पीपल्याहाना गाँव के पास होने से लोग इसे आम बोलचाल की भाषा में पीपल्याहाना तालाब के रूप में ही जानते हैं। तब से लेकर अब तक यह इन्दौर के लोगों को पानी देता रहा है लेकिन कुछ साल पहले अचानक राज्य सरकार ने फरमान जारी कर दिया कि तालाब की आधी से ज्यादा जमीन पर नया कोर्ट भवन बनाया जाएगा। तालाब के फिलहाल रकबे 46 एकड़ में से 27 एकड़ जमीन कोर्ट भवन के लिये दी गई है, जबकि तालाब का जल भराव क्षेत्र अब महज 19 एकड़ में ही सिमट कर रह जाएगा। इन्दौर शहर के बीचोंबीच करीब सौ साल पुराने एक तालाब को बचाने के लिये यहाँ के लोग एकजुट हो गए हैं। यहाँ तक कि लगातार बरसते पानी में तालाब के पानी में खड़े रहकर जल सत्याग्रह कर रहे हैं। जल सत्याग्रहियों के लगातार पानी में रहने से पैरों की चमड़ी गलने लगी है, घाव पड़ने लगे हैं लेकिन उनके उत्साह में कोई कमी नहीं आई है।
पाँच दिनों से बरसते पानी में तालाब में खड़े 61 साल के बुजुर्ग की आँखों में अब भी तालाब के प्रति जज्बा और हौसला देखते ही बनता है। वे इससे पहले तालाब के लिये लम्बी न्यायालयीन लड़ाई भी लड़ चुके हैं। सत्याग्रही बताते हैं कि यहाँ जनभावना के विपरीत सरकार तालाब को पाटकर इसकी जमीन पर कोर्ट भवन बनाने जा रही है। इससे इलाके के पर्यावरण पर बुरा असर पड़ेगा और यह तालाब भी खत्म हो जाएगा।
बात मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर की है। दरअसल यहाँ करीब एक सौ साल पहले पानी सहेजने और लोगों को पानी उपलब्ध करने के लिये तत्कालीन होलकर रियासत के राजाओं ने करीब 50 एकड़ क्षेत्र में इसका निर्माण करवाया था।
पीपल्याहाना गाँव के पास होने से लोग इसे आम बोलचाल की भाषा में पीपल्याहाना तालाब के रूप में ही जानते हैं। तब से लेकर अब तक यह इन्दौर के लोगों को पानी देता रहा है लेकिन कुछ साल पहले अचानक राज्य सरकार ने फरमान जारी कर दिया कि तालाब की आधी से ज्यादा जमीन पर नया कोर्ट भवन बनाया जाएगा। तालाब के फिलहाल रकबे 46 एकड़ में से 27 एकड़ जमीन कोर्ट भवन के लिये दी गई है, जबकि तालाब का जल भराव क्षेत्र अब महज 19 एकड़ में ही सिमट कर रह जाएगा।
रियासतकालीन पीपल्याहाना तालाब की जमीन को पाटकर राज्य सरकार ने न्यायालय भवन बनाने के लिये आवंटित कर दी। आनन–फानन में इस पर काम भी शुरू हो गया। इससे स्थानीय लोग गुस्से में आ गए हैं। उन्होंने रविवार से यहाँ जल सत्याग्रह शुरू कर दिया है। इसमें 61 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता किशोर कोडवानी लगातार जल सत्याग्रह कर रहे हैं। वे बीते पाँच दिनों से अनिश्चितकाल के लिये तालाब के पानी में ही बैठे हैं। उनके साथ हर दिन 20 अन्य रहवासी भी क्रमिक रूप से जल सत्याग्रह कर रहे हैं।
धीरे–धीरे जल सत्याग्रह को व्यापक जन समर्थन मिलने लगा है। हर दिन यहाँ सैकड़ों लोग जुटते हैं। तरह–तरह के विरोध प्रदर्शन भी हो रहे हैं। बच्चों के साथ प्रभात फेरियाँ निकाली जा रही हैं। कोई विरोध में दिन भर तालाब के पानी में नाव चला रहे हैं तो कोई राहगिरी कर रहे हैं। कोई सायकिल चला रहे हैं तो कुछ बुजुर्ग हर दिन सुबह एक घंटा यहाँ कसरत करते हैं। कोई प्रार्थना कर रहा है तो कोई दीप दान तो कोई सुन्दरकाण्ड का पाठ और कोई सदबुद्धि यज्ञ। जिसे जो लग रहा है, वही तालाब को जिन्दा रखने के लिये कर रहे हैं। बारिश भी लोगों को अपने आन्दोलन से डिगा नहीं पा रही है।
क्षेत्र की महिलाएँ और यहाँ तक कि बच्चे भी बरसते पानी में जल सत्याग्रह में शामिल हो रहे हैं। नर्मदा बचाओ आन्दोलन की मेघा पाटकर भी मंगलवार को यहाँ पहुँची और उन्होंने जल सत्याग्रह कर रहे लोगों का उत्साह बढ़ाया। उन्होंने सरकार के इस फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा कि जलस्रोतों के साथ ऐसा उपेक्षित रवैया ठीक नहीं है।
61 साल के कोडवानी के पैरों की चमड़ी लगातार गल रही है। घाव भी हो रहे हैं। पानी में ही रहने से उनके पैरों के साथ उनकी सेहत भी गिरने लगी है पर आन्दोलन को लेकर अब भी वे आशान्वित हैं। उनके हौसले अब भी उम्मीद से भरे हैं। उनकी पत्नी भी उनके साथ सत्याग्रह में शरीक हैं।
कोडवानी कहते हैं कि घाव तो कल भर जाएँगे पर तालाब बच गया तो पीढ़ियों को इसका फायदा मिलेगा। अब भी उनमें इतनी हिम्मत है कि जब जल सत्याग्रह स्थल से कुछ ही दूरी पर कोर्ट भवन बनाने वाले ठेकेदार ने तालाब पाटने का काम शुरू किया तो वे खुद उसके सामने जाकर खड़े हो गए और उन्होंने तत्काल काम बन्द कराया। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में सरकार को जनता की भावनाओं का आदर करना चाहिए। लोगों के आन्दोलन करने पर, यहाँ कोई भी निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए।
आश्चर्यजनक है कि एक तरफ सरकारें पर्यावरण को बढ़ावा देने और पानी सहेजने के लिये करोड़ों रूपए खर्च करती हैं, वहीं यहाँ इससे उलट रियासतकालीन सौ साल से भी पुराने इस तालाब को खत्म किया जा रहा है।
रविवार 17 जुलाई को यहाँ बड़ा आन्दोलन होगा। इसमें शहर से करीब 20 हजार से ज्यादा लोग पहुँच रहे हैं। इस दिन जल सत्याग्रह को लेकर बड़ी तैयारियाँ की जा रही हैं। इसके लिये शहर के लोग सोशल मीडिया पर भी लगातार सक्रिय हैं। हर छोटी–छोटी गतिविधियों को लगातार अपडेट किया जा रहा है। इसके अलावा शहर के अखबार भी इस मुद्दे पर टाक शो कर रहे हैं।
लोकसभा अध्यक्ष और इन्दौर से सांसद सुमित्रा महाजन ने भी कोडवानी की सेहत पर चिन्ता जताते हुए इसके जल्द समाधान की उम्मीद जताई है। अब तो यहाँ शहर के कांग्रेस और भाजपा के नेता भी इस आन्दोलन के समर्थन में खड़े नजर आ रहे हैं। इन्दौर के आठों विधायक भी मानते हैं कि जनता की माँग सही है और सरकार को न्यायालय भवन तालाब की जमीन पर नहीं, बल्कि अन्य किसी स्थान पर बनाना चाहिए।
गौरतलब है कि इन्दौर से आठ विधायकों में से सात सत्ता पर काबिज भाजपा से ही हैं। भाजपा विधायक भी अब खुलकर तालाब के समर्थन में सामने आ गए हैं। बुधवार को स्थानीय विधायक महेंद्र हार्डिया तो खुद भोपाल पहुँचकर मुख्यमंत्री से भी मिले और उन्हें जन आन्दोलन और जनता की भावना से अवगत कराया। इस पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें आश्वस्त भी किया है कि वे इस मसले पर जल्दी ही चीफ जस्टिस से बात करेंगे और इसका कोई यथोचित हल निकालेंगे।
इससे पहले स्थानीय लोगों ने सरकार के जमीन आवंटन के फैसले के खिलाफ राष्ट्रीय हरित अधिकरण में याचिका दायर की थी। आम लोगों की ओर से अधिकरण में बुजुर्ग सामाजिक कार्यकर्ता किशोर कोडवानी ने मजबूती से यह बात रखी कि शहर के लोगों के हित और यहाँ के पर्यावरण को बचाने के लिये तालाब की जमीन पर किसी तरह का निर्माण उचित नहीं है।
कोर्ट भवन बनाने के लिये सरकार के पास और भी अच्छी लोकेशन हो सकती है पर एक जिन्दा तालाब की इस तरह हत्या करना उचित नहीं है। लेकिन एनजीटी ने भी कुछ शर्तों के साथ इस आदेश को बरकरार रखा। स्थानीय लोगों का मानना है कि निर्माण कार्य शुरू हो चुका है, लेकिन इसमें एनजीटी के निर्देशों की खुली अवहेलना की जा रही है।
जल सत्याग्रह करने वाले केसी पटेल और महेंद्र सांघी का कहना है कि कोर्ट भवन के लिये तालाब की आधी से ज्यादा जमीन दे दी गई है। पूरे तालाब के जल भराव क्षेत्र को एक तिहाई भाग में ही समेट दिया गया है। कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी का कहना है कि एक तरफ सरकार पर्यावरण बचाने के नाम पर करोड़ों रुपए बहा रही है तो दूसरी ओर इतने पुराने तालाब को खत्म किया जा रहा है। यह जन भावना और पर्यावरण के खिलाफ है।
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Post By: RuralWater