‘‘जल ही जीवन है’’, ये कहते हुए तो बहुत से लोगों को देखा है, लेकिन जीवन देने वाले इसी जल के संरक्षण के लिए कार्य करते हुए बहुत ही कम लोग दिखते हैं। दिखते हैं तो वे लोग जो अनावश्यक रूप से अमूल्य जल का दोहन करते हैं या पानी को बर्बाद करते हैं। इसमें आम नागरिक से लेकर उद्योग तक सभी शामिल हैं। यहां तक कि जल संरक्षण की जिम्मेदारी निभाने वाले जल संस्थान और जल निगम भी नियमित रूप से पानी का संरक्षित नहीं कर पाते। मंत्रियों और अधिकारियों के भाषण तथा धरातल पर कार्य बिल्कुल विपरीत हैं। तो वहीं आधुनिकता के इस दौर में जहां हर किसी को अपने भविष्य अथवा जीवन को सुरक्षित रखने की चिंता है, वहां बिरले ही लोग सभी को जीवन देने वाले जल के संरक्षण को ही अपना जीवन लक्ष्य और भविष्य बना लेते हैं। इस कार्य के सामने उन्हें लाखों रुपये की नौकरी भी निरर्थक लगती है, क्योंकि उनका मानना है कि ‘‘जल है तो कल है’’। ऐसे ही हैं उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नॉएडा के डाढा-डाबरा गांव के निवासी रामवीर तंवर, जिन्होंने तालाबों के संरक्षण के लिए इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ दी।
मां बाप का सपना होता है कि बेटा पढ़ लिखकर डाॅक्टर या इंजीनियर बने और समाज में उनका नाम रोशन करे। इसके लिए वे बेटे की पढ़ाई में लाखों रुपया खर्च करते हैं, लेकिन यदि बेटा पढ़ाई पूरी करने के बाद समाज के लिए नौकरी ही छोड़ दे तो हर कोई समझ सकता है कि परिवार उससे कितना खफा होगा। रामवीर तंवर के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। रामवीर के पिता किसान है। पढ़ाई-लिखाई गांव के ही एक स्कूल से हुई। घर में करीब 25 भैंसे थीं। उन्हें चराने के लिए रोजाना ले जाते थे, तो रामवीर व उसके दोस्त जलाशयों के किनारे खेलते थे, लेकिन समय के साथ साथ उन्होंने बचपन से ही जलापूर्ति करने और भूजल को रिचार्ज करने वाले इन तालाबों पर अतिक्रमण होते देखा। अतिक्रमण का ये काम लंबे समय तक चलता रहा। तो वहीं कई तालाबों में निरंतर कूड़ा फेंका जाने लगा, जिससे तालाब सूखते रहे। तालाबों के सूखने से कई परिवारों और पशु-पक्षियों का जीवन प्रभावित हुआ।
गांव से बाहरवी तक की पढ़ाई करने के बाद मैकेनिकल इंजीनियरिंग से बीटेक करने लिए एक काॅलेज में दाखिला लिया। काॅलेज में पर्यावरण संरक्षण के लिए रामवीर काफी सक्रिय रहे। साथ ही उनके मन में जलाशयों को संरक्षित करने का विचार चलता रहा। बीटेक करने के बाद एक अच्छी नौकरी मिल गई, लेकिन बार बार मन तालाबों के संरक्षण के बारे में ही सोचता रहा। इसलिए रामवीर ने जलाशयों की सफाई के लिए ग्रामीणों के साथ मिलकर चौपाल लगानी शुरू की। तालाबों व जलाशयों के साथ ही आसपास के इलाकों की सफाई के लिए लोगों को जागरुक किया जाता, लेकिन जब भी रामवीर गांव के तालाबो को देखते तो वें व्याकुल हो उठते थे। नौकरी के साथ तालाबों के संरक्षण का काम करने में काफी मुश्किल हो रहा था। इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़कर जल संरक्षण की दिशा में काम करने का फैसला किया।
नौकरी छोड़ने के बाद रोजी रोटी चलाने के लिए पैसा जरूरी था, इसिलए अपना खर्च चलाने के लिए बच्चों को कोचिंग देना शुरू किया। कोचिंग आने वाले बच्चों को भी जल संरक्षण के लिए जागरुक किया तथा बच्चों से कहा कि वे अपने माता-पिता और आस-पास के लोगों को पानी बर्बाद करने से रोकें, लेकिन कोई फायदा नहीं मिला। इसके पीछे का कारण लोगों के विचार थे। लोगों का मानना था कि पानी कभी खत्म नहीं होगा। इससे रामवीर को लोगों के भीतर जागरुकता के अभाव का पता चला। तो वे उन्होंने एक घर से दूसरे घर और अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने के लिए गांव की चौपालों में गोष्ठियां भी की। शुरूआत में लोगों ने पानी की समस्या का गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन धीरे धीरे उन्हें पानी के महत्व का एहसास होने लगा। इसके बाद रामवीर ने लोगों के साथ मिलकर गांव के तालाब साफी करने की कोशिश की, लेकिन असल समस्या अब खड़ी हुई।
तालाबों में लोगों के घरों का सीवरेज गिर रहा था। रामवीर और उनके साथ कुछ ग्रामीणों की टीम ने जब इन परिवारों से सीवरेज तालाब में गिराने से मना किया तो, वे मारपीट पर उतारी हो गए। जिसके चलते रामवीर को ये काम बंद करना पड़ा। इसके बाद उन्होंने गांव के उन तालाबों को पुनर्तीवित करने के बारे में सोचा जहां इस प्रकार का अतिक्रमण नहीं था। ऐसे तालाबों को उन लोगों ने चयनित किया और पुनर्जीवित करने का कार्य शुरू किया। उनकी कड़ी मेहनत का नतीजा ये रहा कि करीब 10 छोटे-बड़े तालाबों को संरक्षित करने में उन्हें सफलता मिली। पहले जलाशय का कूड़ा साफ करने में महीनों लग गए थे। इसके पानी तालाब के उस गंदे पानी को सिंचाई के योग्य बनाने के लिए फिल्टर सिस्टम का उपयोग किया। काम के लिए आर्थिक जरूरतों को पूरो करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया। बाद में जब उनका काम समाज की नजरों में आया तो कई कंपनियों की नजर भी उनपर पड़ी और अब कई कम्पनियों ने सीएसआर के तहत साफ-सफाई में उपयोग होने वाली मशीनें और मजदूर मुहैया करवाने शुरू किए हैं। काम में जिला प्रशासन का सहयोग लिया, जिसका असर दिखा, नियमित बैठकों के बाद अब गाँवों के लोग समझने लगे हैं। वे अब अभियान में सहयोग करते हैं। इस काम में ट्यूशन पढ़ने वाले छात्रों ने हर संभव सहयोग किया और वालंटियर के रूप में मदद करते हैं। रामवीर अब नॉएडा, ग्रेटर नॉएडा के साथ ही सहारनपुर में भी कुछ तालाबों पर काम कर रहे हैं।
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