थर्मल प्लांट की राख से नौ गाँवों के 15 हजार लोग परेशान


यहाँ के लोग खाँसते भी हैं तो उनके मुँह से राख निकलती है। नौ गाँवों के करीब 15 हजार से ज्यादा ग्रामीण ताप विद्युत परियोजना से उड़ने वाली राख (फ्लाई एश) से खासे परेशान हैं। प्रदूषण मण्डल की रिपोर्ट में यहाँ की हवा में आठ गुना तक ज्यादा घातक प्रदूषण बताया गया है। उड़ती हुई राख ने उनके घरों, कच्चे–पक्के मकानों और खेतों को मटमैले सफेद रंग की परत से ढँक दिया है। हवा–पानी सब दूषित हो चुका है।

यहाँ के हजारों जलस्रोतों में इसके मिलने से लोग यही दूषित पानी पीने को मजबूर हैं। कई लोगों को गम्भीर बीमारियों का शिकार होना पड़ रहा है। अब तक इलाके के दो हजार से ज्यादा लोग तरह–तरह की बीमारियों से परेशान हैं। खेत, पेड़–पौधों, मवेशियों–पक्षियों सहित पूरे पर्यावरण के लिये इससे परेशानी बढ़ गई है। रहवासियों ने अधिकारियों से लेकर मुख्यमंत्री तक से बात की है लेकिन अब तक कोई हल नहीं निकला है।

मध्य प्रदेश के खण्डवा जिले में बीड के पास सन्त सिंगाजी ताप विद्युत परियोजना से निकल रही व्यर्थ राख अब उड़कर आसपास के भगवानपुरा, जलकुआँ, डाबरी और भुरलाय सहित नौ गाँवों तक पहुँच रही है। इससे दो हजार हेक्टेयर में फैले इन गाँवों के 15 हजार से ज्यादा लोग परेशान हैं। प्रभावित गाँवों में बीड के 3500, भुरलाय के 2700, भगवानपुरा के 2200, शिवरिया के 1600, मोहद के 1400, डाबरी के 1000, मिर्जापुर के 550, दोंगलिया के 400 और कावड़िया के 300 की जनसंख्या शामिल है।

मध्य प्रदेश प्रदूषण मण्डल ने मौके पर जाकर स्थिति का जायजा लिया तो परीक्षण में चौंकाने वाली हकीकत सामने आई। इन्दौर मण्डल के क्षेत्रीय प्रबन्धक आरके गुप्ता ने स्वीकार किया है कि यहाँ की हवा में आठ गुना तक ज्यादा घातक प्रदूषण है।

दरअसल ऐसी जगहों पर सामान्यतया हवा में एक सौ आरएसपीएम यानी साँस में न घुलने वाले घातक कण होते हैं, लेकिन इस परियोजना के आसपास छह से नौ गाँवों में आरएसपीएम की तादाद इससे आठ गुना तक ज्यादा मिली है। यहाँ इन कणों की तादाद कई जगह 700 से 800 तक भी मिली है। इसे अत्यधिक वायु प्रदूषण की श्रेणी में रखा जा सकता है। ये कण आकार में बहुत छोटे होते हैं। करीब 2.5 माइक्रोन के होने से ये आसानी से नाक के रास्ते शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। ये सीधे साँस के साथ फेफड़ों में पहुँचते हैं और इससे फेफड़ों के संक्रमण का खतरा कई गुना तक बढ़ जाता है।

.अब मण्डल ने इसके खिलाफ कार्रवाई करने के लिये खण्डवा कलेक्टर को भी रिपोर्ट के साथ पत्र दिया है। खण्डवा एडीएम ने इस बारे में कार्रवाई के लिये परियोजना अधिकारियों को सख्त निर्देश दिये हैं।

दरअसल दो साल पहले 2014 से 7 हजार 650 करोड़ की लागत के इस संयंत्र में 1200 मेगावाट बिजली उत्पादन होता है। इस दौरान बायलर को गरम बनाए रखने के लिये कोयला जलाया जाता है, इसी से हर दिन बड़ी तादाद में राख बनती है। हर दिन करीब 10 हजार टन राख जमा होती है। अब तक यहाँ करीब 20 लाख टन राख जमा हो चुकी है। जो हवा–आँधी में लगातार उड़ रही है।

इस राख को एकत्रित करने के लिये 500–500 एकड़ के दो बड़े तालाब भी बनाए गए हैं। लेकिन इस पर लगातार पानी की बौछारों से गीली नहीं करने पर ये हवा के झोकों के साथ दूर–दूर तक उड़ती है। यहाँ अब तक रैनगन नहीं लगाई गई है, जो 500 मीटर तक घूमकर राख पर पानी की बौछार करती है। बताया जाता है कि दो साल बाद यहाँ 1320 मेगावाट की एक और इकाई स्थापित की जानी है। तब उड़ने वाली राख की तादाद करीब दोगुनी हो जाएगी।

इन्हें तरह–तरह के चर्म रोग हो रहे हैं। ग्रामीणों के मुताबिक उन्हें खुजली, दाद- खाज, चमड़ी झुलस कर काली होने, गंजापन, चेहरे पर कील –मुँहासे आदि चर्म रोग हो रहे हैं। चिकित्सा विशेषज्ञ बताते हैं कि राख के शरीर में जाने से गम्भीर चर्म रोग हो सकते हैं। दरअसल ये हमारी चमड़ी पर स्थित रंध्रों को बन्द कर देते हैं, इससे न तो पसीना निकल पाता है और न ही शरीर स्वस्थ रह पाता है। सर में राख जमने से गंजापन भी हो सकता है। चर्म रोग जल्दी ठीक नहीं होते और लगातार राख के सम्पर्क में रहने से ये रोग स्थायी भी हो सकते हैं।

भुरलाय के बुजुर्ग नर्मदा प्रसाद बताते हैं कि इससे पहले उन्हें कोई बीमारी नहीं थी लेकिन बीते दो महीनों से उन्हें खुजली हो रही है, हथेलियों की चमड़ी अपने आप निकल रही है। चमड़ी पर चकत्ते बन गए हैं। रात भर खुजाते हुए गुजरती है। डॉक्टर कहते हैं कि जब तक राख उड़ेगी, इलाज का कोई फायदा नहीं। घर में बच्चों को भी परेशानी है। पूरे घर में राख-ही-राख है। झाड़ू में टोपलाभर राख निकलती है। यहीं के अनारसिंह बताते हैं कि वे दिल के मरीज हैं और अब तक इलाज पर ढाई लाख रुपए खर्च कर चुके हैं। डॉक्टर कहते हैं साफ माहौल में रहो पर यहाँ तो हर तरफ राख-ही-राख है। अब खाँसी के साथ दमा भी हो गया है। कब साँस रुक जाएगी, कुछ कहा नहीं जा सकता।

इसके अलावा राख श्वसन तंत्र के लिये भी घातक है। इससे साँस लेने में तकलीफ के साथ खाँसी, फेफड़ों सम्बन्धी रोग, टीबी और दमा तक हो सकता है। चिकित्सा विशेषज्ञ मानते हैं कि लोग यदि राखयुक्त दूषित पानी पीते हैं तो उन्हें पेट की बीमारियों के साथ लीवर और किडनी की गम्भीर बीमारियाँ हो सकती हैं। यह फेफड़ों के कैंसर का कारण भी बन सकती है। लगातार इस राख का शरीर में प्रवेश करना बहुत घातक है। भगवानपुरा के 30 साल के बबलू का कहना है कि उसे और परिजनों को बहुत परेशानी हो रही है। घर के लोग बीमार है। वह खुद भी खाँस–खाँसकर परेशान है। भुरलाय की 50 वर्षीय जसोदाबाई पति विक्रमसिंह बताती हैं कि खेत पर काम कर रही थी, तभी अचानक राख की आँधी चली। घबराहट हुई तो घर की ओर दौड़ी। घर में राख की उल्टी हुई और फिर खून की। उनके पुत्र ने उन्हें मूंदी अस्पताल में भर्ती कराया।

.यहाँ के पानी में राख घुल जाने से उसका स्वाद बिगड़ गया है और यह स्वास्थ्य के लिये भी ठीक नहीं है। ग्रामीणों के मुताबिक इन नौ गाँवों में ही तीन हजार से ज्यादा कुएँ और करीब पाँच सौ छोटे–बड़े तालाब हैं। इन सबमें राख उड़कर पहुँच चुकी है। मजबूरी में लोगों को यही पानी पीना पड़ रहा है।

इलाके की 822 हेक्टेयर खेती की जमीन बंजर होने की कगार पर है। खेतों में 4 से 8 फीट तक सफेद परत बिछी है। दो लाख से ज्यादा पेड़–पौधे और बड़ी तादाद में मवेशी और पक्षी मौत के इन्तजार में हैं। इन दिनों कपास और सोयाबीन की बोवनी के लिये जमीन तैयार करने का समय है लेकिन किसान खेतों में जमी राख का क्या करे। डाबरी, भुरलाय और भगवानपुरा के करीब सवा पाँच सौ किसान इस बार खरीफ की बोवनी नहीं कर पा रहे हैं। कृषि जानकार बताते हैं कि फास्फोरस की अधिकता से खेत धीरे–धीरे बंजर हो जाएँगे। भगवानपुरा के बबलू के खेत पर अमरुद और नीबू के पेड़ सूख रहे हैं, क्योंकि पत्तों पर राख जम गई है तो उन्हें प्रकाश संश्लेष्ण से भोजन कैसे मिले। वहीं एक एकड़ में खड़ी बैंगन की फसल में फूल आने के बाद बैंगन नहीं आ रहे हैं। यहाँ तक कि मवेशी भी बीमार हो रहे हैं। कुछ मवेशी मर चुके हैं तो कुछ बीमार हैं। गाय-भैंस आँखों में राख जाने से अंधी हो रही हैं।

बताया जाता है कि बीते साल राख की गुणवत्ता अच्छी होने से कुछ सीमेंट और ईंट कम्पनियों ने खरीद ली थी पर इस बार गुणवत्ता ठीक नहीं होने से राख नहीं बिक सकी। लोग यह भी बताते हैं कि राख डम्प करने वाले तालाब बनाने में भी गड़बड़ी है। यह कई जगह इतना उथला है कि राख पानी में डूब नहीं पाती। हैरत यह भी है कि राख उड़ने की बात अधिकारियों की जानकारी में होने के बाद भी अब तक कोई व्यवस्था नहीं की गई है। न तो इसे ढँका गया है और न ही पानी के छिड़काव, सरपत घास लगाने या बाउंड्री वाल ऊँची करने जैसे कदम उठाए गए हैं। मध्य प्रदेश के अन्य ताप विद्युत परियोजनाओं में ऐसी दिक्कत नहीं है। सारणी में भी नहीं। हालांकि वहाँ आसपास बड़े पहाड़ और जंगल है।

मध्य प्रदेश पावर जनरेटिंग कम्पनी के एमडी एपी भैरवे ने भी जब मौके का मुआयना किया तो सहसा उनके मुँह से निकला राख उड़ने का ऐसा नजारा उन्होंने कभी किसी दूसरे प्लांट में नहीं देखा। यहाँ आकर महसूस हो रहा है कि गाँव के लोगों को कितनी तकलीफ हो रही होगी। उन्होंने बीते 20 दिनों से केवल बारिश का इन्तजार कर रहे अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं करने पर नाराजगी जताई और अब प्राथमिकता से तत्सम्बन्धी कदम उठाने के निर्देश भी दिये। उन्होंने 12 बड़े अधिकारियों को और 100 मजदूरों की अलग–अलग टीम बनाकर राख के तालाब में खड़े रहकर पानी डालने और इसे पोलिथीन से दबाने की ड्यूटी भी लगाई है। शुरुआत में करीब 50 लाख रुपए कीमत का 8 लाख क्यूबिक मीटर पानी इस पर डाला जा रहा है। आसपास सरपत घास भी लगाई जाएगी।

उधर ग्रामीणों ने परियोजना द्वार पर धरना देकर राज्यपाल के नाम ज्ञापन दिया और न्यायालय जाने की चेतावनी भी दी है। ग्रामीण नेता नारायण यादव ने तो दस दिनों में सुधार नहीं होने पर ताला ठोंको की चेतावनी भी दी है। इसकी शिकायत भारत सरकार को भी की गई है। क्षेत्रीय विधायक लोकेंद्र सिंह तोमर ने मुख्यमंत्री सहित बड़े अधिकारियों को भी अवगत कराया है। श्री तोमर का दावा है कि इस मामले में उनकी सीएम से बात हो गई है और वे भी चिन्तित हैं। अब ग्रामीणों को आस जगी है कि शायद उनकी जिन्दगी से राख कम हो सके।
 

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Post By: RuralWater
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