान और उसके प्रबन्धन का दायित्व राज्य सरकार का नहीं होकर केन्द्र सरकार के केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड का है। राज्य मण्डल ने इस सम्बन्ध में केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड को कई बार पत्र लिखे हैं लेकिन अब तक केन्द्रीय बोर्ड ने इन पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है।
प्रदूषण मण्डल की प्रारम्भिक रिपोर्ट बताती है कि इन्दौर के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में इंडो जिंक लिमिटेड नाम की कम्पनी 1998 से बन्द पड़ी है लेकिन इसके परिसर में तब से रखा हुआ करीब 18600 मीट्रिक टन कचरा अब भी यहीं पड़ा हुआ है।
18 साल बीतने के बाद भी अब तक इसका कोई प्रबन्धन नहीं किया गया है। इस कचरे में जिंक एश फाइंस नामक अपशिष्ट बड़ी तादाद में है, जो बहुत ही खतरनाक है। यह अपशिष्ट आसपास की हवा और उसके पानी को बुरी तरह प्रभावित करता है। पीथमपुर में भूजल बुरी तरह प्रदूषित होता जा रहा है। यहाँ कुछ औद्योगिक इकाइयों के घातक रासायनिक पदार्थों तथा अपशिष्ट और जहरीले पानी को सीधे जमीन में छोड़ दिये जाने से भूजल प्रदूषित हो गया है।
हालात इतने बुरे हैं कि कुछ स्थानों पर तो भूजल के इस्तेमाल की सम्भावना ही खत्म हो चुकी है। कुछ ट्यूबवेल यहाँ सफेद पानी छोड़ते हैं। करीब आधा किमी त्रिज्या के क्षेत्र में सफेद पानी ही निकलता है, जो बदबू मारता है और जाँच में भी इसे प्रदूषित पाया गया है। इससे यहाँ की करीब सवा लाख की आबादी के पीने के पानी पर भी संकट गहराता जा रहा है।
देवास में भी कमोबेश यही स्थिति है। यहाँ औद्योगिक इकाइयों के पास लगी बस्तियों का पानी बुरी तरह दूषित हो चुका है। यहाँ के हैण्डपम्प और बोरवेल लाल और सफेद रंग का दूषित बदबू मारने वाला पानी उलीचते हैं। यह पानी रहवासियों के पीने तो दूर हाथ-पैर धोने लायक तक नहीं है। बीराखेड़ी, इन्दिरानगर, अमोना, संजय नगर, राजीव नगर सहित दर्जन भर इलाके पानी की समस्या से प्रभावित हैं। यहाँ साँस लेने के लिये साफ हवा तक नहीं मिलती।
रतलाम में दोसीगाँव और नागदा अपशिष्ट कचरे के सबसे बड़े प्रभावित इलाके हैं। यह खतरनाक अपशिष्ट पदार्थों का सबसे बड़ा संग्रहकर्ता क्षेत्र है। बताया जाता है कि यहाँ कई फैक्टरी शेडों में देश में सबसे ज्यादा औद्योगिक कचरा मौजूद है। स्थानीय सज्जन इण्डिया लिमिटेड कम्पनी में आयरन स्लज की मात्रा करीब 22000 टन पड़ी है। वही जिप्सम आयरन स्लज का भण्डारण भी पास ही के खंजारवाला पत्थर खदान में बरसों से रखा हुआ है।
इतना ही नहीं रतलाम डीजल लोको शेड का प्रदूषण भी चिन्ता की बड़ी वजह है। वेस्टर्न रेलवे की इस यूनिट से करीब 40,000 लीटर ग्रीस युक्त पानी लगातार निकलता रहता है। इसके निस्तारण के लिये आज तक न तो यहाँ किसी तरह का कोई शुद्धिकरण प्लांट लगाया गया है और ना ही इसके लिये कोई कचरा प्रबन्धन जैसी व्यवस्था की गई है।
रतलाम की ही जयन्त विटामिंस कम्पनी में केमिकल और फार्मा उत्पाद बनाए जाते हैं यहाँ सेटेलाइट से किया गया सर्वे बताता है कि इसमें बड़ी तादाद में सोडियम सल्फेट, निकल ऑक्साइड और कार्बोनेट के अपशिष्ट मौजूद हैं। इसके प्रदूषण की जद में आसपास के करीब दर्जन भर से ज्यादा गाँव आते हैं। इन गाँवों का भूजल ही नहीं बल्कि गाँवों से लगी खेतों की मिट्टी और यहाँ की हवा को भी इससे खासा नुकसान हो रहा है।
भोपाल में यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरा तमाम प्रयासों और खबरों की सुर्खियाँ बनने के बावजूद भी 27000 मीट्रिक टन कचरा आज उसी तरह से रखा हुआ है। यहाँ 1969 से 1984 में फैक्टरी के बन्द होने तक करीब 10336 मीट्रिक टन खतरनाक, ज्वलनशील अपशिष्ट का कचरा यही फैक्टरी में ही इस अवधि में इकट्ठा होता रहा है। इस हजारों मीट्रिक टन कचरे के निष्पादन के लम्बे समय से कवायद चल रही है पर अब तक कुछ नहीं हुआ।
इसके अलावा मध्य प्रदेश में अस्पतालों से निकलने वाला मेडिकल वेस्ट और शहरों के ट्रेचिंग ग्राउंड भी भूजल प्रदूषण का बड़ा कारण बना हुआ है। अस्पतालों के मेडिकल कचरे को मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के दिशा-निर्देशों के मुताबिक नष्ट करने की कार्यवाही की जानी चाहिए लेकिन पूरे प्रदेश में कहीं भी इस पर गम्भीर कार्यवाही नहीं हो रही है। इससे अस्पतालों से निकला हुआ खतरनाक मेडिकल कचरा अस्पतालों के आसपास या कचरे के ढेर के साथ मिला दिया जाता है।
शिकायत के बाद नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल ने 12 मार्च 2016 को इस पर सख्त निर्देश जारी करते हुए प्रदेश के सभी सरकारी और अशासकीय अस्पतालों से निकलने वाले मेडिकल कचरे का नियमों के अनुसार निष्पादन किया जाना जरूरी कर दिया है। लेकिन इस पर भी अब तक कोई यथोचित कार्यवाही नहीं हो सकी है।
पेयजल की गुणवत्ता परखने वाली भोपाल की स्टेट रिसर्च लेबोरेटरी बताती है कि 2015 में प्रदेश भर के जिन 30 जिलों के 922 स्थानों से सैम्पल लिये गए थे, उनमें से 543 में कोई-न-कोई हानिकारक रासायनिक तत्व मौजूद था। इसी तरह 2016 सितम्बर महीने तक 22 जिलों से 315 इलाकों के पानी की जाँच में आधे से ज्यादा 193 सैम्पल में खतरनाक रासायनिक पदार्थ मिले हैं।
इनमें 12 गाँव इन्दौर शहर के सबसे बड़े ट्रेचिंग ग्राउंड क्षेत्र के पास के हैं-देवगुराडिया, दूधिया, कलारिया, पेड़मी और बड़ी कलमेर। इनके जलस्रोतों का पानी पीने योग्य नहीं पाया गया है। रिपोर्ट कहती है कि इन गाँवों के कुल 15 सैम्पल में से 12 सैम्पल खतरनाक बताए गए हैं। भोपाल शहर के पास बैरसिया के बैंसोड़ा गाँव जलस्रोतों का पानी भी लोगों को बीमार कर रहा है यहाँ के पानी में कोलीफॉर्म और ई-कोली जैसे जीवाणु मिले हैं जो ग्रामीणों को पेट और लीवर सम्बन्धी बीमारियाँ पैदा करते हैं।
स्पष्ट है कि औद्योगिक इकाइयों में बड़ी तादाद में दसियों सालों से संग्रहित खतरनाक और मानव स्वास्थ्य के लिये घातक रासायनिक कचरे के निपटान या प्रबन्धन में सरकार की कोई रुचि नहीं है और न ही अब तक यहाँ के समाज ने इस बारे में कोई बड़ी पहल की है। इससे इनके आसपास का पानी, हवा और मिट्टी प्रदूषित हो रही है।
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Post By: RuralWater