इनका संकल्प है कि वह बचें न बचें, गंगा बचनी चहिए।
उनकी चाहत है कि गंगा बचे न बचे, गंगापुत्र बचने चाहिए।
इनका संकल्प है कि वह कहते-कहते हार गये। अब कोई रास्ता नहीं।
तपस्या ही गंगा को धरा पर लाई थी। अब तपस्या ही गंगा का सत् वापस लौटायेगी।
उनका कहना है कि रास्ता है.... बीच का रास्ता।
इनकी तपस्या भी रह जायेगी, उनकी टेक भी।
......तो लो निकल गया बीच का रास्ता। गंगा, गंगापुत्र और गंगा को राष्ट्रीय नदी बनाने वाली सरकार के बीच बन गया एक और पुल। मिल गई राहत। दोनों को थोड़ी-थोड़ी।
उन्होंने एक बैठक दी। बैठक का आमंत्रण दिया। बैठक में एजेंडे पर चर्चा की गारंटी दी। इन्होंने भी तपस्या जारी रहने की गारंटी दी।
इससे पहले कि यह तरल ग्रहण करें, उससे पहले ही बनारस में जल छोङ दिया दूसरे तपस्वी गंगाप्रेमी भिक्षु ने। जीते जी हो गया झंडा बदल।
सरकार को इन्होंने दिखा दिया एकमत का आइना। सरकार ने भी इन्हें दिखा दी थोड़ी सी संवेदना। गंगा अभी भी वहीं की वहीं हैं।
तपस्या चालू आहे; सरकार भी.....
स्पष्ट है कि तपस्या टूटी नहीं। जारी है। गंगा लक्ष्य प्राप्ति का अंतिम आदेश अभी भी प्रतीक्षित है। किंतु अंतरिम आदेश मिल गया है। अतः एक पड़ाव पूरा हुआ। एक कदम आगे बढ़े।
13 जनवरी को गंगा सेवा अभियानम् के प्रस्ताव पर पांच गंगापुत्रों द्वारा गंगासागर में लिए गये ’गंगा तपस्या संकल्प’ की महायात्रा का पहला पड़ाव बना नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के जवाहरलाल नेहरु सभागार के प्रथम तल पर बना कमेटी रूम। प्रयाग से शुरू तपस्या का 70वां दिन। तारीख-23 मार्च, 2012 यानी विक्रम संवत् 2069 के चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा अर्थात वर्ष की पहली तिथि। नवरात्र का पहला दिन। गुड़ी पड़वा। सरकारी निमंत्रण पर आये कतारबद्ध कैमरे, माइक और कलम। सज गया मंच। प्रधानमंत्री की ओर से वार्ता के लिए अधिकृत प्रधानमंत्री कार्यालय के राज्य मंत्री वी. नारायणसामी और कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल। पत्रकार पक्ष से आवाज आई-क्या कोयले की कालिख गंगा से ही धुलेगी? क्या आपने कभी कानपुर की टेनरिज की कालिख गंगा में जाने से रोकने की कोशिश की? श्री श्रीप्रकाश जायसवाल कानपुर से सांसद हैं। बोले- हां! कभी - कभी। खैर! मंच पर मौजूद मेरठ के मौजूदा भाजपा सांसद राजेन्द्र अग्रवाल ने भी सुना; बोले कुछ नहीं। कानपुर की टेनरिज के कचरे से मेरठ में गंगा काली नहीं, कमेलों में कत्ल मवेशियों के खून के प्रदूषण से लाल होती है। वह भी कोशिश करते हैं।... किंतु कभी-कभी।
गंगा सेवा अभियानम् के भारत प्रमुख स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद (प्रो. जीडी अग्रवाल)। नाक में नली, चेहरे पर कमजोरी पर वाणी में ओज। सार्वभौम प्रमुख दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद उनके द्वारा सरकार से वार्ता के लिए अधिकृत गंगा मुक्ति संग्राम के संयोजक एवम् श्री कल्किपीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम् और जलपुरुष राजेन्द्र सिंह। पीछे स्वामी नारायण गीरि, सरकारी डाक्टरों की टोली, मंत्री स्टाफ और भी एक बड़ी भीड़। मेज पर गंगाजल और थोड़ी सी मिठास मधु की। फूलों का गुलदस्ता जमीन पर। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के हाथों स्वामी ज्ञानस्वरूप ने ग्रहण किया दो चम्मच तरल। हो गई रक्षा प्राण की भी, प्रण की भी। स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद को संबोधित कुल जमा दो पेज का एक दस्तावेज और उस पर हुए चार हस्ताक्षर लाये थे यह मौका। सहमति के तीन मुख्य बिंदु थे-’’ राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की अगली बैठक 17 अप्रैल को नई दिल्ली में होगी। स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद समेत गंगा सेवा अभियानम् के सात सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल को विशिष्ट आमंत्रित सदस्य के तौर पर उक्त बैठक में बुलाया जायेगा। बैठक में गंगा सेवा अभियानम् द्वारा प्रस्तावित एजेंडे को प्राथमिकता देते हुए चर्चा की जायेगी।’’
“विषय से जुड़े कुछ मुख्य मसले, जिन्हें भिन्न बैठकों में जीडी द्वारा मौखिक तौर पर सरकारी प्रतिनिधियों को बताया गया संबंधित विभाग व एजेंसियां उन पर गंभीरता से विचार करेंगे। फिर जीडी से तपस्या समाप्त करने व प्राधिकरण बैठक में पधारकर उसे गरिमा प्रदान करने का अनुरोध। एक बार पुनः आश्वासन। भारतीय लोगों के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन में गंगा की महत्ता को सरकार पूरी मान्यता देती है। सरकार, गंगा के संरक्षण के लिए सभी कदमों को उठायेगी। सरकार गंगा का अविरल प्रवाह, शुद्धता और पवित्रता सुनिश्चित करेगी।’’ तुलना कीजिए कि उक्त मसौदा लक्ष्य के कितना करीब है, कितना दूर। आज भी तपस्या की बुनियादी मांगें वहीं हैं- “अविरल गंगा: निर्मल गंगा। भगीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी, नंदाकिनी, पिंडर और विष्णुगंगा। पंचप्रयाग बनाने वाली गंगा की इन पांचों मूल धाराओं पर बन रही परियोजनायें निरस्त/बंद हों। गंगा और गंगा में मिलने वाले किसी भी नदी-नाले का प्रदूषित करने वाले चमड़ा, पेपर आदि उद्योगों को इनसे 50 किमी दूर खदेड़ा जाये। नरोरा से प्रयाग तक हमेशा न्यूनतम 100 घनमीटर प्रति सेकेंड प्रवाह मिले। कुंभ व माघ मेले के अलावा स्नान आदि पर्वों पर 200 घनमीटर प्रति सेकेंड का न्यूनतम प्रवाह हो।’’ जाहिर है कि इन प्रारम्भिक कदमों के बगैर गंगा की अविरलता- निर्मलता का सपना लेना ही बेकार है।
हालांकि सहमति का यह मसौदा उस वक्त आया, जब कहा जाने लगा था कि सरकार उन पर इतनी मेहरबानी करे कि कोई मेहरबानी न करे। बावजूद इसके सहमति के इस मसौदे को अंतिम लक्ष्य की दिशा में बढ़े एक कदम से ज्यादा कुछ नहीं कह सकते। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी ने इसे अंतरिम आदेश मानते हुए उम्मीद जाहिर की कि अंतिम आदेश भी आ ही जायेगा। लेकिन तब तक तपस्या जारी रहेगी। कहा कि आंदोलनों से राष्ट्र पीछे जाता है। अशांति फैलती है। लेकिन यदि ईश्वरेच्छा यही हुई तो गंगा मुक्ति का ऐसा संग्राम छेड़ा जायेगा कि गंगा को मिले वोटों के आगे सारे कैबिनेट को मिले वोट भी कम पड़ जायेंगे। इसी के साथ स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी ने सहमति की मौखिक बातों को कागज पर लिखकर श्रीप्रकाश जायसवाल को सौंप दिया, ताकि याददाशत कायम रहे। ईश्वर से प्रार्थना की कि सरकार की संवेदना बलवती हो।
श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा कि गंगा इनकी भी चिंता है और सरकार की भी। गंगा जरूरी है, लेकिन गंगा के काम के लिए स्वामी ज्ञानस्वरूप जी भी जरूरी हैं। इसलिए हमारी प्राथमिकता है कि इनके प्राण बचने चाहिए। जीडी अग्रवाल जी ने कहा- “लक्ष्मी का स्थान विष्णु के हृदय में है और गंगा का विष्णु के पदों में। इसीलिए लक्ष्मी हमेशा ही गंगा को अपने से नीचा समझती है। यही गंगा की समस्या है। इस समय तो लगता है कि जैसे गंगा लक्ष्मी की बंधक हो गई है। मैं इंजीनियर हूं। समयबद्ध कार्यक्रम में यकीन रखता हूं। यूं भी मेरे पास समय कम है। प्रयाग में होने वाले कुंभ तक अविरल-निर्मल गंगा के कार्य के हो जाने में यकीन रखता हूं। ताकि करोड़ों स्नानार्थियों को मल में स्नान न करना पड़े। यदि ऐसा न हो सके, तो गंगा को मां कहना और अपने को समर्पित कहना सफेद झूठ है; जो मैं नहीं बोलना चाहता। अतः मां के हित के लिए बेटे को समर्पित करें, न कि बेटे के हित के लिए मां।’’
सचमुच! यही संकल्प है जीडी अग्रवाल का। लेकिन झूठ नहीं कि जब तक गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए जरूरी सिद्धांतों को व्यवहार में उतारने की पुरजोर कोशिश नहीं होती; समाज, सरकार और बाजार तीनों में इच्छाशक्ति और संकल्प का उदय नहीं होता, तब तक गंगोदय नहीं होगा। फिर अनशन होंगे, फिर गंगा मैली होगी बांधी जायेगी। संबोधन के मुख्य क्षणों में फोटोग्राफरों को झपटते देख फिर चीखेंगे वीडियो कैमरामैन- इस्टिल! इस्टिल!! और गंगा भी रहेगी बस! इस्टिल! इस्टिल ही। कारण कि सामाजिक-राजनैतिक समस्या होने से पहले, गंगा की समस्या एक कार्पोरेट समस्या है। लक्ष्मी की बंधक होने से बचे, तब न ला पायेंगे भगीरथ गंगा को धरती पर उतारकर। बनारस के मुफ्ती और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के मौलवी मास्टरों ने की है दुआ। आप भी दुआ कीजिए! राजा सगर की तीन पीढ़ियों से नहीं, एक ही पीढ़ी के तीन से चल जाये काम। स्वामी निगमानंद, स्वामी ज्ञानस्वरूप और गंगाप्रेमी भिक्षु।
सचमुच! यही संकल्प है जीडी अग्रवाल का। लेकिन झूठ नहीं कि जब तक गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए जरूरी सिद्धांतों को व्यवहार में उतारने की पुरजोर कोशिश नहीं होती; समाज, सरकार और बाजार तीनों में इच्छाशक्ति और संकल्प का उदय नहीं होता, तब तक गंगोदय नहीं होगा। फिर अनशन होंगे, फिर गंगा मैली होगी बांधी जायेगी। बनारस के मुफ्ती और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के मौलवी मास्टरों ने की है दुआ। आप भी दुआ कीजिए! राजा सगर की तीन पीढ़ियों से नहीं, एक ही पीढ़ी के तीन से चल जाये काम। स्वामी निगमानंद, स्वामी ज्ञानस्वरूप और गंगाप्रेमी भिक्षु।
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