सूखने की कगार पर जयपुर के नल, केवल 15 मिनट पानी की सप्लाई

सूखने की कगार पर जयपुर के नल
सूखने की कगार पर जयपुर के नल

यूं तो दुनियाभर में जल संकट की चर्चा काफी वर्षों से हो रही है। इसे कम करने के समाधान भी बताए जा रहे हैं, लेकिन बीते दो वर्षों में दुनिया में गहराते जल संकट ने सभी का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया है। पहले केपटाउन में जल संकट के कारण ‘डे-जीरो’ घोषित होने का मामला सामने आया, तो उसके बाद हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में भीषण जल संकट गहरा गया। इस पहाड़ी इलाके में पानी की प्यास बुझाने के लिए लोगों को घंटों लंबी लाइनों में लगना पड़ा। टैंकरों से पानी की सप्लाई की गई। इसके कुछ समय बाद ही चेन्नई का जल संकट पूरी दुनिया की सुर्खियों में आ गया। चेन्नई में भूजल समाप्त होने की कगार पर पहुंच चुका था। पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए ट्रेन से पानी की सप्लाई की गई थी। इस बार चिली में जल संकट के कारण ‘कृषि आपातकाल’ लगाया गया है। भारत में नीति आयोग पहले ही जल संकट के बारे में चेतावनी दे चुका है। 

देश भर में जल से संबंधित समस्या को बढ़ता देख, जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया गया। जल संकट को दूर करने के लिए कई योजनाओं पर काम किया जा रहा है, लेकिन मंत्रालय के गठन के कुछ महीनों बाद ही कोरोना वायरस के कारण दुनिया भर में लाॅकडाउन हो गया। वायरस के संक्रमण को कम करने के लिए साफ पानी से नियमित रूप से हाथ धोने और स्वच्छता बनाए रखने को कहा गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत सरकार ने भी इसके लिए गाइडलाइन जारी की, लेकिन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत सहित विभिन्न एशियाई देशों के जल संकट को लेकर चिंता जाहिर की जाती रही। भारत सरकार ने भी जनता का आश्वस्त किया था कि पानी की सप्लाई को बाधित नहीं होने दिया जाएगा, लेकिन इसी बीच देश के कई इलाकों में जल संकट गहराने की बात सामने आने लगी। मध्य प्रदेश के 100 निकायों में हर तीसरे दिन पानी की सप्लाई हो रही थी। छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कुछ इलाकों के ग्रामीणों को जान जोखिम में डालकर पानी लेने के लिए पहाड़ियों के बीच जाना पड़ रहा है, लेकिन यहां से लाया जाने वाला पानी भी प्रदूषित है। झारखंड में भी यही हाल है। यहां आदिवासी गंदा पानी पीने पर मजबूर हैं। यहां आदिवासियों के पास खाने का राशन तो है, लेकिन पीने के लिए साफ पानी नहीं।  ऐसे ही ऐश के कई हिस्सों से जल संकट के मामले सामने आने लगे। अब मामला राजस्थान के जयपुर का है।

जयपुर की कृष्णा काॅलोनी और मोदी काॅलोनी के लोगों को पिछले एक महीने से भीषण जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक यहां रोजाना 10 से 15 मिनट ही पानी की सप्लाई की जा रही है। इस दौरान पानी का प्रेशर इतना कम है कि 15 मिनट में एक बाल्टी तक नहीं भर पाती है। अपनी पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए यहां के निवासियों को खुद के खर्च पर टैंकर मंगवाना पड़ रहा है। ऐसे में कोरोना के दौरान लोगों की जेब पर अतिरिक्त दबाव पड़ रहा है।

महामारी के दौरान जयपुर पहले से ही कोरोना से जूझ रहा है। दफ्तर खुलते ही लोग काम पर जा रहे हैं। संक्रमण से बचने के लिए दफ्तर जाने से पहले और घर आने के बाद अधिकांश लोग नहाते हैं। रोजाना कपड़ों को धोया जाता है, लेकिन इसके लिए फिलहाल उनके घरों में पानी नहीं आ रहा है। लोगों को कहना है कि ऐसे समय में जल संकट से निपटे या कोरोना से। समस्या को कम करने के लिए 300 रुपये प्रति टैंकर के हिसाब से पानी मंगवा रहे हैं। एक स्थानीय निवासी ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि थोड़ी दूर पब्लिक पार्क में पानी का नल है। उसमें पानी आ रहा है। टैंकर का पैसा बचाने के लिए बर्तन लेकर पार्क में जाते हैं। ऐसे में थोड़ा बहुत पानी तो मिल जाता है, लेकिन कोरोना बढ़ने का खतरा बना हुआ है। लोगों का कहना है कि कई बार पीएचईडी को लिखित शिकायत की है, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं हुआ। अब तो अधिकारियों ने फोन तक उठाना बंद कर दिया है। 

सरकार के तमाम वदों के बाद ये स्थिति दर्शाती है कि देश में जल संकट कितना गहरा है। जनता की समस्याओं के प्रति अधिकारियों का यूं आंखें मूंदना जन-समस्याओं के प्रति उनमें गंभीरता के अभाव को दर्शाता है। ऐसे में सरकार, शासन और जनता तीनों को ही मिलकर जल संरक्षण की दिशा में कार्य करने की जरूरत है। क्योंकि समस्या की ये अभी शुरुआत है। यदि हमने संसाधनों को बचाने पर ध्यान नहीं दिया तो, समस्या और ज्यादा गहरा सकती है।


हिमांशु भट्ट (8057170025)

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Post By: Shivendra
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