होशंगाबाद, 8 फरवरी 2013। नर्मदा और तवा के संगम स्थल बांद्राभान में ‘तृतीय अंतरराष्ट्रीय नदी महोत्सव’ की शुरुआत हुई। नदियों की संरक्षण और शुद्धिकरण की दिशा तय करने के लिए बांद्राभान में चार दिवसीय नदी महोत्सव आज 8 फरवरी से शुरू होकर 11 फरवरी तक चलेगा। कार्यक्रम में 60 से भी अधिक नदियों पर काम करने वाले लोग भागीदारी कर रहे हैं। विभिन्न नदियों और पानी पर काम करने वाले लगभग 1000 लोग इस पूरे आयोजन में भाग ले रहे हैं। कार्यक्रम का उद्घाटन आरएसएस के सरसंघसंचालक मोहन भागवत ने किया और सत्र की अध्यक्षता साहित्यकार और नर्मदा समग्र के अध्यक्ष अमृतलाल बेगड़ ने की। उद्घाटन सत्र में बोलते हुए श्री बेगड़ ने कहा कि जीवन की उत्पत्ति पानी में हुई। पर धीरे-धीरे पानी से जीवन समाप्त होता जा रहा है। कार्यक्रम का दृष्टिकोण रखते हुए भागवत जी ने कहा, ‘नदियों की चिंता सारे विश्व की चिंता है। मूल बात दृष्टिकोण की है, दृष्टि गड़बड़ हो जाने से हम प्रकृति के साथ जीना भूल गए हैं जिससे मनुष्य का जीवन खतरे में पड़ गया है।’ उद्घाटन सत्र का संचालन दीनदयाल उपाध्याय शोध संस्थान से जुड़े अतुल जैन ने किया और संयोजन नर्मदा समग्र के अनिल माधव दवे ने किया।
आयोजन में भारत ही नहीं कई देशों के प्रतिनिधि भागीदारी कर रहे हैं। इंग्लैंड, जर्मनी सहित कई देशों के नदियों पर काम करने वाले लोग कार्यक्रम में शामिल हैं। चार दिवसीय महोत्सव में देश विदेश से आए लोग नदियों के बारे में स्पष्ट नीति और नियम बनाने की कोशिश करेंगे और नीति के आधार पर नदियों पर नियम बनाएंगे जो समाज द्वारा मान्य होंगे साथ ही नदियों पर काम करने वाले लोगों के सशक्तिकरण की कोशिश की जाएगी ताकि हर छोटी बड़ी नदी पर एक कुशल नेतृत्व खड़ा किया जा सके जो अपनी अपनी नदी के मुद्दों की आवाज उठा सकें।
उद्घाटन सत्र के अवसर पर बोलते हुए अमृतलाल बेगड़ जी ने कहा कि समुद्र ही ब्रह्म है। सारे जीवों की उत्पत्ति समुद्र से हुई है। समुद्र विष्णु भी है। धरती के तीन चौथाई भाग में फैले और 97 फीसदी पानी धारण करने की क्षमता रखता है सारा मानसून का पानी समुद्र से ही आता है जिससे खेत-खलिहान, जमीन-जंगल, कुंए- बावड़ी सब में जीवन मानसून से ही आता है। समुद्र ही संहार कर सकता है। अगर हम नदियों को मारते रहे, जल-जंगल-जमीन का सत्यानाश करते रहे तो ग्लोबल वार्मिंग, विषाक्त होती नदियां और जहरीली हवा धरती पर जीवन को संकट में डाल देगी।
मोहन भागवत जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि 300 साल पहले तक पर्यावरण की चिंता करने का कोई कारण नहीं था क्योंकि आवश्यकताएं कम थीं और जीवन शैली प्रकृति के अनुरूप थी इसलिये प्राकृतिक पूरणीय संसाधनों के भरोसे अपना काम चलता रहता था, पर धीरे-धीरे हमने अपूरणीय संसाधनों पर निर्भरता बढ़ा ली है। प्राकृतिक जीवन भंड़ार खाली होते जा रहे हैं। नदियों को जीवन देने के लिये हमें जीवन दृष्टि में परिवर्तन की जरूरत है और एक समग्र जीवन दृष्टि के अनुरूप शिक्षा, संस्कार और नेतृत्व को आगे लाना होगा।
अनिल माधव दवे ने भी नदी की उदारता का जिक्र करते हुए कहा कि हमें नदी के साथ संवाद करने की जरूरत है। हम नदी के साथ बात करें तो वो भी हमारे साथ बात करेगी। हम उसके साथ छेड़छाड़ करेंगें तो नदी भी हमें दंड देगी। नदी मात्र पानी नहीं है बल्कि जीवन है उस जीवन को बनाए रखने के लिये उसके साथ रिश्ता और संवाद बनाए रखने की जरूरत है तभी हमारी नदियां हमारे लिये फलदायक और शुभचिंतक होंगी।
आयोजन में भारत ही नहीं कई देशों के प्रतिनिधि भागीदारी कर रहे हैं। इंग्लैंड, जर्मनी सहित कई देशों के नदियों पर काम करने वाले लोग कार्यक्रम में शामिल हैं। चार दिवसीय महोत्सव में देश विदेश से आए लोग नदियों के बारे में स्पष्ट नीति और नियम बनाने की कोशिश करेंगे और नीति के आधार पर नदियों पर नियम बनाएंगे जो समाज द्वारा मान्य होंगे साथ ही नदियों पर काम करने वाले लोगों के सशक्तिकरण की कोशिश की जाएगी ताकि हर छोटी बड़ी नदी पर एक कुशल नेतृत्व खड़ा किया जा सके जो अपनी अपनी नदी के मुद्दों की आवाज उठा सकें।
उद्घाटन सत्र के अवसर पर बोलते हुए अमृतलाल बेगड़ जी ने कहा कि समुद्र ही ब्रह्म है। सारे जीवों की उत्पत्ति समुद्र से हुई है। समुद्र विष्णु भी है। धरती के तीन चौथाई भाग में फैले और 97 फीसदी पानी धारण करने की क्षमता रखता है सारा मानसून का पानी समुद्र से ही आता है जिससे खेत-खलिहान, जमीन-जंगल, कुंए- बावड़ी सब में जीवन मानसून से ही आता है। समुद्र ही संहार कर सकता है। अगर हम नदियों को मारते रहे, जल-जंगल-जमीन का सत्यानाश करते रहे तो ग्लोबल वार्मिंग, विषाक्त होती नदियां और जहरीली हवा धरती पर जीवन को संकट में डाल देगी।
मोहन भागवत जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि 300 साल पहले तक पर्यावरण की चिंता करने का कोई कारण नहीं था क्योंकि आवश्यकताएं कम थीं और जीवन शैली प्रकृति के अनुरूप थी इसलिये प्राकृतिक पूरणीय संसाधनों के भरोसे अपना काम चलता रहता था, पर धीरे-धीरे हमने अपूरणीय संसाधनों पर निर्भरता बढ़ा ली है। प्राकृतिक जीवन भंड़ार खाली होते जा रहे हैं। नदियों को जीवन देने के लिये हमें जीवन दृष्टि में परिवर्तन की जरूरत है और एक समग्र जीवन दृष्टि के अनुरूप शिक्षा, संस्कार और नेतृत्व को आगे लाना होगा।
अनिल माधव दवे ने भी नदी की उदारता का जिक्र करते हुए कहा कि हमें नदी के साथ संवाद करने की जरूरत है। हम नदी के साथ बात करें तो वो भी हमारे साथ बात करेगी। हम उसके साथ छेड़छाड़ करेंगें तो नदी भी हमें दंड देगी। नदी मात्र पानी नहीं है बल्कि जीवन है उस जीवन को बनाए रखने के लिये उसके साथ रिश्ता और संवाद बनाए रखने की जरूरत है तभी हमारी नदियां हमारे लिये फलदायक और शुभचिंतक होंगी।
Path Alias
/articles/tartaiya-antararaasataraiya-nadai-mahaotasava-kaa-udaghaatana
Post By: admin