तीरथन जलधारा पर बिजली परियोजना का विरोध

एक ओर जहां पीने के पानी की समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है वहीं तीरथन जलधारा आज भी इतनी निर्मल है कि करीब 40 किमी. तक लोग इसके पानी का उपयोग पीने के लिए करते हैं। उनका कहना है कि तीरथन जलधारा में पल रही ट्राउट प्रजाति की मछलियों की बदौलत ही घाटी में पर्यटन पनप रहा है।

कुल्लू जिले की तीरथन जलधारा पर बिजली परियोजनाओं को फिर से हरी झंडी मिलने की संभावना के चलते तीरथन घाटी के लोग एक बार फिर लामंबद होने लगे हैं और इसके लिए कानूनी लड़ाई लड़ने को भी तैयार हैं। बहरहाल घाटी को लेकर सरकार की उदासीनता से घाटी में खासा रोष पनप रहा है। ट्राउट मछली आखेट के शौकीनों की पसंदीदा सैरगाह तीरथन का अस्तित्व ही तीरथन जलधारा से है। तीरथन और उसकी सहायक फलाचन जलधारा में ट्राउट बहुतायत में पाई जाती हैं। इन धाराओं में पाई जाने वाली मछलियों के पकड़ने के लिए देश-विदेश से सैलानी घाटी में दस्तक देते हैं। संभवतः 1909 में एक अंग्रेज सैलानी द्वारा इस जलधारा में लाई गई। इस प्रजाति के संरक्षण व संवर्धन की दिशा में 1975 में पहली बार तत्कालीन डॉ. परमार सरकार ने प्रयास किए थे। तब बठाहड़ से लारजी के मध्य की तीस किमी. लंबी इस जलधारा में मछली के आखेट पर पाबंदी लगा दी गई थी।

इसके नतीजे भी सार्थक रहे और अब घाटी ट्राउट के शौकीनों का प्रमुख ठहराव बन चुका है। घाटी में दस्तक देने वाले ट्राउट प्रेमी सैलानियों में न्यायविद, राजनयिक, राजनीतिज्ञ, अनुसंधानकर्ता, उद्योगपति, छोटे व बड़े पर्दे के कई कलाकार भी शामिल हैं। जैव विविधता के सरंक्षण की दृष्टि से विश्व विख्यात ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क ने तीरथन घाटी के अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य और शांत वादियों को अलग पहचान दी। भले ही आज घाटी में देश-विदेश के मछली प्रेमियों, प्रकृति प्रेमियों और रोमांचकारी गतिविधियों के शौकीनों का प्रमुख पड़ाव रहा हो लेकिन आज भी तीरथन घाटी को पहचान की दरकार है और घाटी सरकार की नजरें इनायत को तरस रही हैं। घाटी से ताल्लुक रखने वाले पूर्व विधायक दिलेराम शबाव कहते हैं कि सरकार और सरकारी अमला घाटी के महत्व को समझने में नाकाम रहे हैं। उनका कहना है कि बिजली परियोजनाओं के निर्माण के नाम पर अब निर्मल तीरथन जलधारा और उसमे विचरण करने वाली ट्राउट के अस्तित्व को मिटाने की तैयारी चल रही है।

उनका कहना है कि घाटी में पनप रहे पर्यटन को तहस-नहस करने का हुक्मरान और राजनीतिज्ञ जुगाड़ कर रहे हैं। एक ओर तीरथन घाटी में जहां सैलानियों की अच्छी खासी भीड़ है वहीं मात्र 30 किमी लंबी तीरथन जलधारा पर पाँच कंपनियों द्वारा 9 परियोजनाएं बनाए जाने की तैयारी से घाटी के प्रकृति प्रेमी सकते में है और लोगों को इन परियोजनाओं के खिलाफ लामबंद कर रहे हैं। गौरतलब है कि इन परियोजनाओं के खिलाफ घाटी के जागरूक लोग, महिला संगठन तथा कुछ स्वैच्छिक संगठन पहले भी अदालत और सरकार का द्वार खटखटा चुके हैं। स्वैच्छिक संगठन से जुड़े राजेंद्र चौहान बताते हैं कि पिछली बीरभद्र सरकार ने इस जलधारा के अस्तित्व को बनाए रखने और इस पर कोई भी बिजली परियोजना न बनाए जाने का ऐलान किया था। इतना ही नहीं घाटी में परियोजना निर्माण करने वाली एक कंपनी ने उच्च न्यायालय में लोगों की इच्छा के खिलाफ परियोजना न बनाए जाने का वादा भी किया था। तूंग पंचायत की पूर्व प्रधान फुला देवी कहती है कि इन कंपनियों ने घाटी में कोई भी खर्च नहीं किया है लेकिन अब रोक से पहले किए गए खर्च की दुहाई दे कर फिर से निर्माण की अनुमति हासिल करने का जुगाड़ किया जा रहा है।

पर्यटन व्यवसायी रंजीब भारती कहते हैं कि घाटी के लिए इन परियोजनाओं से ज्यादा लाभकारी पर्यटन और ट्राउट है बशर्ते सरकार भी इस दिशा में प्रयास करे। रोमांचक गतिविधियों को अंजाम दे रहे तीरथन एडवैंचर के आशीष प्रभात कहते हैं कि घाटी में पर्यटन की गतिविधियों के बढ़ने का श्रेय घाटी के प्रकृति प्रेमियों को ही जाता है लेकिन सरकारी प्रयास यहां विफल ही हैं। तीरथन घाटी के ही पर्यावरण चिंतक का कहना है कि एक ओर जहां पीने के पानी की समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है वहीं तीरथन जलधारा आज भी इतनी निर्मल है कि करीब 40 किमी. तक लोग इसके पानी का उपयोग पीने के लिए करते हैं। उनका कहना है कि तीरथन जलधारा में पल रही ट्राउट प्रजाति की मछलियों की बदौलत ही घाटी में पर्यटन पनप रहा है। ऐसे में इस जलधारा पर बिजली परियोजनाओं का निर्माण घाटी में विकसित हो रहे पर्यटन तथा यहां के प्राकृतिक सौंदर्य जैवविविधता के लिए खतरनाक साबित होगा। इस जलधारा में ट्राउट के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए इसे निर्मल बनाए रखना भी जरूरी है।

मत्स्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि यह प्रजाति केवल निर्मल धारा में ही जिंदा रह सकती है। उनका मानना है कि पानी के दूषित होने से स्वाभाविक तौर पर ट्राउट खतरे में पड़ जाएगी। एक ओर जहां तीरथन में विभाग द्वारा ट्राउट के सरंक्षण व संर्वधन के लिए प्रयास किए जा रहे हैं तथा नए बीज डाले जा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर तंत्र इस जलधारा पर भी बिजली परियोजनाओं को अनुमति प्रदान करने के प्रयास में है। घाटी के लोगों का कहना है कि इस जलधारा पर कोई भी परियोजना उन्हें मंजूर नहीं है। घाटी के लोगों का कहना है कि इससे अच्छा होता यदि सरकार घाटी में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कुछ और प्रयास करती। उधर 2005 की बाढ़ में नागनी हैचुरी के बह जाने के बाद हामी स्थित नई हैचुरी उद्घाटन के इंतजार में है। लोगों को उम्मीद थी कि पर्यटन और मत्स्य विभाग मुख्यमंत्री के पास ही है लिहाजा ऐसे में घाटी का जरूर कायाकल्प होगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। घाटी के प्रकृति प्रेमी और परियोजना के विरोध में खड़े लोगों ने मुख्यमंत्री प्रेमकुमार धूमल से भी तीरथन जलधारा को बचाने की गुहार की है।

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मो. 09418561327


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