विश्व पर्यावरण दिवस, 05 जून 2016 पर विशेष
झाँसी शहर से करीब 70 किलोमीटर दूर खरेला गाँव है। भीषण गर्मी और तेज धूप के बीच गाँव बेहद शान्त लगता है। खबर थी कि यहाँ के तालाब बुरे हाल में हैं। जब बूँद-बूँद पानी के लिये लोग भटक रहे हों। पानी के लिये संघर्ष बनी हो। पुलिस के पहरे के बीच पानी बँट रहा हो। पानी बिक रहा हो। ऐसे में तालाब जिन्हें भुला दिया गया, काफी प्रासंगिक हो जाते हैं।
इसी प्रसंग के साथ गाँव में घुसने के बाद तालाबों को तलाश करते हैं, लेकिन निगाहों को कामयाबी नहीं मिलती। बातचीत के बीच गाँव के लोग बताते हैं जहाँ हम खड़े थे उसी जगह एक जिन्दा तालाब था। हैरत हुई कि जहाँ हम खड़े थे वहाँ कुछ साल पहले तक 7 बीघा में फैला तालाब हुआ करता था। 7 बीघा के मैदान को देख अन्दाजा लगाना मुश्किल था कि यहाँ कभी तालाब भी फैला हुआ था। तालाब सिकुड़कर 70 फीट चौड़ाई में रह गया है। या ये कहें कि इसे छोटा कर लोगों ने 70 फीट सीमित कर दिया है।
इस मैदान पर लोगों के जानवर बाँधे जाते हैं। गाँव के लोगों ने ही कंडों (गोबर के उपले) के भण्डारण के लिये बिठैया (स्थानीय भाषा में घास फूस से बना गोबर के उपलों को रखने का स्थान) बना ली हैं। तालाब भी गहरा भी हुआ करता था, लेकिन सतही मैदान को देखकर नहीं लगता कि यह भी गहरा रहा होगा। कभी लोगों ने मिट्टी डाली। कभी कूड़े-करकट से भरते-भरते इसकी गहराई खत्म हो गई।
7 बीघा को 70 फीट में तालाब के अवशेष देखने के बाद दूसरे तालाब की ओर रुख किया। बताया गया कि इस तालाब से मुश्किल से 800 मीटर दूर एक और तालाब है। 2 बीघा क्षेत्रफल में फैला यह तालाब किसी पुरानी सभ्यता, विलुप्त हो चुकी संस्कृतियों की तरह लगता है। यहाँ खड़े लोगों को सिर्फ हमें ही नहीं बल्कि अपने बच्चों को भी बताने की जरूरत पड़ती है कि यहाँ कभी तालाब था।
2 बीघा जगह जहाँ कभी तालाब हुआ करता था वहाँ लोगों के घर हैं। एक पक्का मकान तो तालाब के बीचों बीच है। गाँव के लोगों के ही 9 घर इस तालाब के अन्दर खड़े कर दिये गए हैं। सुलतान सिंह बताते हैं कि जिन्हें अपने पास जमीन की कमी लगी उन्होंने सूखे पड़े तालाब को ही ठिकाना बना लिया।
तालाबों की स्थिति देखी तो लोगों की जागरुकता और शासन के अभियान पर सवाल खड़े हो गए। यहाँ तालाब का नामोनिशान मिटा दिये गए। बाकी जमीन पर पेड़ व चकबन्दी कर कब्जा कर ली। रोड से तालाब के किनारे गाँव के लिये निकली लिंक रोड को भी कब्जा लिया गया। यह रोड पूरी तरह बन्द हो गया।
करीब दो हजार की आबादी के इस गाँव के निवासी शंकर सिंह ने बताया कि लम्बे अरसे से इन तालाबों की खुदाई नहीं हुई। अनदेखी का फायदा लोगों ने उठाया और तालाबों पर कब्जे कर लिये।
तालाब के आसपास के खेत सूखे, बारिश होती है तो दाना उगता है
तालाब खत्म होने के बाद से खेत सूख जाते हैं। खेती बारिश के पानी पर निर्भर हो गई। राकेश सिंह ने बताया कि कभी ये तालाब खेतों की सिंचाई के साधन थे। बारिश होने पर तालाब भर जाते थे। सूखा पड़ने पर यह पानी काम आता था, लेकिन तालाबों पर कब्जे के बाद अगर बारिश नहीं होती तो खेती नहीं होती। बारिश होने पर तालाब भर जाते थे। सूखा पड़ने पर यह पानी काम आता था, लेकिन तालाबों पर कब्जे के बाद अगर बारिश नहीं होती तो खेती नहीं होती। बाकी जमीन पर पेड़ व चकबन्दी कर कब्जा कर ली। रोड से तालाब के किनारे गाँव के लिये निकली लिंक रोड को भी कब्जा लिया गया। यह रोड पूरी तरह बन्द हो गया।
तालाब के बाद कुएँ सूखे, निजी हैण्डपम्प भी साथ छोड़ चुके हैं
दावों, दौरों और बयानों से राज्य सरकार तालाबों के प्रति गम्भीर नजर आती है। बुन्देलखण्ड में दो हजार तालाब खोदे जा रहे हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आज 4 जून 2016 को महोबा में तालाबों को देखने पहुँचे। वहीं, करीब दो हजार की आबादी के इस गाँव के निवासी शंकर सिंह ने बताया कि लम्बे अरसे से इन तालाबों की खुदाई नहीं हुई। अनदेखी का फायदा लोगों ने उठाया और तालाबों पर कब्जे कर लिये। भैयालाल ने बताया कि गाँव में कुछ ही पुराने कुएँ हैं। इनमें से कुछ बन्द हो गए, जबकि कई सूख गए। गाँव के हर घर में निजी हैण्डपम्प लगे हैं। लगभग सभी हैण्डपम्प सूख चुके हैं। सरकारी हैण्डपम्प ही पानी का एकमात्र जरिया बचा है। पिछले कई सालों से तालाबों पर कब्जा इन हालातों के लिये जिम्मेदार दिखते हैं। मलखान सिंह ने बताया कि गाँव के लोगों के अनुसार 2008 में भी भयंकर सूखे के दौरान हैण्डपम्प भी सूख गए थे। गाँव के शंकर सिंह ने बताया कि कभी यह तालाब पूरा भरा रहता था। खेतीबाड़ी इसी पानी से होती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं होता। गाँव का पानी एक तालाब में जाता था, लेकिन कब्जा धारकों ने नाली का रास्ता भी बन्द कर दिया। हाकिम सिंह के अनुसार गाँव के 21 घर ऐसे हैं, जिनका पानी घर के बाहर गाँव की गलियों में फैलता है। गाँव में दो गुट बन गए हैं, जो अक्सर झगड़ते रहते हैं।
इलाके के एसडीएम राकेश कुमार इन तालाबों की हालत पर बातचीत के दौरान दावा करते हैं कि उनके इस इलाके में 139 छोटे बड़े तालाब हैं, जिनका गहरीकरण होना है। खरेला गाँव के तालाबों को भी कब्जा मुक्त कराया जाएगा ताकि बारिश का पानी संरक्षित हो सके। अब तक कब्जा मुक्त क्यों नहीं कराया गया। कब तक कब्जा मुक्त हो पाएगा। इसका सीधे तौर पर जवाब किसी अधिकारी के पास नहीं है।
कंठ सूख जाये तो मोदी-अखिलेश को गाली मत देना
आज तालाब खबर हैं। कल इस गाँव के प्यासे लोग खबर होंगे। अभी हैण्डपम्प पानी उगल रहे हैं। कल साथ छोड़ देंगे। पानी के लिये भटकना पड़ जाएगा। पानी के लिये प्रदर्शन होंगे। खाली मटके लहराए जाएँगे। पानी का इन्तजाम नहीं होने पाने के बीच मोदी या अखिलेश सत्ता में होंगे तो इन्हें इसके लिये गालियाँ मिलेंगी। आरोप लगाए जाएँगे। सरकार कुछ नहीं करती कहा जाएगा, लेकिन एक सवाल है। मोदी-अखिलेश का छोड़िए, गाँव के लोग क्या कर रहे हैं। तालाब घर बनाने के लिये नहीं है। पीढ़ियों के लिये पानी सहेजने के लिये हैं। बारिश आने वाली है। मौसम विभाग द्वारा इस बार औसत से ज्यादा बारिश होने का अनुमान है। पानी कहाँ सहेजा जाएगा, इस सवाल पर गाँव के लोग चुप हो जाते हैं।
तालाबों की हालत देख एक लेखक की कविता की कुछ पंक्तियाँ भी जेहन में आ रही हैं। लेखक का नाम याद नहीं। ये पंक्तियाँ भी खरेला गाँव में मेरी तरह पानी की पहचान और तालाब को तलाशने का प्रयास करती हैं।
किधर गया, कल था यहाँ पानी वाला ताल
लिये होंठ सूखे, समय पूछे यही सवाल
किधर गया, कल था यहाँ पानी वाला ताल,
ना जाने किस मोड़ पर चेतेगा इंसान
पानी-पानी हो रही, पानी की पहचान।
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