ठाणे के बदलापुर के एक कॉलेज के \"इकोसैन टॉयलेट\" की सुगंधी

इंजीनियरों के अनुमान के मुताबिक दिन भर में 6.8 घनमीटर बायोगैस का उत्पादन सम्भव है, जो कि लगभग 4 लीटर डीज़ल के बराबर होता है। इस बायोगैस का उपयोग छोटे लैम्प जलाने, होस्टल की कैण्टीन के स्टोव आदि में उपयोग कर लिया जाता है। इस सिस्टम में बायोगैस की 97% मात्रा उपयोग कर ली जाती है। बायोगैस प्लाण्ट का खराब पानी एक ट्रीटमेंट प्लांट के जरिये साफ़ करके कॉलेज के खेल मैदान में छिड़काव और पौधों के लिये किया जाता है। इस प्रकार कॉलेज कम से कम सात टैंकरों के बराबर पानी (अर्थात 2000 रुपये) की बचत प्रतिमाह कर रहा है।

कॉलेज में स्वच्छ पर्यावरणयुक्त 'टॉयलेट' पर अध्ययन


ठाणे जिले के बदलापुर में आदर्श आर्ट्स एण्ड कॉमर्स कॉलेज के छात्र एक सेमिनार हॉल में एकत्रित हैं और चहकते हुए बातें कर रहे हैं, ये बातें मित्रों, फ़िल्मों या क्रिकेट को लेकर नहीं हो रही हैं, बल्कि कॉलेज परिसर में लगे हुए एक विशाल टॉयलेट संयंत्र को लेकर हैं, क्योंकि यह अनोखा टॉयलेट बदबू नहीं मारता, बल्कि खाली पीरियड्स में समय बिताने की एक जगह तक बन गया है।

आश्चर्य मत कीजिये, बदलापुर कॉलेज के इस टॉयलेट प्रोजेक्ट में यह दर्शाया गया है कि किस तरह कम से कम पानी में बिना बदबू वाला टॉयलेट रखा जा सकता है, साथ ही नगर निगमों को इन टॉयलेट्स से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ का मैनेजमेंट करने अथवा उसे नदी-समुद्र में बहाने से भी छुटकारा मिल जाये (लेख 'लू एण्ड बीहोल्ड', डाउन टू अर्थ, 16-31 मई, 2009)।

इस प्रोजेक्ट की कल्पना सन 2007 में मुम्बई के एक होटल में आई, जहाँ इंडियन वाटर वर्क्स असोसियेशन का सम्मेलन हो रहा था। इस सम्मेलन में राज्य के नगर निकायों के विभिन्न प्रतिनिधि, पेशेवर और गैर-पेशवर स्वयंसेवी संस्थाओं के नुमाइन्दे भाग ले रहे थे। असोसियेशन की यह कार्यशाला इन लोगों को पर्यावरण स्वच्छता की छोटी-छोटी बातें समझाने के लिये आयोजित की गई। अधिकतर प्रतिनिधियों के विचारों के विपरीत बदलापुर नगर निगम के राम पाटकर ने इस इकोफैंडली टॉयलेट की अवधारणा पर प्रयोग करने का निश्चय किया। इन पर्यावरण मित्र टॉयलेट का निर्माण करने हेतु पुणे की ईकोसैन फ़ाउण्डेशन से सम्पर्क किया गया और काम चालू हुआ।

बदलापुर के आर्ट्स और कॉमर्स कॉलेज के बोर्ड ने इस प्रोजेक्ट को अपने यहाँ लगाने की अनुमति प्रदान की। पुणे स्थित इस फ़ाउण्डेशन के चेयरमैन डीबी पानसे ने अपने सलाहकारों के साथ मिलकर जर्मन टेक्नीकल कंसल्टेंसी की सहायता से इस टॉयलेट का डिजाइन बनाया, और राम पाटकर ने नगर निगम के इंजीनियरों को काम पर लगा दिया।

सितम्बर 2008 तक प्रदर्शनी हॉल सहित पूरा प्रोजेक्ट 35 लाख रुपये में पूरा हो गया। नगर निगम ने अपनी तरफ़ से 10 लाख रुपये लगाये, जबकि बाकी का खर्च मुम्बई मेट्रोपोलिटन क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण ने उठाया। होस्टल और कॉलेज के लड़कों के लिये जल रहित टॉयलेट (मूत्रालय) शुरु कर दिया गया। इंजीनियर किरण गवले बताते हैं कि यह तकनीक बहुत ही आसान, कम खर्चीली और सीधी-सादी है, प्रत्येक मूत्रालय टर्मिनल में हमने एक 130 रुपये की Membrane (पतली झिल्ली) लगा दी है, यह 'मेम्ब्रेन' उस समय अपने-आप बन्द हो जाती है जिस समय मूत्र का प्रवाह रुक जाता है। दिन के अन्त में एक वाल्व के जरिये सिर्फ़ 200 लीटर पानी का तेज प्रवाह इसमें किया जाता है और सारा अपशिष्ट एक टैंक में जमा हो जाता है। यह अपशिष्ट 4 से 6 सप्ताह बाद कॉलेज कैम्पस के बगीचे में तरल उर्वरक के रूप में प्रयुक्त कर लिया जाता है। बचा हुआ उर्वरक आसपास के किसानों को मुफ़्त में दे दिया जाता है।

मूत्रालय की तरह की शौचालय भी गहरी ढलान लिये हुए बनाये जाते हैं, जिसमें मल निस्तारण के लिये सिर्फ़ 2 लीटर पानी की आवश्यकता होती है, जबकि आम तौर पर सामान्य टॉयलेट में 10 लीटर पानी लगता है। मल का अपशिष्ट एक बायोगैस संयंत्र में चला जाता है। इंजीनियरों के अनुमान के मुताबिक दिन भर में 6.8 घनमीटर बायोगैस का उत्पादन सम्भव है, जो कि लगभग 4 लीटर डीज़ल के बराबर होता है। इस बायोगैस का उपयोग छोटे लैम्प जलाने, होस्टल की कैण्टीन के स्टोव आदि में उपयोग कर लिया जाता है। इस सिस्टम में बायोगैस की 97% मात्रा उपयोग कर ली जाती है, इसलिये यह वातावरण में मीथेन (जो कि एक ग्रीनहाउस गैस है) भी नहीं छोड़ता। बायोगैस प्लाण्ट का खराब पानी एक ट्रीटमेंट प्लांट के जरिये साफ़ करके कॉलेज के खेल मैदान में छिड़काव और पौधों के लिये किया जाता है। इस प्रकार कॉलेज कम से कम सात टैंकरों के बराबर पानी (अर्थात 2000 रुपये) की बचत प्रतिमाह कर रहा है। इस टॉयलेट का उपयोग 2600 विद्यार्थी कर रहे हैं। इस प्रोजेक्ट की सफ़लता को देखते हुए बदलापुर नगरपालिका ने ऐसे ही चार और टॉयलेट सार्वजनिक स्थानों पर लगाने का फ़ैसला किया है।

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