सवाल सिर्फ जल की उपलब्धता का नहीं निर्मलता का भी है

जल की उपलब्धता का ही नहीं निर्मलता भी जरूरी
जल की उपलब्धता का ही नहीं निर्मलता भी जरूरी

इस वर्ष पूरी गर्मी में देश के अलग-अलग हिस्सों हिस्सों से जल संकट के भयावह दृश्य देखने को मिले। देश की राजधानी दिल्ली से लेकर आईटी कैपिटल बेंगलुरु तक जल के लिए त्राहि-त्राहि मचती दिखी।

जल की घटती उपलब्धता एक बड़ा संकट है लेकिन यह जल से जुड़ी समस्याओं का केवल एक पक्ष। इससे संबंधित दूसरा पक्ष यह कि जितनी समस्या जल की समुचित उपलब्धता की है, स्वच्छ जल की अनुपलब्धता का संकट उससे कम नहीं है। पिछले दिनों दिल्ली से सटे गाजियाबाद की एक हाउसिंग सोसायटी में दूषित पानी के कारण सात सौ से अधिक लोगों को डायरिया हो गया। दूषित पानी से नहाने के चलते त्वचा रोग के मरीज तो लगभग हर घर में हैं। गाजियाबाद-नोएडा में यह हाल करीब हर ऊंची इमारतों वाली सोसायटी का है। यहां अधिकांश में जल आपूर्ति भूमिगत जल से है और पीने के पानी का आश्रय या तो बोतलबंद पानी या फिर खुद के आरओ है।

आज देश के अन्य हिस्सों में भी कमोबेश यही स्थिति है। देश के अलग-अलग हिस्से अब नल से बदबूदार पानी आने या फिर हैंडपंपों से गंदे पानी की शिकायतों से परेशान हैं। पानी धरती के लिए प्राण है, लेकिन यदि जल दूषित हो जाए तो यह प्राण हर भी सकता है। पांच साल पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सात जिलों में पीने के पानी से कैंसर से मौत का मसला जब गर्माया तो एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) में प्रस्तुत रिपोर्ट ने इसका कारण हैंडपंपों का दूषित पानी पाया गया। जबकि 2016 में ही एनजीटी ने नदी किनारे के हजारों हैंडपंप बंद कर गांवों में पानी की वैकल्पिक व्यवस्था के आदेश दिए थे। हालांकि, कुछ हैंडपंप बंद हुए, कुछ पर लाल निशान लगाने की औपचारिकता हुई, मगर साफ पानी का विकल्प न मिलने से मजबूर ग्रामीण वही जहर पी रहे हैं। तमाम सरकारी योजनाओं पर अरबों रुपये खर्च भी हुए, लेकिन आज भी करीब 3.77 करोड़ लोग हर साल दूषित पानी के इस्तेमाल से बीमार पड़ते हैं। अनुमान है कि पीने के पानी के कारण बीमार होने वालों से 7.3 करोड़ कार्य दिवस बर्बाद होते हैं। इससे आर्थिकी को करीब 36 अरब रुपये का नुकसान होता है।

हर घर जल की केंद्र की योजना इस बात में तो सफल रही है कि गांव-गांव में हर घर तक पाइप बिछ गए, लेकिन आज भी इन पाइपों में आने वाला 75 प्रतिशत पानी भूजल है। गौरतलब है कि ग्रामीण भारत की 85 प्रतिशत आबादी अपनी पानी की जरूरतों के लिए भूजल पर निर्भर है। एक तो भूजल का स्तर लगातार गहराई में जा रहा है। दूसरा भूजल एक ऐसा संसाधन है, जो यदि दूषित हो जाए तो उसका निदान बहुत कठिन होता है। यह बात संसद में बताई गई है कि देश में करीब 6.6 करोड़ लोग अत्यधिक फ्लोराइड युक्त पानी के घातक नतीजों से जूझ रहे हैं। उन्हें दांत खराब होने, हाथ-पैरे टेढ़े होने जैसे रोग झेलने पड़ रहे हैं। जबकि करीब एक करोड़ लोग अत्यधिक आर्सेनिक वाले पानी के शिकार हैं।

कई जगहों पर पानी में आयरन की ज्यादा मात्रा भी बड़ी परेशानी का सबब है। नेशनल सैंपल सर्वे आफिस (एनएसएसओ) की 76वीं रिपोर्ट बताती है कि देश में 82 करोड़ लोगों को उनकी जरूरतों के मुताबिक पानी नहीं मिल पा रहा है। महज 21. ४ प्रतिशत लोगों को ही घर तक सुरक्षित जल उपलब्ध है। सबसे दुखद है कि नदी-तालाब जैसे भूतल जल का 70 प्रतिशत हिस्सा बुरी तरह प्रदूषित है। सरकारें इस बात को स्वीकार कर रही हैं कि 78 प्रतिशत ग्रामीण और 56 प्रतिशत शहरी घरों तक स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है। यह भी विडंबना है कि हर घर तक पानी पहुंचाने की परियोजनाओं पर 86,856 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होने के बावजूद सरकार इस लक्ष्य को प्राप्त करने में विफल रही है। आज भी लगभग 16,000 गांव ऐसे है, जहां पीने के साफ पानी का कोई नियमित साधन नहीं है।

पूरी दुनिया में खासकर विकासशील देशों में जलजनित रोग एक बड़ी चुनौती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और यूनिसेफ का अनुमान है कि अकेले भारत में हर रोज 3,000 से अधिक लोग दूषित पानी से उपजने वाली बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। गंदा पानी पीने से दस्त और आंत में सूजन, पेट में दर्द और ऐंठन, टायफाइड, हैजा, हेपेटाइटिस जैसे रोग अनजाने में शरीर में घर बना लेते हैं। ये भयावह आंकड़े सरकार के ही है कि भारत में एक बड़ी संख्या में बच्चे हर साल गंदे पानी से उपजी बीमारियों के चलते मर जाते हैं। देश के 158 जिलों के कई हिस्सों में भूजल खारा हो चुका है और उनमें प्रदूषण का स्तर सरकारी सुरक्षा मानकों को पार कर गया है।

हमारे देश में ग्रामीण इलाकों में रहने वाले तकरीबन 6.3 करोड़ लोगों को पीने का साफ पानी तक मयस्सर नहीं है। इसके कारण बीमारियों के साथ-साथ कुपोषण के मामले भी बढ़ रहे हैं। पर्यावरण मंत्रालय और केंद्रीय एजेंसी 'एकीकृत प्रबंधन सूचना प्रणाली' (आइएमआइएस) द्वारा 2018 में पानी की गुणवत्ता पर कराए गए एक सर्वे के मुताबिक राजस्थान में सबसे ज्यादा 16,657 बस्तियां और यहां रहने वाले 77.70 लाख लोग दूषित पानी पीने से प्रभावित हैं। आइएमआइएस के मुताबिक पूरे देश में 70,736 बस्तियां फ्लोराइड, आर्सेनिक, लौह तत्व और नाइट्रेट सहित अन्य लवण एवं भारी धातुओं के मिश्रण वाले दूषित जल से प्रभावित हैं। इस पानी की चपेट में 47.41 करोड़ आबादी आ गई है।

देश में पेयजल से इस जहर के प्रभाव को शून्य करने के लिए जरूरी है कि पानी के लिए भूजल पर निर्भरता कम हो और नदी-तालाब आदि सतही जल में गंदगी मिलने से रोका जाए। वैसे तो भूजल के अंधाधुंध इस्तेमाल को रोकने और भूजल को दूषित करने वालों पर अंकुश के लिए कानून बनाए गए हैं, लेकिन ये कागजों से बाहर नहीं आ पाए है। नदी-तालाब को जहरीला बनाने में तो किसी ने भी कसर छोड़ी नहीं है। आज समाज को 20 रुपये का एक लीटर पानी पीना मंजूर है, परंतु पीढ़ियों से सेवा कर रहे पारंपरिक जल संसाधनों को सहेजना नहीं। यह अंदेशा सभी को है कि आने वाले दशकों में पानी को लेकर सरकार और समाज को बेहद मशक्कत करनी होगी। वह दिन नहीं देखना पड़े इसके लिए जरूरी है कि सभी एकजुट होकर पानी और इसके स्रोतों को बचाने में जुट जाएं।


-लेखक वैदिक सृजन एल.एल.पी. के सह- संस्थापक अनुसंधान एवं विकास प्रमुख हैं।
स्रोत - लोक सम्मान, जून-जुलाई, 2024

 

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Post By: Kesar Singh
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