तय अब हमको ही करना है, हंसा तो तैयार अकेला...

Swami Sanand
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स्वामीश्री ज्ञानस्वरूप सानंद (प्रो जी डी अग्रवाल जी) के गंगा अनशन के 101वें दिन पर मेरी ओर से गंगा निवेदन

स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जीतय अब हमको ही करना है
हंसा तो तैयार अकेला
जीवित सानंद गले लगायें
या अर्थी पीछे रुदन गायें
हरिद्वार से बोल रहा हूं, तय अब हमको...
साधना में मातृ के
सानिध्य बैठा यह सन्यासी
मृत्यु को ललकारता
सानंद समय का लेख बनकर
लिख रहा इक अमिट पन्ना
न कोई निगमानंद मरा है,
नहीं मरेगा जी डी अपना
मर जायेंगे जीते जी हम सब सिकंदर
नहीं जियेगा सुपना निर्मल गंगा जी का
प्राणवायु नहीं बचेगी
बांधों के बंधन में बंधकर
खण्ड हो खण्ड हो जायेगा
उत्तर का आंचल
मल के दलदल में फंसकर
यू पी से बंगाल देस तक
डूब मरेंगे गौरव सारे।
तय अब हमको ही करना है,
हंसा तो तैयार अकेला.......
लिख जायेगा हत्यारों में नाम हमारा
पड़ जायेंगे वादे झूठे गंगाजी से
पुत जायेगी कालिख हम पर
मुंड मुंडाकर बैठे जो हम गंग किनारे ।
सन्यासी को धर्म में बांटें
या फांसें दल के दलदल में
या इस पर उंगली उठायें
या अनन्य गंग की खातिर
मुट्ठी बांध खड़े हो जायें
तय अब हमको ही करना है
हंसा तो तैयार अकेला........
गौ-गंगा-गायत्री गाने वाले, कहां गये?
इस दरिया को पाक बताने वाले, कहां गये?
कहां गये, नदियों को जीवित करने का दम भरने वाले?
कहां गये, गंगा का झंडा लेकर चलने वाले?
धर्मसत्ता के शीर्ष का दंभ जो भरते है, वे कहां गये?
कहां गये, बनारस-चित्रकूट के साथी?
क्यों चुप बैठा कांधला आज मुजफ्फर का?
‘साथ में खेलें, साथ में खायें, साथ करें हम सच्चे काम’
कहने वाले कहां गये?
अरुण, अब उत्तर चाहे जो भी दे लो
जीवित नदिया या मुर्दा तन
तय अब हमको ही करना है
हंसा तो तैयार अकेला.......
हो सके ललकार बनकर
या बनें स्याही अनोखी
दे सके न गर चुनौती,
डट सकें न गंग खातिर
अश्रु बनकर ही बहें हम,
उठ खड़ा हो इक बवंडर
अश्रु बन जायें चुनौती,
तोड़ जायें बांध-बंधन
देखते हैं कौन सत्ता
फिर रहेगी चूर मद में
लोभ के व्यापार में
कब तक करेगी
मात पर आघात गंगा
गिर गई सत्ता गिरे,
मूक बनकर हम गिरेंगे या उठेंगे
अन्याय के संग चलेंगे
या हर अन्यायी की छाती पर मूंग दलेंगे
तय अब हमको ही करना है
हंसा तो तैयार अकेला...

अरुण तिवारी ( 09868793799)
 

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