अति लोभी-भोगी मानव ने किया प्रकृति का निर्मम प्रहार।
अनगिनत वृक्षों को काट उसने सुखा दी निर्मल जलधार।।
कैसे बुझेगी मनुज की प्यास कैसे बंधेगी जीवन की आस।
जंगलों को उजाड़ कर मनुज कर रहा स्वयं अपना विनाश।।
उद्योगों के दूषित द्रव से हो गई गंगा - यमुना भी मैली।
रोगनाशिनी पुण्य प्रदायिनी स्वच्छ धार बन गई आज विषैली।।
जंगल काटे नगर बसाए महल किया ईंट गारों का खड़ा।
हवा पानी को तरस गया मानव रह गया सोच में पड़ा।।
मिलें लगायीं फैक्ट्रियां चलायीं उठा आकाश में धुएँ का गुब्बार।
दूषित हुआ वायुमंडल धुआँ पहुँचा ओजोन परत के पार।।
सुविधा के लिये सड़कें बनाईं बिछाया कंक्रीट और कोलतार।
पृथ्वी का तापमान बढ़ा चारों ओर मचा हा-हा कार।।
सांस लेना हुआ कठिन मिली न उचित मात्रा में आॅक्सीजन।
असाध्य रोग बढ़े अनगिनत संकट में पड़ा जग-जीवन।।
जल ही जीवन है करें हम जल स्रोतों का संरक्षण।
स्वच्छ रखें हम इनको करें इनका समुचित संवर्द्धन।।
जल भंडारण हो धरती पर ऐसा हम मिलकर करें उपाय।
खोदें बंजर व बेकार भूमि बनाएं उनमें तालाब व कुएँ।।
भरेगा इनमें बरसाती जल सुखद होगा आने वाला कल।
प्यास बुझेगी मनुज की बढ़ेगी हरीतिमा धरती पर।।
जग जीवन का संबल है वृक्ष धरा का है यह आभूषण।
इसीलिए धरती पर हमको करना होगा सघन वृक्षारोपण।।
तभी नलकूप लगेंगे धरती पर, बनेगी नहर और गूलें।
जल संचित करना ही होगा हमें यह बात कभी न भूलें।।
स्वस्थ जीवन का आधार है स्वच्छ जल की धार।
आओ मिलकर रचें इतिहास बच्चे कम हो पेड़ हजार।।
संपर्क करें: श्री भाष्करानन्द डिमरी (प्रवक्ता-हिन्दी)रा.इ.का. सिमली, पो.ओ. सिमली, जिला-चमोली-246474 उत्तराखण्ड
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