पहले से ही लगातार गिरते जलस्तर का सामना कर रहे मध्यप्रदेश के कई इलाकों में इस बार सामान्य से भी कम बारिश हुई है। यही कारण है कि हर बार ठंड खत्म होने पर सुनाई देने वाली जल संकट की आहट इस बार अभी से सुनाई देने लगी है। देवास जिले के पीपलरावाँ क़स्बे के लोगों का मानना है कि बीते करीब डेढ़ सौ सालों में पहली बार उनके यहाँ दिसम्बर शुरू होते ही पानी की त्राहि–त्राहि मचने लगी है। यहाँ तक कि पचास के दशक में यहाँ पड़े अकाल के दौरान खेती नहीं होने से अन्न की परेशानी तो हुई थी लेकिन तब भी यहाँ के कुएँ–कुण्डी गर्मियों में पानी पिलाते रहे थे। तो क्या इस बार हालात उस अकाल के दौर से भी बदतर है?
इन दिनों पीपलरावाँ में दिसम्बर के पहले हफ्ते से ही जल संकट की आहट शिद्दत से सुनाई देने लगी है। हालात इतने बुरे हैं कि अभी से यहाँ तीन से चार दिनों में केवल एक बार मात्र 15 से 20 मिनट तक ही जल प्रदाय किया जा रहा है। यहाँ जल संकट गहरा गया है तथा महिलाओं को पानी की खोज में दूर–दूर जाकर गहराते जा रहे कुएँ–कुण्डियों में रस्सियों से पानी उलीचकर लाना पड़ रहा है।
पीपलरावाँ शुरू से ही पानी के मामले में आत्मनिर्भर रहा है। यहाँ के बुजुर्ग बताते हैं कि उन्होंने कभी अपने पूर्वजों से पानी के संकट के बारे में नहीं सुना। उनके मुताबिक यह कस्बा तो पिछले बीस–तीस सालों में बना, उससे पहले तक यह गाँव हुआ करता था और इसके करीब डेढ़ सौ साल के ज्ञात इतिहास में आज तक कभी जल संकट का कोई उदाहरण नहीं मिलता है। बताते हैं कि इस गाँव से करीब एक किमी दूर एक बड़ा तालाब (नार्मदीय तालाब) करीब पैंसठ साल पहले दो छोटी पहाड़ियों के बारिश के पानी के निकास को रोकते हुए बनाया गया था। इससे ओवरफ्लो पानी गाँव के दोनों ओर से बहता था। अब तो इन नालों के पार भी काफ़ी बस्तियाँ बन गई हैं। लेकिन कभी सालभर बहने वाले ये नाले अब महज बरसाती हो चले हैं। अब इनमें वैसी बाढ़ भी नहीं आती, जैसे कुछ सालों पहले तक आया करती थी।
नार्मदीय तालाब में मार्च तक लबालब पानी भरा रहता था। इस वजह से क़स्बे के सभी जलस्रोतों में भी जलस्तर बना रहता था और वे मई–जून तक पानी देते रहते थे, लेकिन इस बार बारिश बहुत कम होने से यह तालाब आधा भी नहीं भर पाया और दिसम्बर से ही इसका पानी कम होने लगा है। यहाँ के लोग आसन्न जल संकट के लिये इसे ही सबसे बड़ा कारण मानते हैं। तालाब के पानी से क़स्बे के आस-पास करीब सौ हेक्टेयर से ज़्यादा खेतों में भी पानी दिया जाता रहा। यह तालाब एक तरह से पीपलरावाँ के पानी का आधार हुआ करता था और इसके कम भरने से यहाँ डेढ़ सौ सालों में पहली बार जल संकट का सामना करना पड़ रहा है।
बीते करीब 25 सालों से स्थानीय नगर पंचायत ने नल-जल योजना लागू की तो यहाँ के करीब दो दर्जन कुएँ–कुण्डियाँ लगभग उपेक्षित हो गए। आँगन में ही पानी मिलने लगा तो महिलाओं ने भी पनघट की राह बदल दी। जलस्रोतों के उपेक्षित होने से अब नल से पानी नहीं मिलने की स्थिति में उनसे भी पानी मिलना आसान नहीं रहा। यहाँ के लोग बताते हैं कि गाँव के दो छोरों पर दो मीठे पानी की कुण्डियाँ हुआ करती थी, जिनमें गर्मियों के दिनों में भी शीतल मीठा पानी भरा रहता था और गाँव की औरतें मटके–घड़ों में रस्सियाँ बाँधे इसे बारहों महीने उलीचती रहती थी। ये दोनों ही कुण्डियाँ तालाब के ओवरफ्लो वाले नालों के पास थी तथा इन नालों के कारण गर्मियों में भी इनका जलस्तर बना रहता था।
वर्तमान में नगर पंचायत क़स्बे में पानी के लिये दो बड़े कुओं पर निर्भर है और इनसे ही पाइपलाइन के जरिए पानी लाकर वितरित किया जाता है। लेकिन इस बार कम बारिश होने से इन दोनों ही कुओं में पर्याप्त पानी नहीं भर सका। यही वजह है कि अभी से ही इन कुओं में पानी उलीचते ही तलछट दिखने लगता है। सोनकच्छ रोड स्थित निराला नगर के कुएँ में इस बार बीते साल के मुकाबले आधा पानी भी नहीं भर पाया है। बीते साल तक यह कुआँ एक बार खींचने पर करीब आधे क़स्बे की प्यास बुझा दिया करता था लेकिन अब यह भी हाँफने लगा है। कुछ ही मिनटों में इसकी जल मोटर साँस लेने लगती है।
दूसरा कुआँ है पोलाय रोड स्थित नार्मदीय तालाब के पास। इसमें बीते साल तक खूब पानी रहा करता था लेकिन अब आधे घंटे से ज़्यादा मोटर नहीं चल पाती है। दोनों ही बड़े कुओं ने नवंबर बीतते–बीतते जवाब दे दिया है। अब नगर पंचायत के हाथ–पाँव फूल रहे हैं कि बारिश से पहले इन सात–आठ महीनों तक दस हजार से ज्यादा की आबादी वाले इस क़स्बे को पानी कैसे दे पाएँगे। स्थिति से निपटने के लिये नगर पंचायत ने फिलहाल कुछ निजी ट्यूबवेल किराए पर लेकर जैसे–तैसे पानी वितरित किया जा रहा है।
ऐसे में पूरे क़स्बे में एक साथ जल प्रदाय संभव नहीं होता तो अलग–अलग वार्डों में अलग–अलग दिन पानी देना पड़ रहा है। इससे वार्डों में जल प्रदाय की बारी तीन से चार दिनों में एक बार और वह भी 15 से 20 मिनट ही हो पा रही है। इतना ही नहीं जलस्तर लगातार कम होते जाने से यहाँ के निजी ट्यूबवेल और हैण्डपंप भी अब आख़िरी साँसे लेने लगे हैं। क़स्बे के साथ ही आस-पास की कॉलोनियों तथा इससे लगने वाले दर्जनभर गाँवों की भी कमोबेश यही हालत है। इससे स्थानीय लोग ख़ासे परेशान हैं। लोग इस बात से चिंतित हैं कि अभी तो फिर भी जैसे–तैसे पानी का इंतज़ाम हो जाता है, लेकिन आने वाली गर्मियों में क्या होगा? अभी से ही महिलाओं को दूर–दूर से पानी लाना पड़ रहा है।
वार्ड 3 में रहने वाले विधायक प्रतिनिधि विजय जोशी बताते हैं कि चार–पाँच दिनों में एक बार जल प्रदाय होने से लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अधिकांश लोगों के यहाँ निजी जलस्रोत नहीं होने से पीने के पानी तक की किल्लत हो जाती है। वार्ड 7 के रशीद पठान बताते हैं कि हर दिन सुबह उठते ही पानी की चिंता सताने लगती है। यही हाल रहा तो गर्मियों में क्या होगा।
नगर परिषद अध्यक्ष मनोज चौहान भी स्वीकारते हैं कि क़स्बे में फिलहाल पानी की बड़ी किल्लत है। बारिश कम होने तथा तालाब में कम पानी होने से विपरीत असर पड़ा है लेकिन हमने लोगों की परेशानियों को देखते हुए कुछ निजी ट्यूबवेल किराए पर ली है। गर्मियों की स्थिति का भी आकलन कर रहे हैं। उस दौरान जो भी निजी ट्यूबवेल चालू हालत में होंगे, उन्हें किराए पर लेकर लोगों को पानी पिलाएँगे। जल संवर्द्धन तथा बारिश के पानी को सहेजने पर भी जोर देंगे।
पीपलरावाँ के समीप धन्धेडा, घिचलाय, लकुम्डी, मुरम्या, पीरपाडल्या, घट्टिया, निपानिया आदि दर्जनभर गाँवों के लोगों को अपने घरों में उपयोग के लिये भी पानी अपने खेतों पर दूर–दराज़ बने कुओं से लाना पड़ रहा है। कुओं में भी कम बारिश की वजह से पानी अब लगातार कम होता जा रहा है।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए तालाब के पानी को सहेजने के लिये प्रशासन ने सिंचाई में इसके पानी को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया है। लेकिन तालाब में उपलब्ध पानी की स्थिति देखते हुए लगता है कि जनवरी खत्म होते–होते यह सूख जाएगा।
पीपलरावाँ के जल संकट का उदाहरण हमें आगाह करता है कि यदि हम अपने परम्परागत जलस्रोतों की चिंता नहीं करेंगे तो हमें और हमारी अगली पीढ़ी को पानी के संकट के कुचक्र से कोई नहीं बचा सकता। यह कुचक्र हमारी ही लापरवाही तथा उपेक्षा के कारण है, इसका कोई और कारण नहीं है। पीपलरावाँ यदि डेढ़ सौ सालों की आत्मनिर्भरता गँवा कर आज घड़े–घड़े पानी के लिये मोहताज़ है तो काफी हद तक लोगों की जलस्रोतों के प्रति उपेक्षित भाव और सरकारों की ट्यूबवेल तथा हैण्डपम्पों पर निर्भरता ही बड़ा कारण है। अब भी हम सचेत नहीं हुए तो फिर हम कभी पानी की किल्लत से उबर नहीं पाएँगे।
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