तस्वीर में आप नीरमहल देख रहे हैं, अगरतला के इस खूबसूरत जगह को देखते हुए यह सोच सकते हैं कि अगरतला को भी जल संकट से दो-चार होना पड़ सकता है।
त्रिपुरा की सरकार ने राजधानी अगरतला के पाँच लाख निवासियों को अगरतला से 70 किलोमीटर दूर स्थित गुमती नदी से पानी लाकर पिलाने का निर्णय किया है। शहर की जरूरतों को पूरा करने वाली हावड़ा नदी में पानी की कमी के कारण अगरतला में जल संकट के मद्देनज़र सरकार ने 665 करोड़ रुपये की इस योजना का निर्णय लिया है, हालांकि यह निर्णय विवादों में घिर गया है, क्योंकि विशेषज्ञों के मुताबिक यह योजना अव्यावहारिक और खर्चीली है। विभिन्न वैज्ञानिकों और पर्यावरणवादियों के अनुसार सरकार की प्राथमिकतायें ही गलत हैं। सरकार को हावड़ा नदी के सुधार पर पैसा खर्च करना चाहिये, क्योंकि गुमती नदी का रास्ता बदलने या उसमें से पानी लाने पर गुमती किनारे खेती करने वाले किसानों के सामने जीवन का संकट खड़ा हो जायेगा।
त्रिपुरा के पेयजल और सफ़ाई प्रबन्धन के मुख्य इंजीनियर सुमेश चन्द्र दास बताते हैं कि “अगरतला की रोजाना की आवश्यकता लगभग साढ़े पाँच करोड़ लीटर की है, हावड़ा नदी से लगभग ढाई करोड़ लीटर की पूर्ति हो जाती है, तथा बाकी का पानी भूजल के भरोसे ही आता है। भूजल के विभिन्न स्रोत धीरे-धीरे सूखते जा रहे हैं, ज़मीन में पानी भी नीचे जा रहा है, जबकि हावड़ा नदी का जल तेजी से प्रदूषित हो रहा है…”। केन्दीय भूजल बोर्ड के हाइड्रोलॉजिस्ट आरसी रेड्डी के अनुसार गत पचास साल से हावड़ा नदी का वार्षिक बहाव 36,000 क्यूबिक मीटर पर स्थिर रहा है, असली समस्या है नदी की तलछटी में जमी हुई गाद और दोषपूर्ण संग्रहण तकनीक और ढाँचे…”। सन् 2004 में त्रिपुरा राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड (TSPCB) द्वारा कराये गये एक अध्ययन के मुताबिक शहर के लगभग 1000 सार्वजनिक शौचालयों आदि का गंदा पानी सीधे हावड़ा नदी में मिल रहा है, जिसके कारण पानी में “कोलीफ़ॉर्म” (Coliform) नामक बैक्टीरिया जिसकी मानक मात्रा 100 मिली में 500 होना चाहिये वह 1800 के स्तर तक पहुँच चुकी है। पर्यावरणवादी और भूतपूर्व विधायक अनिमेष देबारामा कहते हैं कि पानी की यह समस्या इतनी दूर से पानी लाने से हल नहीं होगी, बल्कि विभिन्न जल शुद्धिकरण संयंत्रों को ठीक करके तथा उनकी क्षमता बढ़ाकर ही दूर की जा सकती है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष मिहिर देब कहते हैं कि नदी का बढ़ता प्रदूषण स्तर चिंता की बात है। वर्षाकाल में नदी का प्रवाह तो ठीक रहता है लेकिन शीतकाल आते-आते इसमें भारी कमी हो जाती है, इस बात को लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग भी मानता है… उनके अनुसार अगरतला की सात घनी और तंग बस्तियों में अक्टूबर 2008 से पर्याप्त पानी नहीं पहुँच रहा है।
70 किमी दूर से पानी लाने की इस योजना का क्रियान्वयन राष्ट्रीय भवन निर्माण निगम द्वारा राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन के अन्तर्गत किया जा रहा है। इस योजना हेतु कुल आवंटित धन में से 78 करोड़ रुपये का एक हिस्सा केन्द्र सरकार द्वारा 16 जनवरी 2009 को जारी किया जा चुका है। कुल मिलाकर स्थिति फ़िलहाल जस की तस है। एक समस्या को ठीक से हल न करके दूसरी समस्या को आमंत्रित किया जा रहा है, ………।
इतिहासकार कैलाश चन्द्र सिंह के मुताबिक त्रिपुरा शब्द स्थानीय कोकबोरोक भाषा के दो शब्दों का मिश्रण है - त्वि और प्रा । त्वि का अर्थ होता है पानी और प्रा का अर्थ निकट। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में यह समुद्र (बंगाल की खाड़ी ) के इतने निकट तक फैला था कि इसे इस नाम से बुलाया जाने लगा। पानी के निकट का त्रिपुरा आज पानी से दूर हो रहा है।
मूल रिपोर्ट – बिस्वेन्दु भट्टाचार्जी, सीएसई (अनुवाद – सुरेश चिपलूनकर)
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