जिन तालाबों और कुंडों पर ये मकान बने हैं नगर निगम ने बकायदा उनको नंबर एलाट किया है और बीडीए ने मकान का नक्शा पास किया है। इन मकानों में सरकारी बिजली, पानी का कनेक्शन वो सब कुछ है जो साबित करने के लिए काफी है कि यहां रहने वाले ही असल में भू स्वामी हैं। तालाब और कुंडों पर न सिर्फ भूमाफियाओं ने ही कब्जा नहीं किया है बल्कि सरकारी विभाग भी अवैध कब्जा करने में पीछे नहीं हैं।
वाराणसी। सदियों पुरानी नगरी काशी आस्था का बड़ा केंद्र मानी जाती है। गंगा किनारे बसे होने के बावजूद इस शहर में बड़ी संख्या में तालाब और कुंड बनवाए गए थे। इन जलाशयों से लोगों की ज़िंदगी और आस्था दोनों जुड़ी थी लेकिन पैसे की हवस में आस्था और दूसरों के जीवन की परवाह करना छोड़ दी गई। भूमाफ़िया ही नहीं सरकारी अमला भी इन तालाबों और कुंडों को निगल गया, लेकिन इसी शहर में इन्हें नया जीवन देने की मुहिम छेड़ी है सिटिज़न जर्नलिस्ट सुरेंद्र नरायण गौड़ ने। सुरेंद्र नरायण गौड़ वाराणसी में रहते हैं। उनके शहर में कई प्राचीन तालाब और कुंड थे लेकिन उन्हें लालच की नज़र लग गई। हालत ये हो गए कि खुद प्रशासन को पता नहीं इस शहर में कितने तालाब और कुंड थे। साल 2000 में हिंडाल्को से रिटायर होने के बाद सुरेंद्र ने अपने शहर लौटे तो ध्यान दिया कि शहर में कई तालाब और कुंड ऐसे थे जो अतिक्रमण के कारण अपनी पहचान खो चुके हैं। जब उन्होंने इस बारे में ज्यादा गहराई से वजह जानने की कोशिश कि तो पता चला कि किसी भी विभाग के पास ये सटीक जानकारी नहीं है कि शहर में कितने तालाब हैं। यहां तक की जब तहसील के रिकार्डों को खंगाला गया तो वहां भी इन तालाबों और कुंड से जुड़े रिकार्ड आधे अधूरे पाए गए।
लेकिन सुरेंद्र ने हिम्मत नहीं हारी और खुद ही इन तालाब और कुंड का वजूद तलाशने की कोशिश में लग गए। इसके लिए उन्होंने सहारा लिया काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी का। यहां मौजूद पुराने दस्तावेज़ों के आधार पर सुरेंद्र ने एक रिपोर्ट तैयार की। अपनी इस रिपोर्ट में तालाबों और कुंडों की पुरानी स्थिति और अब तक के हालात में इनका क्या महत्व है ये सब विस्तार से लिखा। अपनी इस खोज में सुरेंद्र ने पाया कि शहर में 102 तालाब और कुंड थे जो अब घटकर 63 रह गए हैं लेकिन आधे अधूरे बचे ये तालाब और कुंड भी धीरे-धीरे सिमटते जा रहे हैं और अगर जल्द ही इनको नहीं बचाया गया तो शहर में इन तालाबों और कुंडों का नाम भी नहीं बचेगा। नवंबर 2006 में सुरेंद्र ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल कर मांग की कि वाराणसी में जो 63 तालाब बचे हुए हैं उनका संरक्षण किया जाए और इनके रखरखाव पर ध्यान दिया जाए जिसके बाद मार्च 2007 में कोर्ट ने जिलाधिकारी की अध्यक्षता में एक समिति बनाई। इसमें दो वकील, स्वंय सेवी संस्था से जुड़े दो लोगों के साथ प्रशासनिक अफसरों को भी शामिल किया गया। कोर्ट ने इस कमेटी का मुझे उपसचिव बनाया।
इस कमेटी का काम था कि वो ये पता लगाए कि किन-किन तालाबों और कुंडों पर अवैध कब्जा हुआ है और उन जगहों पर कब्जा हटाने के लिए क्या किया जाए। इसके बाद कमेटी के निर्देश पर हाईकोर्ट ने नगर निगम को सर्वे करने का आदेश दिया तो पता चला कि इन तालाबों पर बड़े पैमाने पर भू माफियाओं ने कब्जा किया हुआ है। मवइया तालाब पर भू माफियाओं की मदद से अवैध कब्जा किया जा चुका है। जहां लोग बड़ी संख्या में बस गए हैं। ये हाल सिर्फ इस तालाब का ही नहीं वाराणसी में मौजूद हरतीरथ तालाब ओंकलेश्वर तलाब, कबीर कुंड, सुक्रेश्वर तालाब जैसे दूसरे कुंडों और तालाबों का भी है। और ये सब है सरकारी मिलीभगत का नतीजा है। तभी तो जिन तालाबों और कुंडों पर ये मकान बने हैं नगर निगम ने बकायदा उनको नंबर एलाट किया है और बीडीए ने मकान का नक्शा पास किया है। इन मकानों में सरकारी बिजली, पानी का कनेक्शन वो सब कुछ है जो साबित करने के लिए काफी है कि यहां रहने वाले ही असल में भू स्वामी हैं। तालाब और कुंडों पर न सिर्फ भूमाफियाओं ने ही कब्जा नहीं किया है बल्कि सरकारी विभाग भी अवैध कब्जा करने में पीछे नहीं हैं। भले ही वो नगर निगम हो या विकास प्राधिकरण विरासत में मिले शहर के इन तालाब और कुंडों को किसी ने नहीं छोड़ा है।
नदेसर का काशी नरेश तालाब जहां नगर निगम ने इस तालाब के विकास की जगह डंपिग ग्राउंड बना दिया और बाद में जब तालाब पट गया और अब उसी तालाब पर एक तरफ जहां नगर निगम ओवर हेड टैंक बनवा रहा है। तो वही तालाब के मध्य से विकास प्राधिकरण पत्थर की चौड़ी सड़क भी बनवा रहा है और यही हाल पांडेयपुर की बहुत बड़ी पोखरी का भी है जिसे नगर निगम कूड़ा डालकर लगभग पाट चूका है। लेकिन आज भी कई ऐसे तालाब हैं जो इस्तेमाल किए जा रहे हैं लेकिन वो भी अतिक्रमण से नहीं बच सके हैं। फिर चाहे वो लक्ष्मीपुल तालाब हो जहां छठ पूजा होती है या फिर पिशाच मोचन कुंड है जहां लोग नहाकर पिंड दान करते हैं। जहां भू माफिया जलकुंभी डाल उसका पानी सुखा रहे हैं और हर साल इसके आसपास बने मकान में रहने वाले लोग दो-दो फुट आगे तक कब्जा करते जा रहे हैं। लेकिन संतोष की बात ये है कि इस मामले में कोर्ट के आदेश के बाद कब्जे वाली जगह खाली करने के लिए प्रशासन ने पहल कर दी है। मालूम हो कि ज्यादातर सरकारी योजनाएं कागजों पर बनती हैं और वहीं पर खत्म भी हो जाती हैं लेकिन सुरेंद्र की नजर लगातार इस मामले में बनी रहेगी। ये जानने के लिए कि तालाब और कुंडों को बचाने के लिए सरकारी स्तर पर कितना कुछ किया गया।
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