पूर्व शर्तें गांव के प्रत्येक कोने में कूड़े का ढेर लगा रहता है और इसे नियमित रूप से उठाया नहीं जाता है। गटर खुले हुए हैं और अक्सर रूक जाते हैं। गांव के कई स्थानों पर बेकार पानी सड़को पर आ जाता है।
परिवर्तन की प्रकिया: आरंभ में जागरूकता अभियान सफल रहा और ग्रामीणों ने अपने गांव में स्वच्छता की दशाओं के बारे में सोचना आरंभ कर दिया। इस गांव में 182 घर हैं जिनमें 90 प्रतिशत अनुसूचित जन जाति के हैं। ग्रामीणों ने स्वच्छता अभियान का गर्मजोशी से स्वागत किया और इसे एक पूजा के रूप में देखा। ग्रामीणों ने प्रत्येक सोमवार को गांव की सफाई करने का प्रण लिया। प्रत्येक सोमवार की सुबह ट्राली वाला ट्रेक्टर पूरे गांव में चक्कर लगाने लगा। इस पर लगा लाउडस्पीकर संत गड़गे बाबा की प्रसिद्ध धुन ''गोपाला गोपाला देवकीनंदन गोपाला'' बजाता हुआ चलता है। ग्रामीण झुंड बनाकर गलियों की सफाई करते हैं और कूड़ा करकट को ट्रेक्टर ट्राली में डाल देते हैं। महिलाएं गलियों में झाड़ू लगाती थीं और पुरूष गटर की सफाई करते हैं। आश्चर्य की बात है कि ग्रामीणों ने इस कार्य को अब तक बनाए रखा है। इस नियमित अभ्यास ने ग्रामीणों को पर्यावरण की स्वच्छता के प्रति अत्यंत जागरूक बना दिया है। सोमवारीय मेले के रूप में जनता में बहुत से परिवर्तन दिखाई दिए हैं।
समस्याएं एवं उनका उपाय: यह गांव गरीब है और यहां के लोगों ने शायद ही कभी गांव की सफाई के बारे में सोचा हो। ''गोपाला गोपाला '' का अनुरोध और दिंडी द्वारा उत्पन्न अद्भुत पर्यावरण ने अपना कार्य बखूबी किया। लोगों ने गलियों की सफाई करने में गर्व महसूस किया। इसके कारण अब लोगों की आदतों में परिवर्तन होने लगा है।
जलापूर्ति एवं स्वच्छता विभाग, महाराष्ट्र सरकार
परिवर्तन की प्रकिया: आरंभ में जागरूकता अभियान सफल रहा और ग्रामीणों ने अपने गांव में स्वच्छता की दशाओं के बारे में सोचना आरंभ कर दिया। इस गांव में 182 घर हैं जिनमें 90 प्रतिशत अनुसूचित जन जाति के हैं। ग्रामीणों ने स्वच्छता अभियान का गर्मजोशी से स्वागत किया और इसे एक पूजा के रूप में देखा। ग्रामीणों ने प्रत्येक सोमवार को गांव की सफाई करने का प्रण लिया। प्रत्येक सोमवार की सुबह ट्राली वाला ट्रेक्टर पूरे गांव में चक्कर लगाने लगा। इस पर लगा लाउडस्पीकर संत गड़गे बाबा की प्रसिद्ध धुन ''गोपाला गोपाला देवकीनंदन गोपाला'' बजाता हुआ चलता है। ग्रामीण झुंड बनाकर गलियों की सफाई करते हैं और कूड़ा करकट को ट्रेक्टर ट्राली में डाल देते हैं। महिलाएं गलियों में झाड़ू लगाती थीं और पुरूष गटर की सफाई करते हैं। आश्चर्य की बात है कि ग्रामीणों ने इस कार्य को अब तक बनाए रखा है। इस नियमित अभ्यास ने ग्रामीणों को पर्यावरण की स्वच्छता के प्रति अत्यंत जागरूक बना दिया है। सोमवारीय मेले के रूप में जनता में बहुत से परिवर्तन दिखाई दिए हैं।
समस्याएं एवं उनका उपाय: यह गांव गरीब है और यहां के लोगों ने शायद ही कभी गांव की सफाई के बारे में सोचा हो। ''गोपाला गोपाला '' का अनुरोध और दिंडी द्वारा उत्पन्न अद्भुत पर्यावरण ने अपना कार्य बखूबी किया। लोगों ने गलियों की सफाई करने में गर्व महसूस किया। इसके कारण अब लोगों की आदतों में परिवर्तन होने लगा है।
जलापूर्ति एवं स्वच्छता विभाग, महाराष्ट्र सरकार
Path Alias
/articles/savacacha-saomavaara
Post By: admin