स्वच्छाथॉन 1.0 - पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय द्वारा एक स्वच्छता हैकाथॉन का आयोजन किया गया। उद्देश्य था- देश की स्वच्छता (इसमें हाइजीन शामिल) से सम्बन्धित समस्याओं के समाधान हेतु नए विचारों को लोगों से इकट्ठा किया जाये और फिर इन विचारों को पोषित (इन्क्यूबेट) कर टिकाऊ समाधानों के रूप में विकसित किया जाये। इस पहल में भारी भागीदारी हुई। 6 श्रेणियों में 3000 से अधिक प्रविष्टियाँ (अन्तरराष्ट्रीय भी) प्राप्त हुई। इन 6 श्रेणियों में ‘स्कूल शौचालयों’ का परिचालन व रख-रखाव और व्यवहार में परिवर्तन हेतु संवाद समेत ‘मासिक धर्म में स्वच्छता का ध्यान’ जैसा अक्सर उपेक्षित मुद्दा भी शामिल था। एक जन-आन्दोलन की भावना से सरकारी और निजी क्षेत्र एक साथ आये- स्कूल व कॉलेजों के छात्रों, प्रोफेशनलों, संगठनों, स्टार्टअप्स, एनजीओ व राज्य सरकारों ने रोचक नई सोच से परिपूर्ण, उत्तम व व्यवहार्य समाधान प्रस्तुत किये। “स्वच्छाथॉन 1.0 - स्वच्छता और सफाई के क्षेत्र में देश के सामने मौजूद समस्याएँ सुलझाने के दीर्घकालिक नजरिए के साथ लोगों से समाधान प्राप्त करने और सहायता उपलब्ध कराने के लिये स्वच्छता हैकाथॉन है। 6 श्रेणियों में अन्तरराष्ट्रीय प्रविष्टियों समेत 3000 से अधिक प्रविष्टियाँ प्राप्त हुईं। इन श्रेणियों में ‘स्कूल के शौचालयों का परिचालन एवं रख-रखाव’ और ‘व्यवहार में परिवर्तन का संचार’ तथा ‘मासिक धर्म में स्वच्छता का ध्यान’ जैसे अक्सर भुला दिये जाने वाले मुद्दे शामिल हैं। स्कूलों और कॉलेजों के छात्रों, पेशेवरों, सगठनों, स्टार्टअप तथा गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) ने सरकारों की सक्रिय भागीदारी वाले उत्साहजनक, अनूठे, नए और व्यावहारिक समाधान दिये। सरकारी तथा निजी संगठनों ने इस बड़े कार्य के लिये हाथ मिलाए।”
परिचय
तीन वर्षों से भी अधिक समय से स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) स्वच्छता की भारी समस्या से निपट रहा है। पिछले तीन वर्षों से 2,35,000 से अधिक गाँवों, 1300 शहरों, 200 जिलों और 5 राज्यों को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) करार दिया गया है। गंगा के किनारे स्थित सभी गाँवों को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया गया है। 50 प्रतिशत से अधिक शहरी वार्डों में घर-घर जाकर ठोस कचरा इकट्ठा करने की सुविधा मौजूद है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में लगभग 5 करोड़ शौचालय बनाए गए हैं।
भारत की विविधता उसकी स्वच्छता से जुड़ी चुनौतियों में भी दिखती है। अन्तिम व्यक्ति तक सुविधा पहुँचाने की वास्तविक समस्या को स्थानीय-स्तर के समाधानों से ही सुलझाया जा सकता है, जो प्रभावित लोगों के सामने मौजूद भौगोलिक और सांस्कृतिक बाधाओं से पार पा सकें। स्वच्छाथॉन 1.0 - स्वच्छता हैकाथॉन की अवधारणा जनसमूह से समाधान हासिल करने और आम जनता को भारत में हो रही स्वच्छता क्रान्ति से जोड़ने का प्रयास है। स्वच्छाथॉन, ने एसबीएम-जी के सामने मौजूद कुछ सबसे चुनौतीपूर्ण प्रश्नों के अनूठी प्रौद्योगिकी पर आधारित समाधान माँगे गए। जिन प्रश्नों के उत्तर दिये गए, उनमें हस्तक्षेप किये बगैर ही शौचालयों के प्रयोग का स्तर मापने का तरीका, बड़े पैमाने पर व्यवहार परिवर्तन के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करना, कठिन क्षेत्रों के लिये किफायती शौचालय प्रौद्योगिकी का डिजाइन, स्कूल में शौचालयों के रख-रखाव को बढ़ावा देने के लिये तकनीक के प्रयोग के तरीके, मासिक धर्म से जुड़े कचरे को सुरक्षित तरीके से निपटाने के लिये तकनीकी समाधान और विष्ठा को शीघ्र/तुरन्त समाप्त करने की तकनीकें शामिल हैं।
स्वच्छाथॉन क्या है?
जैसाकि ऊपर बताया गया, स्वच्छाथॉन 1.0 - स्वच्छता हैकाथॉन के जरिए पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय ने देश में स्वच्छता तथा सफाई के क्षेत्र में मौजूद चुनौतियों से निपटने के लिये लोगों से समाधान मँगाने का प्रयास किया। इस प्रयास में स्कूल तथा कॉलेजों के छात्रों, पेशेवरों, संगठनों, स्टार्टअप और अन्य पक्षों से समाधान मँगाए गए। इसके पीछे निम्नलिखित छह श्रेणियों में रोमांचक, अनूठे, नए और व्यावहारिक समाधान प्राप्त करने की मंशा थी-
1. शौचालयों के प्रयोग पर नजर रखना;
2. व्यवहार में परिवर्तन आरम्भ करना;
3. दुर्गम क्षेत्रों में शौचालय की तकनीक;
4. स्कूलों में शौचालयों के रख-रखाव तथा परिचालन के लिये कारगर समाधान;
5. मासिक धर्म से सम्बन्धित कचरे के सुरक्षित निस्तारण के लिये तकनीकी समाधान;
6. विष्ठा को शीघ्र समाप्त करने के लिये समाधान
स्वच्छाथॉन क्यों?
1. शौचालयों के प्रयोग पर नजर रखना
शौचालय का प्रयोग स्वच्छ भारत मिशन - ग्रामीण का मुख्य लक्ष्य है। शौचालयों के प्रयोग को अभी घरों में सर्वेक्षण के जरिए नमूने के आधार पर मापा जाता है। लेकिन शौचालयों के सीधे माप के लिये कोई भी तकनीकी समाधान उपलब्ध नहीं है। शौचालयों के प्रयोग को आसानी से मापने की क्षमता इनके प्रयोग को बढ़ावा देने के लिये तुरन्त तथा प्रतिक्रियात्मक कदम उठाने का मौका स्वच्छ भारत मिशन को देगी।
स्वच्छ भारत मिशन - ग्रामीण ने शौचालयों के प्रयोग को प्रभावी तरीके से मापने के ऐसे तरीके पूछे थे, जिन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से अपनाया जा सके। समाधान में ये विशेषताएँ होनी चाहिए-
किफायती; बड़े स्तर पर प्रयोग करने लायक; समाज द्वारा स्वीकार्य; इस्तेमाल में आसान; सटीक।
प्रयोग मापने के लिये यह समाधान प्रौद्योगिकी के रूप में हो सकता है या तकनीक के रूप में अथवा दोनों को साथ मिलाकर हो सकता है।
2. व्यवहार में परिवर्तन
व्यवहार परिवर्तन स्वच्छ भारत मिशन की बुनियाद है। स्वच्छता के लिये देशभर में सामुदायिक तौर-तरीकों के जरिए कई अंतरवैयक्तिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि व्यवहार परिवर्तन किया जा सके। लेकिन पुरानी आदतें मुश्किल से जाती हैं और व्यवहार में परिवर्तन समय लेता है। कुछ लोग घर में शौचालय होने के बाद भी बाहर ही शौच जाते हैं।
स्वच्छ भारत मिशन ने लोगों को खुले में शौच जाने से रोकने और बड़ी संख्या में शौचालयों का इस्तेमाल करने के लिये प्रेरित करने के लिये अनूठे तरीके माँगे थे।
इन तरीकों या समाधानों में निम्न विशेषताएँ होनी चाहिए:
1. बड़े स्तर पर आजमाने योग्य
2. दबाव रहित या विवश नहीं करने वाले
3. सामाजिक रूप से स्वीकार्य
4. व्यवहार में त्वरित परिवर्तन लाने वाले
समाधान प्रौद्योगिकी, प्रदर्शन, तकनीक, चित्र अथवा इन सभी के मेल के रूप में हो सकता है।
3. शौच को शीघ्र सड़ाकर समाप्त करना
ग्रामीण भारत के बड़े हिस्सों में गन्दे पानी की निकासी का नेटवर्क बनाने के बजाय उसकी निकासी उसी स्थान (ऑन-साइट) पर करना पसन्द किया जाता है क्योंकि ऐसा करना आसान और किफायती होता है। मल को जल्द-से-जल्द सड़ाकर खत्म करने में मदद करने वाला कोई भी समाधान शौचालय के गड्ढों/सेप्टिक टैंक को शीघ्रता तथा आसानी के साथ खाली करने में सहायक होगा। इससे गड्ढों/सेप्टिक टैंक को दोबारा इस्तेमाल लायक बनाने में कम समय लगेगा और शौचालयों का लगातार इस्तेमाल होता रहेगा।
स्वच्छ भारत मिशन ने मल पदार्थ को जल्द सड़ाकर समाप्त करने की प्रक्रिया तेज करने के तरीके माँगे थे। प्रौद्योगिकी में निम्न विशेषताएँ होने की अपेक्षा है:
1. कम-से-कम समय में मल पदार्थ को सड़ाकर समाप्त करना
2. किफायती
3. बड़े स्तर पर प्रयोग योग्य
4. आसानी से आजमाया जाने वाला
5. मौसमों से बेअसर तथा पर्यावरण के अनुकूल
4. मासिक धर्म सम्बन्धी कचरे के सुरक्षित निस्तारण के लिये तकनीकी समाधान
मासिक धर्म के दौरान स्वास्थ्य एवं स्वच्छता के सम्बन्ध में शिक्षा एवं जागरुकता का स्तर बढ़ने से देश में अधिकाधिक महिलाएँ एवं किशोरियाँ अपने मासिक चक्र के लिये स्वच्छ सैनिटरी का विकल्प अपना रही हैं। लेकिन सैनिटरी के कचरे का निस्तारण करने का अब भी कोई औपचारिक तरीका नहीं है। अक्सर उन्हें मैदानों, तालाबों में डाल दिया जाता है, शौचालयों में बहा दिया जाता है या आम ठोस कचरे के साथ डाल दिया जाता है।
पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय ने सैनिटरी कचरे को सम्भालने तथा उसका निपटारा करने के लिये तकनीकी समाधान माँगे हैं, जिनमें निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए:
1. पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित तथा वायु, जल एवं मृदा प्रदूषण नहीं फैलाने वाले
2. किफायती
3. गाँवों तथा स्कूलों, कॉलेजों जैसे संस्थानों में बड़े स्तर पर उपयोग लायक।
5. स्कूल के शौचालयों का परिचालन तथा रख-रखाव
भारत में स्वच्छ विद्यालय अभियान के अन्तर्गत सभी सरकारी स्कूलों में शौचालय बनवाए गए हैं। किन्तु कई स्कूलों में मानव संसाधन तथा वित्तीय संसाधन की कमी के कारण इन शौचालयों को लगातार चलाते रहना चुनौतीपूर्ण है। पानी की कमी जैसी कुछ अन्य समस्याएँ भी हैं।
स्वच्छ भारत मिशन - ग्रामीण ने निम्न उद्देश्यों से समाधान माँगे:
1. स्कूल में शौचालयों का प्रभावी रख-रखाव सुनिश्चित करना
2. रख-रखाव पर खर्च होने वाला समय कम करना
3. स्कूली शौचालयों के रख-रखाव का खर्च कम करना
समाधान ग्रामीण भारत में स्कूलों (जिनका बजट बहुत कम होता है) के लिहाज से किफायती, बड़े स्तर पर लागू करने योग्य, सामाजिक रूप से स्वीकार्य, अलग-अलग आकार के शौचालयों के अनुरूप एवं उनमें आजमाए जाने योग्य होने चाहिए।
6. शौचालय की तकनीक
स्वच्छ भारत मिशन देश भर में किफायती, टिकाऊ तथा पर्यावरण के अनुकूल शौचालय तकनीकों को बढ़ावा देना चाहता है। किन्तु देश के कुछ हिस्सों में उपलब्ध तकनीकें मजबूत एवं किफायती साबित नहीं हुई हैं। बाढ़ की बहुतायत वाले, कठोर चट्टानी सतहों वाले एवं सुदूरवर्ती तथा परिवहन ढाँचे से कमजोर सम्पर्क वाले इलाकों में विशेष रूप से ऐसा ही है।
स्वच्छ भारत मिशन- ग्रामीण ने भगीदारों से निम्नलिखित क्षेत्रों के लिये अनूठे शौचालय तकनीकी समाधान मँगाए:
1. सुदूरवर्ती एवं कमजोर सम्पर्क वाले क्षेत्र अथवा/एवं
2. कठोर चट्टानी इलाके अथवा/और
3. बाढ़ की बहुतायत वाले इलाके
मंत्रालय द्वारा इस समय प्रयोग की जा रही तकनीक अर्थात दो गड्ढों वाली तकनीक का उन्नयन करने वाले तरीकों का भी स्वागत किया गया।
अपेक्षा यह थी कि तकनीक किफायती, टिकाऊ, विश्वसनीय एवं स्थायी, प्रयोग में आसान, मौसमी मार से सुरक्षित, पर्यावरण के अनुकूल तथा स्थानीय-स्तर पर (अर्थात जिस क्षेत्र के लिये तकनीक बनाई जा रही हो) उपलब्ध सामग्री का प्रयोग करने वाली हो।
कार्यक्रम का ढाँचा
हैकाथॉन सभी लोगों (अन्तरराष्ट्रीय प्रविष्टियों, सभी आयु वर्गों एवं सामूहिक/व्यक्तिगत भागीदारी) के लिये खुला था।
2 अगस्त, 2017 को सभी नागरिकों से सम्बन्धित श्रेणियों में अपनी प्रविष्टियाँ mygov पोर्टल के जरिए भेजने के लिये कहा गया। सोशल मीडिया, चर्चित हस्तियों, प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के जरिए स्वच्छाथॉन का प्रचार किया गया। राज्य सरकारों ने सम्भावित भागीदारों तक पहुँचने के लिये राज्य-स्तर पर कार्यक्रम आयोजित कर सक्रिय प्रतिभागिता की। प्रविष्टि जमा करने की अन्तिम तिथि 31 अगस्त, 2017 थी।
स्वच्छ भारत मिशन में काम कर रहे प्रशासकों, क्षेत्र के विशेषज्ञों वाली एक विशेषज्ञ समिति ने ज्ञान साझेदारों की मदद से दिल्ली में सेमीफाइनल के लिये प्रविष्टियों का चयन किया।
57 चयनित प्रतिभागियों को 7 सितम्बर, 2017 से शुरू होने वाले दूसरे दौर के लिये दिल्ली बुलाया गया, जहाँ उन्होंने स्वच्छता के क्षेत्र के प्रख्यात विशेषज्ञों वाली एक बाहरी निर्णायक समिति के सामने अपने विचारों/समाधानों के नमूने पेश किये। इस दौर की शुरुआत नीति आयोग द्वारा नवोन्मेष तथा आरम्भिक सहायता के सत्र के साथ हुई। मूल्यांकन समिति में पेशेवर तथा क्षेत्र विशेषज्ञ शामिल थे। प्रतिभागियों का मूल्यांकन उनके समाधान की नवीनता, उपयोगिता, किफायत, रख-रखाव में आसानी, टिकाऊपन, बड़े स्तर पर प्रयोग की क्षमता तथा पर्यावरण सम्बन्धी अनुकूलता के आधार पर किया गया।
अन्तिम सूची में चुने गए प्रतिभागियों को विशेषज्ञों की बड़ी निर्णायक समिति के सामने अपने नमूने/रणनीति के साथ छोटी-सी प्रस्तुति देनी थी। प्रत्येक श्रेणी में विजेताओं को चुना गया और पहले पुरस्कार में 3 लाख रुपए की राशि थी। फाइनल नई दिल्ली में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद में आयोजित किया गया।
कुछ अनूठी तकनीकों की झलक
जन स्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभाग (पीएचईडी) के श्री राम प्रकाश तिवारी ने अनूठी तकनीक पेश की, जिसमें दो गड्ढों वाले शौचालय की तकनीक में ईंटों के बजाय प्लास्टिक की परत के साथ बाँस का इस्तेमाल हो सकता है। अरुणाचल प्रदेश दुर्गम भौगोलिक क्षेत्र है, जहाँ मोटर वाहन चलाने लायक सड़कें बहुत कम हैं। शौचालय बनाने के लिये राजमिस्त्री एवं कच्चा माल असम से आता है, जिससे लागत बढ़ जाती है। इस अभिनव प्रयोग में अरुणाचल की स्थानीय सामग्री तथा स्थानीय लोगों के हुनर का प्रयोग होता है। इसमें बेकार हो चुकी प्लास्टिक का इस्तेमाल भी हो जाता है।
पुदुचेरी से श्री एस शशिकुमार सफाई के सस्ते एवं आसानी से चलाए जाने वाले मोटरयुक्त उपकरण लेकर आये। तमिलनाडु के स्कूली छात्रों ने प्लास्टिक के डिब्बों से सस्ते मूत्रालय बनाए। कर्नाटक के कोप्पल जिले में इसका सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया।
मासिक धर्म से सम्बन्धित कचरे के निस्तारण के लिये बेहद अनूठे और नए तकनीकी समाधान पेश किये गए। केरल से ऐश्वर्या ने सैनिटरी पैडों में रसायन का इस्तेमाल किया और अवशिष्ट को उर्वरकों एवं पौधे रखने की थैलियों के रूप में प्रयोग किया। तमिलनाडु से एलकिया ने इस्तेमाल हो चुके सैनिटरी पैड को रसायन से ठीक करने के बाद फुटपाथ पर लगने वाली ईंटें बनाने के लिये काम में लेने की तकनीक पेश की। पश्चिम बंगाल से श्री शुभंकर भट्टाचार्य ने उत्सर्जन रहित भट्ठी बनाई।
स्वच्छाथॉन : अपनी तरह का पहला प्रयास
जनसमूह से नए विचार प्राप्त करने की ये अप्रोच केवल एक बार होने वाली घटना नहीं है; स्वच्छाथॉन में जनसमूह से विचार/समाधान/नए तरीके माँगने की विराट परिकल्पना है, जिससे देश में स्थायी परिवर्तन आएगा। पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, टाटा ट्रस्ट, रोटरी, यूनिसेफ, एक्सेंचर, एचपीसीएल, ओआरएफ, बीएमजीएफ, केपीएमजी और महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, बिहार, गुजरात, उत्तर प्रदेश, असम, मणिपुर, पंजाब की राज्य सरकारों ने इसके लिये हाथ मिलाए। इस अच्छे काम के लिये और भी राज्य सरकारें तथा निजी संस्थाएँ एक साथ आ रही हैं।
प्रतियोगिता कोई अन्त नहीं है, यह स्वच्छता में नवाचार का स्थायी माहौल तैयार करती है। व्यावहारिक समाधानों को छाँटा जाएगा और ई-पुस्तिका के रूप में तैयार किया जाएगा। साथ ही सम्भावित समाधानों को जमीनी-स्तर पर परीक्षण के लिये इनक्यूबेटरों तथा साझेदारों के साथ जोड़ा जाना, निजी साझेदारों के साथ स्टार्टअप सम्बन्धी सहायता देना और स्वच्छता के क्षेत्र में सभी हितधारकों को ज्ञान नेटवर्क के एक ही ढाँचे के अन्तर्गत मिलाना इसके सम्भावित परिणाम हो सकते हैं।
आगे की राह
स्वच्छाथॉन सभी समस्याओं का जवाब नहीं है, लेकिन इच्छित बदलावों की दिशा में एक सीढ़ी अवश्य है। यह आशा की जाती है कि तेजस्वी युवा मस्तिष्कों की सृजनशीलता से जो विचार मिले हैं, वे देश की वर्तमान चुनौतियों का स्थायी समाधान लाएँगे। विशेषकर उन चुनौतियों के लिये, जो दूर-दराज के क्षेत्रों की हैं। इस पहल की विशिष्टता इसकी व्यापक पहुँच में है; उन नवाचारों में है जोकि छात्रों व कर्मचारियों से लेकर वैज्ञानिकों तक ने दिये हैं।
8 सितम्बर, 2017 को हुए फाइनल ने वास्तव में स्वच्छाथॉन की ऐसी प्रक्रिया आरम्भ की, जो भागीदारों तथा पूरे देश को लाभ पहुँचाती है। भागीदारों को अटल नवाचार मिशन (एम) के तहत मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है। उन्हें आगे बढ़ने की सहायता प्रदान करना एम द्वारा प्रस्तावित अगला तार्किक कदम है। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ने नवाचारियों को वरिष्ठ पेशेवरों के मार्गदर्शन तथा आगे बढ़ने में सहयोग के रूप में सहायता प्रदान करने में दिलचस्पी दिखाई है। निजी भागीदारों ने नवाचारियों को उनकी नई पहलों का जमीनी अध्ययन ग्रामीण क्षेत्रों में करने में सहायता प्रदान करने की इच्छा जताई है। नवाचारियों को स्वच्छता के क्षेत्र में काम करने वाले राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय संगठनों से जोड़ा गया है। नवाचारियों के लिये सबसे बड़े सम्मान की बात यह है कि 2 अक्टूबर, 2017 को स्वयं माननीय प्रधानमंत्री उन्हें सम्मानित करेंगे।
पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय स्वच्छाथॉन 1.0 नवाचारों पर एक पुस्तक प्रस्तुत करने की योजना बना रहा है। उसके अलावा सभी को फायदा पहुँचाने के लिये नवाचारों की ई-पुस्तिका तथा वीडियो पुस्तिका भी जारी करने की योजना है। स्वच्छ भारत मिशन के राज्य निदेशकों को विचारार्थ उचित समाधान की जानकारी प्रदान की जा रही है। माना जा रहा है कि स्वच्छ भारत मिशन की नीतियाँ बनाने में ये नवाचार प्रतिक्रिया प्राप्त करने की प्रणाली होंगे और अन्तिम छोर तक क्रियान्वयन की राह में आने वाली बाधाएँ दूर करने में उत्प्रेरक का काम भी करेंगे।
जनता से विचार प्राप्त करने की प्रणाली आने वाले वर्षों में मंत्रालय को विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में ठोस एवं तरल कचरे के प्रबन्धन में आ रही नई चुनौतियों से निपटने के लिये व्यावहारिक समाधान प्रदान कर सकती है।
लेखक परिचय
लेखक आईएएस अधिकारी हैं। वह पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय की स्वच्छाथॉन 1.0 आयोजित करने वाली टीम में शामिल थे।
ईमेल : renywilfred@gmail.com
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Post By: RuralWater