हिमनद में दरार आने से बर्फ के पहाड़ टूटते रहते हैं जिससे कई बार मुहाने में परिवर्तित हो जाता है। बर्फ की दरारों में कई बार ग्लोशियर पुल बन जाते हैं, जो समय के साथ सूखते व गायब होते रहते हैं पर हिमनदों के मुहाने पर झीलों का बनना तबाही के संकेत देता है, हालांकि उत्तराखंड के हिमनदों में ऐसी झीलें फिलहाल नोटिस नहीं की गई हैं। हिमाचल के एक हिमनद को छोड़ दें तो देश के तमाम हिमालयी हिमनद पीछे खिसक रहे हैं।
उत्तराखंड के गोमुख ग्लेशियर (हिमनद) की सेहत को लेकर एक बार फिर चर्चाओं का बाजार गर्म है। गोमुख के बजाए गंगा की धारा के नंदनवन से निकलने से गंगोत्री नेशनल पार्क के अधिकारी भी खासे चिंतित नजर आ रहे हैं। हिमालय के भारतीय हिस्से में 9 हजार से अधिक हिमनद हैं जिनमें से करीब 5 हजार हिमनद अकेले उत्तराखंड में हैं। जाहिर है इन प्राकृतिक वरदानों में आ रहे किसी बदलाव से उत्पन्न आशंका से सबसे पहले उत्तराखंड ही प्रभावित होगा। उसमें भी जब मामला राज्य में मौजूद सबसे लंबे हिमनद गंगोत्री की हो तो चिंता जायज ही है। गंगोत्री के मुहाने को ही गौमुख कहते हैं। तीस किलोमीटर लंबा गंगोत्री हिमनद इस मायने में भी खास है कि यह पर्यावरणविदों के अध्ययन का भी लगातार आधार बनता रहा है। वर्ष 1905 से ही वैज्ञानिक इसके अध्ययन में जुटे हैं। इस लंबे अध्ययन का फायदा यह होता है कि इसमें आ रहे बदलावों का विश्लेषण करने के लिए वैज्ञानिकों को पर्याप्त आंकड़े मिल जाते हैं।बहरहाल, आंकड़े बताते हैं कि गंगोत्री को गोमुख ग्लेशियर पीछे की ओर खिसक रहा है। इस बाबत वैज्ञानिकों में कोई दो राय नहीं है। वैज्ञानिक जनसंख्या दबाव और मौसम परिवर्तन समेत तमाम तापमान बढ़ाने वाले कारकों को इसका कारण मानते हैं। खुशी की बात यह है कि इसके बावजूद उत्तराखंड के हिमनदों को वैज्ञानिक सर्वाधिक सुरक्षित श्रेणी में गिनते हैं। जबकि नेपाल और सिक्किम के हिमनदों पर बन चुकी विशाल झीलें उन्हें किसी अनहोनी की आशंका से व्यथित कर रही हैं। गढ़वाल विश्वविद्यालय में भूगर्भ विज्ञान विभाग के उपाचार्य डॉ. एमपीएस बिष्ट भारत सरकार के विज्ञान व तकनीकी विभाग से ग्लेशियर लेक आउटब्रस्ट फ्लडिंग (ग्लोफ) का अध्ययन करने की सोची है। उनके अनुसार ग्लोफ पर उत्तर भारतीय हिमालय पर नहीं के बराबर अध्ययन हुए हैं। जबकि नेपाल व सिक्किम में इस पर अध्ययन के बाद इनकी तबाही से बचने के लिए प्रस्तावित उपाय भी कार्यरूप में परिणित किए गए हैं।
डॉ. एमपीएम बिष्ट के अनुसार गोमुख का नंदन वन की तरफ शिफ्ट कर जाना वैज्ञानिक लिहाज से बहुत बड़ी घटना नहीं है। उनके अनुसार वर्ष में कई बार ग्लेशियर में मुहाने में परिवर्तन होता रहता है। हिमनद में दरार आने से बर्फ के पहाड़ टूटते रहते हैं जिससे कई बार मुहाने में परिवर्तित हो जाता है। बर्फ की दरारों में कई बार ग्लोशियर पुल बन जाते हैं, जो समय के साथ सूखते व गायब होते रहते हैं पर हिमनदों के मुहाने पर झीलों का बनना तबाही के संकेत देता है, हालांकि उत्तराखंड के हिमनदों में ऐसी झीलें फिलहाल नोटिस नहीं की गई हैं।
बदरीनाथ के पीछे माणा के पास सरस्वती नदी में ऐसी कई झीलों का पता सालों पहले लगा था। इनमें लगभग 45 झीलों को दूर संवेदी उपग्रह द्वारा देखा भी जा चुका है लेकिन इनसे अभी कोई खतरा नजर नहीं आता। झील बनना, ग्लेशियर का मुहाना परिवर्तित होना यह सब एक सतत चलती प्रक्रिया है। गंगोत्री के मुहाने का नंदन वन शिफ्ट हो जाना भी ऐसी ही एक प्रक्रिया मानी जानी चाहिए। इसको लेकर पर्यावरणविद् एवं स्वैच्छिक संगठनों की हाय-तौबा महज लोगों को जागरूक करने के लिए तो उचित हो सकता है लेकिन इससे दहशत का वातावरण नहीं बनना चाहिए।
दरअसल, हिमाचल के एक हिमनद को छोड़ दें तो देश के तमाम हिमालयी हिमनद पीछे खिसक रहे हैं। हिमाचल में एक हिमनद आगे बढ़ रहा है यानी उसमें हिम की मात्रा बढ़ रही है। ऐसे में हिमनदों के खत्म हो जाने की चिंता बनी तो हुई है पर यह कब और कैसे खत्म होंगे इस बाबत कुछ भी घोषणा करना जल्दबाजी होगा।
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