इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर प्रधान मंत्री मोदी ने अपने भाषण में व्यक्त किया था कि पर्यावरण देश की प्रगति के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है और हमने वर्तमान एवं भविष्य की जरूरतों को संतुलित रखते हुए पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन को सुरक्षित करने के लिए एक स्पष्ट दिशानिर्देश यानी रोडमैप तैयार किया है। प्रधानमंत्री ने यह भी दोहराया है। कि जहां भारत निर्धन वर्ग को सहायता प्रदान कर रहा है, वहीं विगत नौ वर्षों से 'हरित और स्वच्छ ऊर्जा' पर केंद्रित एक स्पष्ट नीति के साथ ईंधन की भावी जरूरतों पर भी योजना तैयार कर रहा है।
आज, भारत पर्यावरण से संबंधित व्यापक समस्याओं का सामना कर रहा है। अभी भी कोयला देश का सबसे बड़ा ऊर्जा स्रोत है, जिसकी वर्ष 2021 में 46% हिस्सेदारी थी। उसके बाद ऊर्जा स्रोतों के रूप में तेल ( 23% ), बायोमास ( 21%), प्राकृतिक गैस (6%), वैद्युत (हाइड्रो यानी जलीय, न्युक्लियर यानी नाभिकीय, सोलर यानी सौर और विंड यानी पवन ऊर्जा स्रोत) (4%) का स्थान आता है।
लगभग 136 करोड़ की आबादी तथा तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के चलते भारत में ऊर्जा की मांग भी तेजी से बढ़ती जा रही है । अत्यंत प्रदूषक कोयला और तेल से ऊर्जा की हमारी अधिकतम ( 79% ) मांग पूरी हो रही है। उसके परिणामों से हम भली-भांति परिचित हैं, उनसे उत्पन्न हानिकारक प्रभावों में शामिल हैं: (1) वायु प्रदूषण; (2) अपशिष्ट कचरे का अपर्याप्त निपटान; (3) पानी की बढ़ती कमी; (4) भूजल स्तर का गिरना, (5) जल प्रदूषण; और (6) कटते वनों की दयनीय स्थिति, जैवविविधता में गिरावट, तथा भूमि / मृदा का क्षरण । इन सभी विषयों पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
भारत सरकार ने देश की वृद्धि के साथ पर्यावरणीय प्रबंधन को जोड़ने और उसके बीच संतुलन बनाए रखने की योजना तैयार की है, जिससे वर्ष 2024- 25 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य प्राप्त करने के साथ-साथ वर्ष 2030 तक देश को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा दिलाया जा सके। भारत ने पेरिस समझौते के अंतर्गत सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की अपनी प्रतिबद्धता पूरी करने के उद्देश्य से प्रदूषण पैदा करने वाले ईंधनों की खपत एवं उत्पादन को घटाने तथा स्वच्छ ईंधन के उत्पादन को बढ़ाने पर एक स्पष्ट और नवीनतम योजना तैयार की है ।
भारत सरकार ने देश में विकास के साथ पर्यावरणीय प्रबंधन को जोड़ने और उसके बीच संतुलन बनाए रखने की योजना तैयार की है, जिससे वर्ष 2024-25 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य प्राप्त करने के साथ-साथ वर्ष 2030 तक देश को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा दिलाया जा सके। भारत ने पेरिस समझौते के अंतर्गत सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की अपनी प्रतिबद्धता पूरी करने के उद्देश्य से प्रदूषण पैदा करने वाले ईंधनों की खपत एवं उत्पादन को घटाने तथा स्वच्छ ईंधन के उत्पादन को बढ़ाने पर एक स्पष्ट और नवीनतम योजना तैयार की है ।
देश को हरित बनाने के उद्देश्य से भारत सरकार ने 2030 तक 500 गीगावाट के अक्षय ऊर्जा संयंत्रों को स्थापित करने का एक प्रभावशाली लक्ष्य निर्धारित किया है जिसमें 280 गीगावाट के सौर ऊर्जा और 140 गीगावाट के पवन ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना शामिल है। इनसे अक्षय ऊर्जा अर्थात रिन्यूएबल एनर्जी स्रोतों से मिलने वाली कुल 50% ऊर्जा मिलने की संभावना है।
वर्तमान में कुल ऊर्जा का केवल 12.3% हिस्सा अक्षय ऊर्जा के रूप में हाइड्रो और न्युक्लियर ऊर्जा संयंत्रों के माध्यम से मिल रहा है। अक्षय ऊर्जा के भंडार असीमित हैं, यानी उन्हें समाप्त नहीं किया जा सकता। इस ऊर्जा को लगातार और प्राकृतिक क्रियाओं से उत्पन्न किया जा सकता है, इसलिए इसे अक्षय ऊर्जा का नाम दिया गया है ।
इस प्रभावशाली लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ऊर्जा क्षेत्र में परिवर्तन लाने की दिशा में भारत को एक ठोस योजना की जरूरत है। इसके अंतर्गत फॉसिल ईंधनों ( तेल, प्राकृतिक गैस और कोयला ) से प्राप्त ऊर्जा के उत्पादन और उपयोग में तेजी से बदलाव लाकर पवन ऊर्जा एवं सौर ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा स्रोतों से ऊर्जा प्राप्त करने के साथ-साथ लीथियम ऑयन स्टोरेज बैटरीज़ जैसे नवीन ऊर्जा स्रोतों पर कार्य करने की आवश्यकता है।
देश में कुल कार्बन उत्सर्जन की मात्रा में कमी लाने के लिए भारत सरकार अक्षय ऊर्जा कार्यक्रमों के माध्यम से सुरक्षित, सस्ती और सतत ऊर्जा उपलब्ध कराने के प्रति कृत संकल्प है। अगस्त, 2022 को लोकसभा ने ऊर्जा संरक्षण संशोधन बिल, 2022 को पारित किया, जिसमें उद्योगों में ऊर्जा और फीडस्टॉक के लिए ग्रीन हाइड्रोजन, ग्रीन अमोनिया, बायोमास और इथेनॉल जैसे फॉसिलरहित ईंधन स्रोतों के प्रयोग को अनिवार्य बनाया गया है ।
लगभग 2.44 ट्रिलियन के घरेलू एवं विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए एक संस्थागत पॉलिसी फ्रेमवर्क भी तैयार किया जा रहा है। ऊर्जा से संबंधित अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त करने की अपनी योजनाओं के अंतर्गत सरकार ने देश भर से नॉन- फॉसिल ईंधनों पर आधारित उभरते निर्माण केंद्रों की भी पहचान की है। स्वच्छ ईंधनों की दिशा में बदलाव लाने के समक्ष कई अन्य चुनौतियों में शामिल हैं: सस्ती वित्तीय सहायता की व्यवस्था, एक ऐसा संस्थागत फ्रेमवर्क जो निम्न- कार्बन उत्सर्जन वाले बढ़ते क्षेत्रों में कारगर रूप से वित्तीय निवेश कर सके, और प्रौद्योगिकी से जुड़े खतरों को क्रमबद्ध तरीके से दूर करना ।
फिर भी, इस दिशा में तेजी से प्रगति हुई है – वर्ष 2016-18 के दौरान बिजली उत्पादन में सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा का उत्पादन दोगुना बढ़कर 4% से 8% हो गया है। लगभग 80 मिलियन से अधिक लोगों द्वारा खाना पकाने के लिए स्वच्छ एलपीजी ईंधन का प्रयोग किया जा रहा है। अन्य देशों की तुलना में भारत में फॉसिल ईंधनों के स्थान पर स्वच्छ ईंधनों का प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है।
दुनिया के 120 देशों के लिए 'वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम' द्वारा प्रकाशित एनर्जी ट्रांज़ीशन इंडेक्स (ई.टी.आई ) में भारत 767 अंक पर है। यह ई टी आई स्वच्छ ऊर्जा की ओर परिवर्तन लाने में हुई प्रगति को प्रदर्शित करती है। जहां हमारे देश की आर्थिक स्थिति में प्रतिवर्ष 6% की वृद्धि हो रही है, वहीं ऊर्जा की खपत में 3% की वृद्धि देश में बेहतर ऊर्जा व्यवस्था का संकेत देती है। वर्ष 2000 में बिजली उत्पादन में अक्षय ऊर्जा का हिस्सा 14.5% था, जो वर्ष 2022 में बढ़कर 20.5% हो गया है।
जैसा कि प्रधान मंत्री मोदी ने बल दिया है, जलवायु परिवर्तन एक बढ़ती वैश्विक चुनौती है, इससे निपटने के लिए सामूहिक मानव प्रयास और एक वृहत कार्यवाही की आवश्यकता है। फॉसिल ईंधनों के स्थान पर स्वच्छ ईंधनों के प्रयोग की दिशा में बदलाव लाकर जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित रखने और पर्यावरण को सुरक्षित रखने के उद्देश्यों के अनुरूप और संबंधित दिशानिर्देशों के अनुपालन के साथ हम हरित भारत की दिशा में प्रगति पथ पर अग्रसित हैं।
स्रोत- पर्यावरण डाइजेस्ट अगस्त 2023
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