टैंसो मीटर से धान की खेती में पानी की बचत

पंजाब एग्रीकल्चरल यूनीवर्सिटी ने एक ऐसा ही मीटर तैयार कर लिया है जो किसानों को बताएगा कि खेत को कब कितना पानी चाहिए। यह मीटर है टैंसो मीटर, जो पंजाब एग्रीकल्चरल यूनीवर्सिटी महज 300 रुपये में किसानों को उपलब्ध करवा रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस मीटर के उपयोग से किसान 25 से 30 फीसदी तक पानी की बचत कर सकते हैं। यूनीवर्सिटी के मिट्टी व भू विभाग के प्रमुख डॉ. अजमेर सिंह सिद्धू के मुताबिक टेंसो मीटर एक छोटा सा पाइपनुमा मीटर है। इसे 15 से 20 सेंटीमीटर जमीन में गाड़ दिया जाता है। पाइप के एक सिर पर पोरस कप नाम का उपकरण लगाया जाता है। पाइप पर हरे व पीले रंग की पट्टी हैं। पानी का स्तर जब दोनों पट्टियों के बीच में होता है तो किसान को यह संकेत मिल जाता है कि खेत में पानी की कमी है। उसे बेवजह पानी देने की जरूरत नहीं पड़ेगी। धान उत्पादक राज्यों में किसानों को अच्छी फसल उगाने के लिए खेत में पर्याप्त पानी भरा रखना जरूरी होता है। जबकि पानी की कमी के कारण इसमें मुश्किलें आ रही हैं। धान उगाने के लिए सिंचाई के पानी पर किसानों को काफी खर्च करना पड़ता है। आवश्यकता से ज्यादा पानी खेत में होने से न सिर्फ किसानों की लागत बढ़ जाती है बल्कि पानी का बर्बादी भी होती है। पंजाब व हरियाणा जैसे राज्यों में सिंचाई के लिए जमीन से पानी का अत्यधिक दोहन होने के लिए भूजल स्तर बहुत नीचे चला गया है। यह समस्या सरकार के सामने भी आ रही है। ऐसे में पानी के किफायती इस्तेमाल की जरूरत है। वैज्ञानिकों ने एक ऐसा ही उपकरण बनाया है जिससे धान के खेत में पर्याप्त पानी होने की जानकारी किसानों को मिल जाएगी। इससे पानी का सही उपयोग हो सकेगा और किसानों की सिंचाई लागत भी घटेगी। धान की रोपाई का सीजन शुरू हो चुका है। किसानों ने रोपाई के लिए खेत तैयार करने के मकसद से सिंचाई शुरू कर दिए हैं। इस साल बारिश में देरी हो रही है। ऐसे में नहरी पानी उपलब्ध न होने पर जमीन से पानी निकालना किसानों के लिए एकमात्र साधन रह गया है। ऐसे किसानों ने अपने ट्यूबवैलों से सिंचाई शुरू कर दी है। किसान अपने खेतों में तब तक सिंचाई करते रहेंगे जब तक उन्हें खेत में पर्याप्त पानी होने का भरोसा न हो जाए। लेकिन कई बार अनजाने में किसान जरूरत से ज्यादा पानी खेत में भर देते हैं।

स्थिति यह है कि इससे जमीन के पानी का अत्यधिक दोहन हो रहा है। इसके कारण पानी का स्तर लगातार नीचे जा रहा है। सिंचाई के लिए कब कितने पानी की जरूरत है, अब यह तकनीकी ढंग से किसानों को पता चल जाएगा। पंजाब एग्रीकल्चरल यूनीवर्सिटी ने एक ऐसा ही मीटर तैयार कर लिया है जो किसानों को बताएगा कि खेत को कब कितना पानी चाहिए। यह मीटर है टैंसो मीटर, जो पंजाब एग्रीकल्चरल यूनीवर्सिटी महज 300 रुपये में किसानों को उपलब्ध करवा रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस मीटर के उपयोग से किसान 25 से 30 फीसदी तक पानी की बचत कर सकते हैं। यूनीवर्सिटी के मिट्टी व भू विभाग के प्रमुख डॉ. अजमेर सिंह सिद्धू के मुताबिक टेंसो मीटर एक छोटा सा पाइपनुमा मीटर है। इसे 15 से 20 सेंटीमीटर जमीन में गाड़ दिया जाता है। पाइप के एक सिर पर पोरस कप नाम का उपकरण लगाया जाता है। पाइप पर हरे व पीले रंग की पट्टी हैं। पानी का स्तर जब दोनों पट्टियों के बीच में होता है तो किसान को यह संकेत मिल जाता है कि खेत में पानी की कमी है। उसे बेवजह पानी देने की जरूरत नहीं पड़ेगी। हालांकि यह उपकरण तभी प्रभावी होगा, जब इसे लगाने से करीब पंद्रह दिन पहले खेत में पानी भरा जाए।

डॉ. सिद्धू के मुताबिक इस यंत्र की बाजार में कीमत करीब 3000 रुपये है जबकि यूनीवर्सिटी इसे सीधे किसानों तक महज 300 रुपये में दे रही है। राज्य में जिस तरह धान से पानी का स्तर नीचे गिर रहा है उसे रोकने के लिए यह उपकरण काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। इस उपकरण के बार में किसानों को पूरी जानकारी भी दी जा रही है। डॉ. सिद्धू के मुताबिक कई बार ऐसी जमीन रहती है जहां पर पानी का ठहराव कम हो पाता है। ऐसे में किसानों को लगातार पानी देते रहना पड़ेगा। इस यंत्र के बिना किसान कई बार लापरवाही में आवश्यक सिंचाई नहीं करते हैं या फिर कई बार खेतों में पानी इतना ज्यादा दे देते हैं कि वह फसल को फायदा पहुंचाने की बजाए नुकसान पहुंचाने लगता है। यूनीवर्सिटी ने किसानों की इन्हीं समस्याओं को देखते हुए टैंसो मीटर जैसा उपकरण तैयार किया है।

यूनीवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. जी.एस मांगट के मुताबिक धान की फसल के लिए प्रति एकड़ करीब 10 हजार क्यूबिक मीटर पानी का उपयोग हो रहा है। किसान औसतन धान के सीजन में 15 बार सिंचाई करते हैं। किसानों को तकनीकी रूप से ऐसी कोई जानकारी नहीं रहती है कि उन्हें सिंचाई के लिए कब कितना पानी उपयोग करना चाहिए। पानी का ज्यादा उपयोग भी फसल के लिए नुकसानदायक ही रहता है। इसलिए किसानों को टैंसो मीटर जैसे उपकरण का उपयोग करना चाहिए ताकि गिरते भूजल को बचाया जा सके। पंजाब में हर साल डेढ से दो फीट तक पानी का स्तर नीचे गिर रहा है। जिसका नतीजा यह है कि बड़ी संख्या में किसानों को अपने ट्यूबवैल भी ज्यादा गहरे करवाने पड़ रहे हैं। जिन पर भारी भरकम खर्च आ रहा है।

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