जो शहर अपने पानी और उसके निकास के बारे में नहीं सोचता वह अपने नदियों और तालाबों को नहीं बचा सकता। आने वाले समय में पानी की जरूरत और बढ़ेगी। शहरों में पानी की कमी नहीं है परंतु वितरण में असमानता है। पानी का नुकसान ज्यादा है। देश में अपने तालाबों को बचाने वाले शहर बहुत कम हैं, जबकि सीवेज ट्रीटमेंट की ओर नगर निकायों का ध्यान नहीं है। साफ पानी पर सबका हक है। उसके लिए अफोर्डेबल वाटर सप्लाई की बात करनी होगी। जो शहर बारिश के पानी की चिंता नहीं करेगा, वह बच नहीं पाएगा। भोपाल। पानी पर सबका समान अधिकार बताते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि प्रदेश में पानी का निजीकरण नहीं किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि तालाबों को बचाने के लिए कानून बनाया जाएगा। चौहान यहां पानी को लेकर आयोजित एक कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। इस कार्यक्रम में भाग ले रहीं पर्यावरणविद सुनीता नारायण ने कहा कि जो शहर बारिश के पानी की चिंता नहीं करेगा, वह बच नहीं पाएगा।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में हर गांव और शहर की अपनी जल संरचना हो, इसके लिए अभियान चलाया जाएगा। उन्होंने कहा कि पानी पर सबका अधिकार है। इसका निजीकरण नहीं होगा। देश में नदियों के पुनर्जीवन को बड़ी चुनौती बताते हुए चौहान ने कहा कि प्रदेश में नर्मदा को प्रदूषण मुक्त कर आदर्श नदी बनाने की योजना बनाई जा रही है। उन्होंने कहा कि यह विचार किया जाना चाहिए कि विकास किसका हो और किसकी कीमत पर हो। भूजल की अपनी सीमाएं हैं। इसे रिचार्ज नहीं करने से पानी की कमी की समस्या पैदा हुई है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में चलाए गए जलाभिषेक अभियान में सात लाख से अधिक जल संरचनाएं बनाई गई हैं। इसे जनांदोलन का रूप दिया गया है। उन्होंने बताया कि हर जिले में एक नदी को पुनर्जीवित करने का काम भी शुरू किया गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि खेतों में डाले जाने वाले रासायनिक खाद से भी जल प्रदूषित होता है। उन्होंने कहा कि कृषि उत्पादन में वृद्धि के साथ पानी की शुद्धता के लिए हमें इस प्रदूषण की भी चिंता करनी होगी। इसके लिए जैविक खाद का उपयोग बढ़ाना होगा। सीवेज ट्रीटमेंट के सवाल को महत्वपूर्ण बताते हुए चौहान ने कहा कि प्रदेश में खुले में शौच पर रोक के लिए मर्यादा अभियान चलाया गया है। अब शहरी स्वच्छता मिशन भी शुरू किया जा रहा है। बुंदेलखंड के पुराने तालाबों को नदियों से जोड़ने की योजना भी शुरू की गई है। उन्होंने कहा कि प्रकृति का शोषण नहीं बल्कि दोहन होना चाहिए। प्रकृति से उतना ही लिया जाना चाहिए जिसकी भरपाई वह कर सके। उन्होंने कहा कि बड़े शहरों में शुद्ध पानी उपलब्ध करवाना हमारी प्राथमिकता है।
कार्यक्रम में सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरंमेंट की महानिदेशक सुनीता नारायण ने अपनी सर्वे रिपोर्ट के हवाले से कहा कि जो शहर अपने पानी और उसके निकास के बारे में नहीं सोचता वह अपने नदियों और तालाबों को नहीं बचा सकता। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में पानी की जरूरत और बढ़ेगी। शहरों में पानी की कमी नहीं है परंतु वितरण में असमानता है। पानी का नुकसान ज्यादा है। देश में अपने तालाबों को बचाने वाले शहर बहुत कम हैं, जबकि सीवेज ट्रीटमेंट की ओर नगर निकायों का ध्यान नहीं है। सुनीता नारायण ने कहा कि साफ पानी पर सबका हक है। उसके लिए अफोर्डेबल वाटर सप्लाई की बात करनी होगी। जो शहर बारिश के पानी की चिंता नहीं करेगा, वह बच नहीं पाएगा।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में हर गांव और शहर की अपनी जल संरचना हो, इसके लिए अभियान चलाया जाएगा। उन्होंने कहा कि पानी पर सबका अधिकार है। इसका निजीकरण नहीं होगा। देश में नदियों के पुनर्जीवन को बड़ी चुनौती बताते हुए चौहान ने कहा कि प्रदेश में नर्मदा को प्रदूषण मुक्त कर आदर्श नदी बनाने की योजना बनाई जा रही है। उन्होंने कहा कि यह विचार किया जाना चाहिए कि विकास किसका हो और किसकी कीमत पर हो। भूजल की अपनी सीमाएं हैं। इसे रिचार्ज नहीं करने से पानी की कमी की समस्या पैदा हुई है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में चलाए गए जलाभिषेक अभियान में सात लाख से अधिक जल संरचनाएं बनाई गई हैं। इसे जनांदोलन का रूप दिया गया है। उन्होंने बताया कि हर जिले में एक नदी को पुनर्जीवित करने का काम भी शुरू किया गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि खेतों में डाले जाने वाले रासायनिक खाद से भी जल प्रदूषित होता है। उन्होंने कहा कि कृषि उत्पादन में वृद्धि के साथ पानी की शुद्धता के लिए हमें इस प्रदूषण की भी चिंता करनी होगी। इसके लिए जैविक खाद का उपयोग बढ़ाना होगा। सीवेज ट्रीटमेंट के सवाल को महत्वपूर्ण बताते हुए चौहान ने कहा कि प्रदेश में खुले में शौच पर रोक के लिए मर्यादा अभियान चलाया गया है। अब शहरी स्वच्छता मिशन भी शुरू किया जा रहा है। बुंदेलखंड के पुराने तालाबों को नदियों से जोड़ने की योजना भी शुरू की गई है। उन्होंने कहा कि प्रकृति का शोषण नहीं बल्कि दोहन होना चाहिए। प्रकृति से उतना ही लिया जाना चाहिए जिसकी भरपाई वह कर सके। उन्होंने कहा कि बड़े शहरों में शुद्ध पानी उपलब्ध करवाना हमारी प्राथमिकता है।
कार्यक्रम में सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरंमेंट की महानिदेशक सुनीता नारायण ने अपनी सर्वे रिपोर्ट के हवाले से कहा कि जो शहर अपने पानी और उसके निकास के बारे में नहीं सोचता वह अपने नदियों और तालाबों को नहीं बचा सकता। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में पानी की जरूरत और बढ़ेगी। शहरों में पानी की कमी नहीं है परंतु वितरण में असमानता है। पानी का नुकसान ज्यादा है। देश में अपने तालाबों को बचाने वाले शहर बहुत कम हैं, जबकि सीवेज ट्रीटमेंट की ओर नगर निकायों का ध्यान नहीं है। सुनीता नारायण ने कहा कि साफ पानी पर सबका हक है। उसके लिए अफोर्डेबल वाटर सप्लाई की बात करनी होगी। जो शहर बारिश के पानी की चिंता नहीं करेगा, वह बच नहीं पाएगा।
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