पिछले पखवाड़े केन्द्रीय गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने एक बार फिर गंगा की सफाई की नई तारीख दे दी। उन्होंने कहा कि अक्टूबर 2018 तक गंगा पूरी तरह निर्मल हो जाएगी। इससे पहले उन्होंने इसी तरह का दावा 2016 के लिये किया था।
जब भारती गंगा की निर्मलता की नई तारीख दे रही थीं करीब–करीब उसी समय सुमेरू पीठ के शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती ने भारती की कार्यक्षमता पर ऊँगली उठाते हुए प्रधानमंत्री से उन्हें बदलने की माँग कर डाली।
हालांकि नरेंद्रानंद स्वघोषित शंकराचार्य हैं और सुमेरू पीठ का चार मुख्य पीठों में कोई स्थान नहीं है। भारती को उनकी चिन्ता करने की शायद जरूरत भी नहीं है। उनका मंत्रालय लगातार योजनाओं को कार्यरूप देने में जुटा है।
लेकिन यह जानना दिलचस्प है कि जो सुमेरू पीठ अब तक राजनीतिक रूप से बीजेपी और भारती के समर्थन में रहता था उसने इस तरह की माँग क्यों उठाई?
नरेंद्रानंद ने कहा कि गंगा मंत्रालय का काम दिखाई नहीं पड़ रहा और सिर्फ फैसले लिये जा रहे हैं उन पर अमल नहीं हो रहा। पार्टी हलकों में ये चिन्ता जाहिर की जा रही है कि परिणाम दिखाई क्यों नहीं पड़ रहे।
सम्भवतः इसमें सबसे बड़ा रोड़ा तो पीएमओ है जिसने मंत्रालय और एनएमसीजी के अहम पदों पर नियुक्ति में काफी देरी की, जिससे योजनाओं को अमलीजामा पहनाने की कोशिशें अटकी रहीं।
दूसरा बड़ा अड़ंगा राज्यों के साथ समन्वय का है। लेकिन मंत्रालय के दावों और जमीनी हकीकत में भी बड़ा फर्क है। गंगा संरक्षण मंत्रालय का दावा है कि 464 करोड़ रुपए की लागत से नमामि गंगे के तहत सीवेज ट्रीटमेंट के 29 प्रोजेक्ट पूरे कर लिये गए हैं लेकिन पटना में एक मात्र नए लगे एसटीपी और यूपी में कुछ पुराने दोबारा चालू किये गए एसटीपी ही काम करते दिखाई पड़ते हैं।
वास्तव में दावों में अधीरता है और अधिकारियों पर अधूरे कामों को ही पूरा बताने का दबाव भी है। हरिद्वार के चंडीघाट से लेकर पटना के गाय घाट तक घाटों को विकसित करने का काम अभी आरम्भिक अवस्था में ही है। केदारनाथ, इलाहाबाद, कानपुर, कोलकाता और ऋषीकेश के घाटों के लिये तो अब तक डीपीआर ही तैयार नहीं हो पाई है।
गंगा किनारे बसे गाँवों में 15 लाख शौचालयों के निर्माण का लक्ष्य है लेकिन कुछ हजार बन पाये हैं और उनका उपयोग हो रहा है हालांकि मंत्रालय का दावा है कि करीब सवा तीन लाख शौचालय तैयार हो गए हैं।
अन्तिम संस्कार के लिये स्थानों को विकसित करने और लाशों को अधूरा जलाकर गंगा में बहा देने को हत्तोसाहित करने की दिशा में भी कोई कदम नहीं उठाए गए है।
अन्तिम संस्कार को लेकर अब भी वही बातें हो रही हैं जो सरकार बनने के तुरन्त बाद की गई थी। भारती के मंत्रालय ने अन्तिम संस्कार के लिये स्थान निर्धारित करने और सामान्य सुविधाएँ उपलब्ध कराने की नई तारीख नवम्बर 2016 रखी है।
नए साल में गंगा मंत्रालय को नई घोषणाओं से बचना चाहिए और चुपचाप अपना काम करना चाहिए। गंगा पर किये जा रहे कार्यों पर सबकी निगाहें टिकी हैं। उन्हें घोषणाओं, वादों और संकल्पों से सन्तुष्ट नहीं किया जा सकता।
रियल टाइम मानीटरिंग स्टेशन ऐसी ही एक घोषणा है जिसके तहत कुछ स्थानों पर डिस्पले लगाए जाएँगे ताकि हर घंटे लोगों को पता चल सके कि गंगाजल कितना शुद्ध है। यह सोचना भोलापन ही है कि श्रद्धालु मानीटर पर देखने के बाद गंगा में स्नान करेगा।
सामान्य सी बात समझने में कितना समय लगेगा कि गंगा में बहाव होगा तभी वह साफ होगी, मानीटर पर बीओडी, टीओडी वाली परिकल्पना तभी चलेगी जब गंगा सिर्फ यू-ट्यूब पर बहेंगी, वास्तव में नहीं।
गंगा मंत्रालय अगले महीने से नदी की सतह का सफाई अभियान शुरू कर रहा है। गंगा की गाद निकालने का सफलतापूर्वक ऑडिट आज तक नहीं हो पाया है तो सतह की सफाई के लिये कार्य में तेजी के साथ–साथ मानिटरिंग की जरूरत भी पड़ेगी।
इस बीच कई साधु-सन्तों ने नरेंद्रानंद सरस्वती की आलोचना की है। भारती यह सुनकर मुस्करा सकती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि खतरे के संकेत टल गए। बिना आग के धुआँ नहीं होता।
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