![स्वच्छता सर्वेक्षण अवॉर्ड](/sites/default/files/styles/node_lead_image/public/hwp-images/%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%20_3.png?itok=pi-EgSUX)
स्वच्छता सर्वेक्षण अवॉर्ड ,Source:फोटो:पत्रिका
स्वच्छता को लेकर पिछले कुछ सालों से केंद्र सरकार ने जो गंभीरता दिखाई है उसका ही नतीजा है कि आज देश के विभिन्न शहरों में स्वच्छता पर प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई है हर शहर इस प्रतिस्पर्धा में सबसे आगे आकर देश के लिए रोल मॉडल बनना चाहता है। लेकिन इस बार भी इंदौर ने किसी भी दूसरे शहर को मौका नही दिया है।और लगातार पांचवी बार भी सबसे स्वच्छ शहर का खिताब अपने नाम करने में कामयाब रहा।
2016 में पहली बार शहरी विकास मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया स्वच्छता सर्वेक्षण अवॉर्ड में इस साल भी मध्यप्रदेश का इंदौर शहर ने सभी दूसरें शहरों को पछाडकर प्रथम स्थान हासिल किया है वही पहाड़ी राज्यों में उत्तराखण्ड सबसे आगे है । तो राष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ पहले स्थान पर बना हुआ है । इस वर्ष स्वच्छता सर्वेक्षण में लगभग 4320 शहरों को शामिल किया गया था। जो विश्व में सबसे बड़ा स्वच्छता सर्वेक्षण है। 2016 में जब इसकी शुरूआत हुई थी तब सिर्फ इसमें 73 शहरों को शामिल किया गया था।
शहरों को श्रेणियों में बांटा गया
वर्ष 2018 में केवल 56 शहरों में से कुछ ही शहरों को स्टार रेटिंग सर्टिफिकेशन से सम्मानित किया गया था। लेकिन इस बार यह संख्या कई गुना बढ़कर 342 शहरों तक हो गई है। तीन श्रेणियों में शहरों को बांटा गया है। इसमें फाइव-स्टार शहर, थ्री-स्टार शहर और वन-स्टार शहर की कैटेगरी बनाई गई है। इसमें 9 शहरों को फाइव स्टार, 166 को थ्री स्टार और 167 शहरों को वन स्टार की श्रेणी में रखा गया है । इसके अलावा, इस साल की सर्टिफिकेशन प्रोसेस में भी 2,238 शहरों की भागीदारी है
इन पैमाने पर दी जाती है रेटिंग
दरअसल,रेटिंग जारी करने से पूर्व सभी शहरों को अलग-अलग पैमाने पर नापा जाता है। इनमें सेग्रेगेशन (सूखे और गीले कूड़े की छंटनी), स्वीपिंग (सफाई का तरीका), वेस्ट स्टोरेज बिन (कूड़ा ट्रांसफर सेंटर), बल्क वेस्ट जेनेरेशन कंपलाइंस (सूखे कूड़े को अलग करने के लिए मटीरियल कलेक्शन सेंटर), वैज्ञानिक तरीके से कचरों का निष्पादन (वेस्ट टु कंपोस्ट या एनर्जी की स्थिति), यूजर फीस, पेनल्टी, स्पॉट फाइन (कूड़ा कलेक्शन का यूजर चार्ज, कूड़ा फेंकने पर फाइन की स्थिति), सिटिजन ग्रीवांस रिड्रेसल (लोगों के खुद ही कूड़े को कंपोस्ट मे बदलने की स्थिति), डंप रेमेडिएशन (विलोपित कूड़ा घर), क्लीनिंग ऑफ स्ट्रोम ड्रेन, सरफेस वॉटर बॉडीज (क्लीन नाले, तालाब आदि की स्थिति), सिटी ब्यूटिफिकेशन (सिटी का सौंदर्यीकरण) और वेस्ट रिडक्शन (कूड़े को कम जनरेट करने की एक्टिविटी) जैसे कई श्रेणियों को शामिल किया जाता है ।इन्हीं आधार पर अलग-अलग शहरों को रेटिंग दी जाती है।स्वच्छ भारत अभियान के तहत भी देश के हर शहर,गांव और कस्बों को नापा जाता है और हर साल सबसे स्वच्छ शहर का ऐलान किया जाता है।
जनसंख्या के आधार पर वर्गीकरण
स्वच्छता को देखते हुए जनसंख्या के आधार पर वर्गीकरण किया जाता है। पहली लिस्ट में ऐसे शहर हैं जिनकी आबादी 10 लाख से ज्यादा है, दूसरी लिस्ट ऐसी है जिनकी आबादी 10 लाख से कम हैं. तीसरी लिस्ट में 50 हज़ार से कम आबादी वाले शहर शामिल है ।
पहाड़ी राज्यों में उत्तराखण्ड को पहला स्थान
पहाड़ी राज्यों में स्वच्छता सर्वेक्षण की बात करे तो उत्तराखंड टॉप बना हुआ है। 10 पर्वतीय राज्यों में उत्तराखंड ने पड़ोसी राज्य हिमाचल को पछाड़ते हुए यह स्थान हासिल किया है । वही 100 से ज़्यादा निकाय वाले राज्यों में उत्तराखंड चौथे स्थान पर है। इस लिस्ट में झारखंड, हरियाणा और गोवा उत्तराखंड से आगे निकले हैं।10 लाख आबादी वाले शहरों में देहरादून की रेटिंग में भी सुधार दिखा है,ओवरऑल रेटिंग में यह शहर कुल 659 शहरों में से 134वें स्थान पर है जबकि नगर निगम श्रेणी में दून की रैंक 82 वीं रही है जबकि पिछले साल यह टॉप 100 पर भी जगह नही बना पाया था। बात करे धर्म नगरी हरिद्वार की तो राज्यस्तर पर पांचवें और राष्ट्रीय स्तर पर 285 वें स्थान पर खिसक गया है।पिछले साल हरिद्वार मौजूदा साल की रैंकिंग से 41 पॉइंट आगे था। हरिद्वार को 2020 में 244 वा स्थान मिला था।
देहरादून का स्वच्छता सर्वेक्षण पर 82वा स्थान आने पर मेयर सुनील उनियाल गामा ने कहा कि
यह देहरादून के लोगो का ही आशीर्वाद है, कि निगम लगातार बेहतर प्रदर्शन कर स्वच्छता सर्वेक्षण में बेहतर रैंक हासिल कर रहा है। दूनवासियों के सहयोग के बिना यह स्थान पाना संभव नहीं था। जागरूक दूनवासी अपने घरों व दुकान से निकलने वाले कूड़े को निगम के द्वारा लगाए गए वाहनों को दे रहे हैं। यही वजह है कि अब सड़क किनारे डिब्बे कूड़े से भरे नहीं दिखते हैं। सड़कों पर बिखरा कूड़ा भी उठने से शहर साफ लगने लगा है । वर्ष 2020 के स्वच्छ सर्वेक्षण के परिणाम के बाद हमने टॉप 100 रैंक में शामिल होने का लक्ष्य रखा था। जिसे इस बार पूरा कर लिया गया है। वहीं अब टॉप-50 शहरों में आने की चुनौती है, जिसे पूरा करने का प्रयास किया जाएगा।
रैंक में सुधार का कारण
- शहर के सभी कूड़ेदानों का कूड़ा समय पर उठाया जा रहा है। ऐसा कोई दिन नही बिता होगा जब शहर में डोर टू डोर कूड़ा उठान नही किया जा रहा हो। हर दिन शहर से 350 मैट्रिक टन कूड़ा उठान हो रहा है।
- सड़को के किनारे अच्छी खासी संख्या में कूड़े दानों को रखा गया है ताकि लोग इधर उधर कूड़ा डालने के बजाए सीधा कूड़ेदान में कचरा डालें।
- दुकानों और रेस्तरां में कूड़ेदान रखने की अनिवार्यता की गई है ताकि लोग सड़को पर कचरा ना फैलाएं।
- समाजसेवी संगठनों की मदद से निगम के कर्मचारियों ने जागरूकता अभियान चलाया है।
- निगम ने संसाधनों और सुविधा में भी खास ध्यान दिया है।
स्वच्छ शहर के ये आंकड़े जारी होने के बाद ऐसा लग रहा था इस बार सूरत, विजयवाड़ा और नवी मुंबई पिछले 4 सालों से टॉप पर रहा इंदौर को पछाड़ने में कामयाब हो जाएंगे। लेकिन 20 नवंबर को जारी हुए स्वच्छता सर्वेक्षण आंकड़े ने साबित कर दिया है कि इंदौर को उसके स्थान से खिसकाना बेहद मुश्किल है।
इंदौर इस बार भी अव्वल कैसे
7 साल पहले तक इंदौर बदबू , गंदगी, कूड़े का शहर हुआ करता था। कचरे के ढेर, सड़को और दीवारों में गुटखा पान के पीक, यहाँ वहाँ टहलते सूअर और बेसहारा मवेशी भी शामिल थे। लेकिन 2 अक्टूबर 2014 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान के आव्हान के बाद इंदौर ने अपनी तस्वीर बदलने की पहली नींव रखी। तत्कालीन नगर निगम कमिश्नर और वर्तमान इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह ने इंदौर को स्वच्छ करने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया । सबसे पहले उन्होंने लापरवाह सफाई कर्मियों को दंडित किया और परिश्रमीयों को सम्मानित किया । फिर हर घर तक ये संदेश पहुंचाया कि गीला सूखा कचरा अलग करके ही देना होगा। जगह- जगह पड़ी सैकड़ों कचरे की पेटियां हटाई गई । और लोगो के घर तक डोर टू डोर उठान के लिये गाड़ियां भेजी गई । इंदौर में अब छह तरह का कचरा अलग किया जाता है इसमें गीला सूखा के अलावा बायोवेस्ट ई वेस्ट मास्क आदि अलग-अलग किया जाता है। साथ ही सब्जी मंडी में जितना भी कूड़ा पैदा होता है उससे गैस बनाई जाती है। जिसका प्रयोग सिटी बसों में भी किया जाता है।
वर्ष 2016 में हुए स्वच्छता सर्वेक्षण में 73 शहरों को शामिल किया गया था, अगले साल यानि 2017 में इसकी संख्या 434 तक पहुँच गई, 2018 में 4,203 शहर , 2019 में 4,237 शहर और 2020 में 62 छावनी बोर्डों सहित 4,242 शहरों के शामिल होने के साथ इसमें कई गुना वृद्धि हुई है। जिससे ये अनुमान लगाया जा सकता है कि हर राज्य और शहर स्वछता को लेकर गंभीर होते दिख रहे है और आने वाले सालों में इनमें प्रतिस्पर्धा और कठिन हो जाएगी जिसका सीधा फायदा आमजन को होगा क्योकि इससे शहरों से कुछ हद गंदगी और कूड़े के ढेरों से छुटकारा मिल सकेगा।
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