ताकि बेहतर हो सके शहरी जीवन


शहरीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति को आधुनिक सभ्यता ने विकास का पर्याय मान लिया है। शहरीकरण की बढ़ती रफ्तार को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि 1901 में देश में शहरों की संख्या जहाँ सिर्फ 1827 थी, वह 2011 में बढ़कर 7935 हो गई। 1901 में शहरी आबादी जहाँ 2.58 करोड़ थी, वह 1951 में 6.24 करोड़ और फिर क्रमशः बढ़ते हुए 2011 में 37.71 करोड़ हो गई। गाँवों से नगरों-महानगरों की ओर पलायन की प्रमुख वजह शहरों में पानी, बिजली, पक्की सड़कें, बेहतर शैक्षणिक संस्थान एवं रोजगार के बेहतर अवसरों जैसी मूलभूत नागरिक सुविधाएँ हैं, लेकिन अब शहरों पर यह पलायन भारी पड़ रहा है। शहरों में उपलब्ध स्ट्रीट लाइट, चमचमाते साइनबोर्ड, घरेलू इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बढ़ती खपत के चलते महानगरों में बिजली की माँग बहुत तेजी से बढ़ी है।

सौर ऊर्जा की उपादेयतादूसरी ओर अधिकांश गाँवों में जरूरी कार्यों जैसे सिंचाई और बच्चों के पढ़ने के लिये बिजली भी मुश्किल से उपलब्ध हो पा रही है। शहरों में जो जल आपूर्ति होती है वह आस-पास उपलब्ध नदी, बाँध, नहर और भूगर्भ जल द्वारा की जाती है, जिसके कारण आस-पास के ग्रामीण इलाकों को दैनिक उपयोग, पशुपालन एवं सिंचाई के लिये इन स्रोतों से जल की उपलब्धता कम होती जा रही है। यही वजह है कि सिंचाई एवं अन्य आवश्यकताओं के लिये डीजल आधारित ट्यूबवेल्स पर निर्भरता बढ़ती जा रही है।

हालांकि शहरी क्षेत्रों में आधारभूत ढाँचे की स्थिति अब भी खस्ताहाल है, क्योंकि जितने लोगों के लिये आधारभूत ढाँचा उपलब्ध है, उससे कई गुना ज्यादा लोग शहरों में पहले से ही रहते आ रहे हैं और रोजाना बड़ी संख्या में लोगों का पलायन शहरों की ओर बदस्तूर जारी रहने के कारण वहाँ नागरिक सुविधाएँ भी कम होती जा रही हैं। कई जगह हालात विकराल होते जा रहे हैं। योजनाकारों ने भूगर्भ जल को रिचार्ज करने के विषय में कभी अपने विचार ही नहीं दिए।

भूगर्भशास्त्रियों ने तो पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि राज्यों के कई शहरी इलाकों को ब्लैक जोन घोषित कर दिया है। ब्लैक जोन उस क्षेत्र को कहते हैं जहाँ भूजल स्तर चार सौ फीट से भी नीचे चला गया हो। बेशक यह समस्या अभी उतनी गम्भीर नजर नहीं आ रही है, लेकिन यह तय है कि आने वाले दिनों में यह समस्या और विकराल रूप धारण कर लेगी, जिसका दुष्परिणाम आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा। इस समस्या के निराकरण के लिये त्वरित कार्रवाई करने की आवश्यकता है। इसकी ओर यदि अभी ध्यान नहीं दिया गया तो समस्या भयावह बन जाएगी।

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर भूजल स्तर बढ़ाने और बिजली की उपलब्धता सुव्यवस्थित करने के लिये ऐसे कौन से टिकाऊ कदम उठाए जाने चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियों को इस समस्या का सामना न करना पड़े। इसके समाधान के लिये शहरी इलाकों के सभी बड़े और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों, अस्पतालों, मल्टीप्लेक्स, फैक्ट्रियों, शिक्षण संस्थानों, बड़े आवासीय इमारतों को दो चीजों के उपयोग पर अवश्य ध्यान देना होगा। पहला, सबके लिये बोरवेल लगाना जरूरी किया जाना चाहिए। बोरवेल के पाइप द्वारा इमारतों की छतों पर गिरने वाले बारिश के पानी से भूगर्भ जल की रिचार्जिंग हो जाएगी। वैसे भी शहरों में इमारतें, रास्ते, गलियाँ आदि कंक्रीट की बनी होती हैं, जिसके कारण उसका किंचित हिस्सा भी जमीन के अन्दर नहीं जा पाता। इस कारण थोड़ी सी भी बारिश से जलभराव की समस्या उत्पन्न हो जाती है। ऐसे में स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों, होटलों, आवासीय-व्यावसायिक परिसरों के बड़े भवनों आदि में लगे बोरवेल द्वारा भूजल स्तर को रिचार्ज किया जा सकता है।

दूसरा उपाय है कि सभी आवासीय परिसरों, होटलों, संस्थानों, कार्यालयी परिसरों की छतों पर ग्रिड से जुड़े सौर ऊर्जा प्लांट लगाना अनिवार्य किया जाना चाहिए। वैसे भी शैक्षिक और सरकारी संस्थानों का कामकाज दिन में ही होता है। इनकी बिजली खपत भी कम होती है। ये न सिर्फ अपनी छतों पर सौर ऊर्जा प्लांट के जरिये अपनी खपत के लिये बिजली उत्पादित कर सकते हैं, बल्कि ग्रिड के माध्यम से उत्पादित बिजली बेचकर आर्थिक लाभ भी प्राप्त कर सकते हैं।

सौर ऊर्जा प्लांट की लोकप्रियता में कमी की वजह उसकी अधिक कीमत का होना है। सौर ऊर्जा प्लांट में सबसे महँगा उपकरण बैटरी है, जिसका उपयोग उत्पादित विद्युत को संग्रह करने के लिये किया जाता है। यदि समस्त उत्पादित बिजली का संग्रह न कर उसे सीधे ग्रिड में दे दिया जाए तो बैटरी लगाने की बहुत कम आवश्यकता होगी जिससे सौर ऊर्जा प्लांट लगाने की लागत में कमी आएगी। इसका असर यह होगा कि वैकल्पिक ऊर्जा के जरिये बिजली हासिल करने के लक्ष्यों को पाँच साल के बजाय एक ही साल में प्राप्त किया जा सकता है। बारिश के जल को बोरवेल के जरिये जमीन के अन्दर भेजने और छतों पर ग्रिड से जोड़ने वाले सौर ऊर्जा प्लांट लगाने की दिशा में स्थानीय निकायों, तकनीकविदों से सहयोग लिया जा सकता है।

वे बता सकते हैं कि उनके शहर में कितना फीट बोरवेल किया जाना चाहिए या सूरज की ज्यादातर ऊर्जा हासिल करने के लिये छत पर किस दशा में सौर ऊर्जा प्लांट लगाया जाना चाहिए। इससे न सिर्फ तात्कालिक फायदा मिलेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिये पानी और बिजली की खपत को नियंत्रित करने के साथ ही जरूरत के मुताबिक उत्पादन के लिये उन्हें प्रेरित भी किया जा सकता है।

लेखक उत्तराखण्ड भाजपा कार्यकारिणी के सदस्य हैं।

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