स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार से हो सकती है स्कूलों की कायाकल्प

स्कूल में शौचालय बनेंगे
स्कूल में शौचालय बनेंगे


हमारे प्रधानमंत्री ने 2014 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर कहा था कि देश के सभी स्कूलों में शौचालय की व्यवस्था होनी चाहिए और लड़कियों के लिये अलग शौचालय बनाए जाने चाहिए। अतः ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का सपना ऐसा ना करने से अधूरा ही रह जाएगा। यह सपना कब पूरा होगा यह तो समय की गर्त में है, परन्तु उतराखण्ड के अधिकांश स्कूलों में शौचालय का न होना यह दर्शाता है कि राज्य की व्यवस्था स्कूलों के प्रति कितनी गम्भीर है।

विडम्बना ही कहिए कि राज्य में सर्वाधिक स्कूल शौचालय विहीन है। जिन स्कूलों में शौचालय बनाए भी गए हैं उन पर या तो तालाबन्दी की जा चुकी है या इतने अव्यवस्थित हैं कि उनके तरफ नजर तक नहीं टिक पाती। ऐसे में स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार-2018 की श्रेणी में कितने विद्यालय आएँगे यह भी राज्य में कौतुहल का विषय बन चुका है।

सम्भावना यह जताई जा रही है कि राज्य सरकार यदि प्रधानमंत्री के मंसूबों पर खरा उतरना चाहेगी तो निश्चित तौर पर ऐसे विद्यालयों की दशा और दिशा सुधर सकती है। अर्थात डबल इंजन की सरकार का असर इन स्कूलों पर कम-से-कम दिखाई देगा। ऐसा लोगों का मानना है।

उल्लेखनीय हो कि उतराखण्ड में जितने भी शहर एवं बाजारनुमा कस्बों में सरकारी विद्यालय हैं वे सभी शौचालययुक्त हैं और स्वच्छ भी हैं। किन्तु इन स्कूलों में छात्रों का घोर अभाव है। दूसरी तरफ राज्य में पहाड़ी रीजन के 80 प्रतिशत स्कूलों में या तो शौचालय नहीं है या होंगे भी तो कागजों तक ही सीमित होंगे। कह सकते हैं कि जो शौचालय स्कूलों में कागजों तक सीमटकर रह गए हैं उनका स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार के परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन करना भी आसान नहीं होगा।

प्रधानमंत्री के भाषण के बाद और उनके मिशन को राज्य के शिक्षकों ने कोई खास तवज्जो नहीं दी परन्तु वर्तमान में राज्य के शिक्षक स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार को पाने के लिये जरूर छटपटा रहे हैं। ऐसे स्कूलों को यह पुरस्कार मिलेगा कि नहीं पर एक बात बड़े जोर-शोर से सामने आ रही है कि राज्य के सरकारी स्कूलों में शिक्षक स्वच्छता और शौचालय के प्रति संवेदनशील दिखने लग गए हैं।

देहरादून में पिछले कई दिनों से आन्दोलनरत राज्य के ग्राम प्रधानों से बात करने पर यह मालूम हुआ कि उनकी गाँव की स्कूल के शिक्षक उन्हें स्कूल में शौचालय बनवाने के लिये प्रेरित कर रहे हैं। साथ-साथ उन्हें ऐसी भी सलाह स्कूलों के शिक्षकों से मिल रही है कि वे उनकी स्कूल की समस्याओं पर उनका साथ देंगे।

अब स्वच्छ विद्यालय अभियान के तहत विभाग ने कई गतिविधियाँ प्रारम्भ कर दी है। सम्बन्धित विभाग ने यहाँ स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार 2017-18 के लिये कमर कस दी है। 30 अक्टूबर तक इस प्रतिस्पर्धा में जो विद्यालय हिस्सा लेंगे वहाँ पेयजल, सफाई और स्वास्थ से जुड़ी गतिविधियों के आधार पर पहचान की जाएगी और उन्हें प्रोत्साहित भी किया जाएगा। इसके बाद वे उत्कृष्ट प्रदर्शन करने पर स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार की श्रेणी में आएँगे।

कुछ जानकार लोगों का मानना है कि आज के समय में जो बच्चा ड्रॉपआऊट होता है उसके सामने स्कूलों की स्वच्छता, छात्रों के स्वास्थ्य, उपस्थिति, सीखने समझने का स्तर जैसी समस्या खड़ी हो रही है। इस समस्या के निदान के लिये यह प्रतियोगिता आवश्यक थी। सो जल, स्वच्छता, साबुन से हाथ धोना, संचालन और रख-रखाव, व्यावहारिक बदलाव और क्षमता निर्माण जैसे स्वच्छता के मानदण्डों के आधार पर पहली बार सरकारी स्कूलों की श्रेणी तैयार की जा रही है।

राज्य में चलाए जा रहे सरकारी अभियान ‘संकल्प से सिद्धि’ जैसे कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत कहते हैं कि स्वच्छ भारत अभियान को हमें मिशन के रूप में लेना होगा और इसे प्राप्त करने के लिये हमें लक्ष्य भी निर्धारित करने होंगे। उन्होंने कहा कि देश को और स्वच्छ एवं सुन्दर बनाने के लिये ‘संकल्प से सिद्धि’ की शपथ लेने की अवश्यकता है। वे शिक्षकों और अभिभावकों का आह्वान करते हुए कहा कि छात्रों को स्वच्छता के बारे में जानकारी दें तथा उनकी निगरानी भी करें। शिक्षा मंत्री अरविन्द पांडे ने बताया कि पुरस्कार के तहत स्कूलों को 50,000 रुपए तथा एक प्रमाण पत्र दिया जाता है। इसके अलावा पुरस्कार के लिये जिस जिले के सबसे अधिक स्कूलों ने भाग लिया उस जिले के जिला अधिकारी, जिला शिक्षा अधिकारी व अन्य पदाधिकारियों को पुरस्कृत किया जाता है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में पूर्व की अपेक्षा इस अभियान में सभी स्कूल भाग लेंगे। जो इस बात का प्रमाण होंगे कि राज्य के स्कूल स्वच्छतापूर्ण है और शौचालययुक्त है।

 

कैसे होगा स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार का चयन


सम्बन्धित विभाग ने स्कूलों में स्वच्छता के लिये मानक संचालन प्रणाली (एसओपी) भी जारी किया। विभाग ने एक सितम्बर से स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार 2017-18 के लिये नामांकन की प्रक्रिया भी आरम्भ कर दी है। स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार 2017-18 की नामांकन प्रक्रिया 30 अक्टूबर को समाप्त हो जाएगी। इस तरह की प्रतियोगिता में सरकारी स्कूल, सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल तथा निजी स्कूल भी हिस्सा ले सकते हैं। स्कूल का टॉयलेट साफ सुथरा हो, टॉयलेट के बाहर साबुन से हाथ धोने की सुविधा हो, पेयजल की सुविधा हो तो केन्द्र सरकार आपके स्कूल को भी स्वच्छ विद्यालय अवार्ड से नवाज सकती है।

सरकार ने हाल ही में प्राइवेट स्कूलों के लिये भी यह अवार्ड शुरू किया है। इसकी ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया चल रही है। जिस स्कूल को 90 से 100 प्रतिशत अंक मिलेंगे, वह एक्सीलेंट की श्रेणी में आएगा। जिला स्तर पर स्कूलों की स्वच्छता रैंकिंग की जाएगी। जिलाधिकारी की अध्यक्षता में बनी समिति स्कूलों का चयन करेगी। जिले में ग्रामीण क्षेत्र में तीन प्राइमरी और तीन सेकेंडरी स्कूलों का चयन किया जाएगा। जबकि शहरी इलाकों में दो प्राइमरी और दो सेकेंडरी स्कूलों का चयन होगा। जिलों में से चयनित होने वाले विद्यालयों को राज्य स्तर पर फाइव स्टार और फोर स्टार रेटिंग के लिये प्रतियोगिता में हिस्सा लेना होगा।

जिले के चयनित स्कूलों को राज्य स्तर पर शिक्षा सचिव की अध्यक्षता में गठित कमेटी स्वच्छता के पैमाने को आँकेगी। यहाँ से कुल 20 प्राइमरी और 20 सेकेंडरी स्कूलों का चयन राष्ट्रीय स्तर के लिये किया जाएगा। राज्य चाहेगा तो प्रदेश के इन टॉप-40 स्कूलों को अपने स्तर से उनके हौसला-अफजाई के लिये कोई पुरस्कार भी दे सकता है। इसके बाद देश के टॉप 100 स्कूलों का चयन राष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छता के पैमानों के आधार पर किया जाएगा। इसमें तीन शीर्ष राज्यों का भी चयन किया जाएगा।

देश के शीर्ष 100 स्वच्छ विद्यालयों को 50-50 हजार रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा। इसके अलावा देश के दस ऐसे जिलों को भी प्रमाण पत्र दिया जाएगा, जहाँ से अच्छी एंट्री आई होगी। बता दें कि इस वर्ष स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार प्रतियोगिता में केन्द्र व राज्य सरकारों के 2,68,402 स्कूलों ने भाग लिया है जिसे सरकारी स्तर पर अपने आप में एक उपलब्धि एवं ‘न्यू इण्डिया’ की शुरुआत भी बताई जा रही है।

 

 

 

पाँच कैटेगरी के आधार पर मिलेगी रेटिंग


जारी गाइडलाइन के अनुसार पुरस्कार के लिये सरकार ने पाँच कैटेगरी तय की है। इन कैटेगरी में पानी, शौचालय, साबुन से हाथ धोना, रख-रखाव की क्षमता पर रेटिंग किया जाएगा। इसके अलावा स्कूल में बेहतर माहौल बनाने की जिम्मेदारी शिक्षकों पर ही होगी। ज्ञात हो कि स्कूलों में सफाई के साथ ही बच्चों के स्वास्थ्य व शिक्षा के लिये बेहतर माहौल तैयार करने की जिम्मेदारी वैसे भी शिक्षकों के कंधों पर थी, फिर भी इस प्रतियोगिता में रेटिंग का यह भी आधार होगा ऐसा बताया जा रहा है। जबकि शिक्षकों को प्रोत्साहन हेतु केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने वर्ष 2016 से जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर यह योजना शुरू की है।

 

 

 

पानी, शौचालय और सफाई पर मिलेगा नम्बर


स्कूल को पानी, शौचालय, भवन, साबुन से हाथ धोना व कैम्पस की साफ-सफाई पर नम्बर मिलेगा। रेटिंग के लिये अलग-अलग विषय पर नम्बर तय किया गया है। जिला स्तर पर प्रथम आने वाले स्कूल का राज्य के लिये चयन किया जाएगा, इसमें चयनित स्कूल राष्ट्रीय स्तर पर नामित किए जाएँगे। इस तरह स्कूलों व कॉलेजों में सफाई व्यवस्था के लिये मंत्रालय ने ‘स्वच्छ विद्यालय स्कीम’ भी शुरू की है। स्कूलों की मॉनीटरिंग करने के लिये जिला स्तरीय एक टीम बनाई जाएगी। जिसमें अलग-अलग विभाग के अधिकारी शामिल होंगे। जो स्कूल का सर्वे कर रेटिंग देंगे।

 

 

 

मोबाइल एप से कर सकते हैं आवेदन


स्वच्छ विद्यालय प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिये गूगल प्ले या एप्पल स्टोर से मोबाइल एप डाउनलोड करना होगा। 07097298093 पर मिस कॉल करके भी एप का लिंक प्राप्त किया जा सकता है। इसके बाद ऑनलाइन सर्वे में हिस्सा लेना होगा।

 

 

 

 

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