प्रदूषण से लड़कर मंदाकिनी बचा रही अस्तित्व -तपिश फेर रही नदी सफाई अभियान पर पानी
चित्रकूट,जागरण संवाददाता : बुंदेलखंड के सूखे का प्रकोप नदियों में भी देखने को मिल रहा है। यमुना व मंदाकिनी को छोड़कर बाकी नदियों का अस्तित्व नहीं बचा। सूखे का असर सरिसर धार मंदाकिनी पर भी पड़ा है। यह नदी कम पानी के चलते प्रदूषण से पटी पड़ी है। जिला प्रशासन भी मंदाकिनी के संघर्ष में साथ है। दो माह से मनरेगा के तहत विशेष सफाई अभियान चला नदी को साफ करने में लगा है, लेकिन बुंदेलखंड की तपिश सफाई में पानी फेर रही है।
जनपद में यमुना, मंदाकिनी (पयस्वनी), ओहन (वाल्मीकि), गुंता, बरदहा, पिपरावल, गेड़वा, बागै, बान गंगा नदियां हैं। मंदाकिनी और यमुना को छोड़कर आधा दर्जन नदियां सूख गई हैं। मंदाकिनी का भी हाल अच्छा नहीं है। पांच साल के सूखे के चलते इस नदी का भी लगातार जल स्तर गिरता जा रहा है। बंधोइन बांध के बाद यमुना के संगम स्थल तक यह नदी पूरी तरह से सूख गई है। 35 किलोमीटर की इस नदी में आठ किलोमीटर में ही पानी बचा है। जहां पानी है वहां प्रदूषण ने नदी को पाट दिया है। राजापुर और मऊ कस्बे के सरहद को छूने वाली यमुना नदी अभी निर्मल है, लेकिन जलस्तर इसका भी जरूर कम हो गया है। मंदाकिनी में तो प्रदूषण का यह आलम है कि नदी का अस्तित्व संकट में पड़ गया है।
नदी के प्रदूषण को देखकर जिलाधिकारी दलीप कुमार गुप्त ने मंदाकिनी का अस्तित्व बचाने के लिए विशेष सफाई अभियान मनरेगा के तहत बनाया गया। सात अप्रैल से पांच नाविक व 25 मजदूरों के साथ मंदाकिनी सफाई अभियान का शुभारंभ किया गया था। दो माह से लगातार नदी का प्रदूषण साफ किया जा रहा है। अभियान के दूसरे चरण में 25 मजदूरों को और लगा दिया गया था जो लगातार काम कर रहे हैं। इसी का परिणाम है कि नदी का वैभव कुछ लौट आया है और जल स्तर में भी बढ़ोत्तरी हुई है। आज नदी का जलस्तर लगभग दो फिट बढ़ गया है, लेकिन वह निर्मलता अभी भी नहीं आ पाई जो दस साल पहले मंदाकिनी में देखी जाती थी। इसकी वजह है कि नदी में सीवर सहित तीर्थ नगरी के तमाम नाले मंदाकिनी को दूषित कर रहे हैं। कहीं-कहीं पर तो नदी का जल इतना काला हो गया है कि उसमें से दुर्गध आ रही है।
अपने ही लोग कर रहे गंदा
रामघाट निवासी द्वारिकेश पटेरिया नदी की दुर्दशा देखकर द्रवित हो जाते हैं, कहते हैं कि दस साल पूर्व बहने वाली निर्मल मंदाकिनी अपनों से ही दूषित हो रही है, उसके ही पुत्र मां की कोख को गंदा कर रहे हैं। जिस पर लगाम लगाई जानी चाहिए। प्रशासन नियम को बना देता है, लेकिन अमल के लिए कोई कार्रवाई नहीं की जाती। नगर के कवि प्रयागनारायण अग्रवाल का कहना है कि नदी का वैभव बचाने के लिए साहित्यकारों को आगे आना चाहिए। लेखनी से ऐसी अलख जगायें कि सरकार विशेष प्रोजेक्ट बनाकर नदी को प्रदूषण मुक्त करे, तभी मंदाकिनी का अस्तित्व बचाया जा सकता है। छेदीलाल तिवारी कहना है कि जिले के वातावरण में पहले इतना प्रदूषण नहीं था। साथ ही जंगलों में हरियाली थी। झमाझम बारिश होती थी और जिले की नदियां बारह महीने लबालब पानी से भरी रहती थीं लेकिन अब दैवीय प्रकोप के चलते जिले की नदियों का अस्तित्व समाप्त हो गया है। छोटी-मोटी नदियां तो सभी सूख गई हैं मंदाकिनी ही बची है, जिसे लोग गंदा कर रहे हैं। सुरेश सिंह का कहना है कि जिला प्रशासन ने नदी में सफाई अभियान चलाकर मंदाकिनी का प्राथमिक उपचार कर दिया है। अब हम लोगों को प्रयास करना चाहिए।
19 जगह और बंधेगी मंदाकिनी
मंदाकिनी को बर्बाद करने के लिए जिला प्रशासन ने भी ठान ली है कि नदी में बंधोइन बांध तो सालों से बना है, जिसके चलते नदी का पानी स्थिर हो गया है और जगह-जगह प्रदूषण फैला हुआ है लेकिन अब प्रशासन ने चौरा, बरेठी, सगवारा, परसौंजा समेत 19 गांवों में मंदाकिनी नदी की धारा अवरुद्ध करने के लिए बुंदेलखंड पैकेज से चेकडैम बनाने का निर्णय लिया है। चौरा, बरेठी व सगवारा में तो काम चालू भी हो गया है बाकी जगह काम की शुरूआत होनी है। इन चेकडैमों को लेकर नदी संरक्षण की बात करने वाले लोगों ने विरोध भी शुरू कर दिया है,लेकिन प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा।
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