स्‍वच्‍छता का आनंद उठाएं

फोटो-साभार globalhandwashingday.org
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जलापूर्ति एवं स्‍वच्‍छता विभाग, महाराष्‍ट्र सरकार
'भाव: नागरिकों की अगली पीढ़ी छात्रों को व्‍यक्तिगत सफाई और''जल के समुचित उपयोग'' के बारे में पर्याप्‍त जागरूकता नहीं थी। स्‍कूल परिसर में दर्पण, खिड़कियों के बाहर लटकते हुए नाखून काटने वाली मशीन अर्थात नेलकटर और पौधों को सींचने के लिए कीपनुमा पाइप अच्‍छे यंत्र थे जिनका बच्‍चों ने आनंद लिया। रोमांच करते हुए उन्‍होंने सफाई के बारे में सीखा।

प्रभाव: जड़गावं, बोराला, सगोड़ा, कहुपत्‍ता, वड़गांव माली, सावंगी माली तथा मालेगांव ने इस पद्धति का अनुसरण किया।

पूर्व शर्तें: बच्‍चों को सही जगह और सही तरीके से नाखून काटने की आदत नहीं थी। भोजन से पहले और भोजन के बाद बच्‍चों को अपने हाथों को अच्‍छी तरह से साफ करने की भी आदत नहीं थी।

परिवर्तन की प्रक्रिया: स्‍कूली बच्‍चे पेड़ पर लटके हुए दर्पण से रोमांचित होते थे। लड़कियां अपनी बिंदियों को निहारने में व्‍यस्‍त रहती थीं और लड़के अपने बालों को संवारने में लगे रहते थे। एक कक्षा की खिड़की के पास बाहर लटके हुए कुछ छात्र नेल कटर से अपने नाखूनों को काटते रहते थे। बहुत से लड़के और लड़कियां जल सींचने वाली नई विधि से पौधों को पानी देते हुए उन्‍हें बनाए रखने का कार्य करते थे। यह वड़गांव तेजान गांव के स्‍कूल के एक दृश्‍य की बात है। ग्राम्‍य जलापूर्ति और सफाई समिति (वीडबल्‍यूएससी) के सदस्‍यों और स्‍कूली अध्‍यापकों ने स्‍कूली बच्‍चों में व्‍यक्तिगत सफाई के प्रति जागरूकता लाने वाले एक नवीन विचार की योजना बनाई। इसका सबसे पहला विचार नेल कटर को एक विशिष्‍ट स्‍थान पर रखना था। इसके तुरंत बाद लड़के और लड़कियां दोनों ही इसकी ओर आकर्षित हुए और रोमांच के रूप में इसका उपयोग करने लगे। धीरे-धीरे यह रोमांच उनकी आदत बन गई। स्‍कूली अध्‍यापक अपने इस विचार और प्राप्‍त सकारात्‍मक रवैये से प्रसन्‍न थे1 एक अध्‍यापक ने एक और विचार प्रस्‍तुत किया। उसने एक दर्पण को छोटे से पेड़ पर लटका दिया। यह स्‍कूली बच्‍चों के मनोरंजन का एक अन्‍य यंत्र सिद्ध हुआ। अपनी किशोरावस्‍था के अनुरूप लड़के और लड़कियां दोनों ने इस दर्पण का उपयोग करना आरंभ कर दिया। इसके बाद एक और विचार आया जिसमें ''पानी के आदर्श एवं समुचित उपयोग'' की अवधारणा को विकसित करना था। पौधों की जड़ों के निकट पाइप के छोटे छोटे टुकड़े रख दिए गए जिन्‍होंने ड्रिप वॉटर सप्‍लाई का कार्य किया। इसके बाद अगला विचार ठोस अपशिष्‍ट का समुचित संग्रहण था। अध्‍यापकों ने स्‍कूल के प्रांगण में दो डिब्‍बे रख दिए। छात्र सभी किस्‍म के ठोस अपशिष्‍ट को एकत्रित करते हुए इन डिब्‍बों में डालने लगे।

इन सभी विचारों ने छात्रों में जागरूकता उत्‍पन्‍न की और व्‍यक्तिगत स्‍वच्‍छता की पद्धति का विकास किया। इन सभी यंत्रों - नेल कटर, डिब्‍बे, दर्पण और पौधों को स्‍कूली बच्चो द्वारा ही साफ सुथरा संजोया गया1 छात्र इस विचार को आगे ले जाते हुए अपने अभिभावकों को अपने परिवार में इन पद्धतियों को अपनाने पर दबाव डाल रहे हैं।
 

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