महाराष्ट्र की 333 वर्ष पुरानी महान परम्परा पालकी या जुलूस को पूरे राज्य में मनाया जाता है और इस वर्ष यह 6 जुलाई से आरम्भ होकर 22 जुलाई को खत्म हुई। राज्य के भीतर और बाहर से आमतौर पर 10 लाख तीर्थयात्री या वरकारी इस जुलूस में शामिल होते हैं। वार्षिक तीर्थयात्रा हिन्दू देवता विठोबा के स्थान पंढरपुर में समाप्त होती है। देवता के सम्मान में पालकी में सन्त ज्ञानेश्वर और तुकाराम के पदचिन्ह रखे जाते हैं। ज्ञानेश्वर का जुलूस अलन्दी से आरम्भ होता है और तुकाराम का जूलूस देहू से शुरू होता है। आषाढ़ी एकादशी को पंढरपुर पहुँचने पर ये श्रद्धालु विट्ठल मन्दिर में प्रवेश से पूर्व पवित्र चन्द्रभागा नदी में स्नान करते हैं।
250 किलोमीटर की पदयात्रा के दौरान प्रत्येक मार्ग पर यात्री आमतौर पर कुछ निश्चित गाँवों में 15 बार पड़ाव डालते हैं। उन गाँवों के निवासियों द्वारा यात्रियों को भोजन एवं जलपान कराया जाना सामान्य है। पिछले दो वर्षों में स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण (एसबीएम-जी) अभियान के अन्तर्गत पूरे जिले में दो लाख से अधिक शौचालयों का निर्माण हुआ। हालांकि एक मार्ग पर 500 और दूसरे मार्ग पर 700 सामुदायिक शौचालय बनाए गए, लेकिन लम्बी यात्रा पर निकले विशाल जनसमूह के लिये वे कभी पर्याप्त नहीं थे। प्रत्येक वर्ष बड़ी चुनौती होती थी। लेकिन इस वर्ष जन सहयोग से इस समस्या का समाधान भी हो गया। जिला प्रशासन के अनुरोध पर प्रसिद्ध वारी तीर्थ मार्ग पर स्थित घरों के लोग पंढरपुर तक की 15 दिन की यात्रा के दौरान तीर्थ यात्रियों को अपने घरों के शौचालय प्रयोग करने दिए।
जिला परिषद पुणे के मुख्य कार्य अधिकारी श्री सूरज मंधारे ने ग्राम समुदायों से अनूठी अपील की। उन्होंने तीर्थयात्रा के मार्ग पर पड़ने वाले सभी घरों से अपने निजी शौचालयों का प्रयोग वरकारियों (तीर्थयात्रियों) को करने देने का अनुरोध किया। इनमें से अधिकतर शौचालय पिछले दो वर्षों के दौरान स्वच्छ भारत अभियान के अन्तर्गत ही बनाए गए हैं। प्रत्येक शौचालय पर एक सफेद झंडी लगाई गई ताकि पता चल सके कि थके हुए तीर्थयात्री इसका मुफ्त प्रयोग कर सकते हैं।
अपील ब्लॉक अधिकारियों, ग्राम सेवकों और स्कूल शिक्षकों के जरिए की गई और अखबारों तथा पोस्टरों के जरिए भी सन्देश दिया गया।
मुख्य कार्य अधिकारी ने कहा, “मुझे यह देखकर बहुत अचम्भा हुआ कि लोगों ने इस अपील के जवाब में इतनी अधिक प्रतिक्रिया की। आर्थिक रूप से कमजोर लोग भी अपने शौचालयों को तीर्थ यात्रियों के लिये खोल रहे हैं।” आश्चर्य की बात है कि ग्राम पंचायतों ने भी इस सम्बन्ध में प्रस्ताव पारित किए। “सरकार ने बहुत छोटी भूमिका अदा की है, लोग स्वयं ही ये कदम उठा रहे हैं और मैं लोगों की उदारता की सराहना करता हूँ।”
लाल-पीली झंडियाँ लिये लोगों के कारण जुलूस बहुत रंग-बिरंगा है। इसलिये शौचालयों की ओर संकेत करने वाली झंडियाँ सफेद रखी गईं ताकि वे अलग से दिख जाएँ।
लोगों ने अपने घरों को यात्रियों के लिये खोल दिया और उनके द्वारा उपलब्ध कराए गए शौचालयों की संख्या सामुदायिक शौचालयों से निश्चित रूप से अधिक रही होगी। सामुदायिक भागीदारी के इस अनूठे उदाहण की बदौलत “इस वर्ष यह तीर्थ यात्रा न केवल सदियों पुराने उत्साह से मनाई गई बल्कि अधिक स्वच्छ और स्वस्थ तरीके से सम्पन्न हुई।
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