हरियाणा प्रदेश को सूखाग्रस्त घोषित करने के मुद्दे पर सरकार और किसान आमने-सामने हैं। सरकार की नजर में प्रदेश में सूखे जैसे हालात नहीं हैं, जबकि किसानों के मुताबिक फसलें पूरी तरह चौपट हो गई हैं। कुछ यही स्थिति 2002 में भी बनी थी और तत्कालीन सरकार ने 1 अगस्त को प्रदेश को सूखाग्रस्त घोषित किया था। किसान मुख्यमंत्री के उस बयान पर भड़क गए हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि राज्य में सूखे की स्थिति नहीं है। इस बयान के बाद किसान यूनियनों ने मोर्चा खोल दिया है।
किसान पहले चरण में राज्यपाल जगन्नाथ पहाड़िया को चिट्ठी भेजकर उनके सहयोग में आगे आने की अपील करेंगे, फिर सीएम से गिरदावरी कराने का अनुरोध करेंगे। मुख्यमंत्री ने बिना सर्वे कराए सूखा न होने का बयान देकर किसानों के साथ खिलवाड़ किया है और किसान इस मुद्दे पर चुप नहीं बैठेगा।
कैसे घोषित होता है सूखा
उपायुक्तों के माध्यम से विशेष गिरदावरी होती है। अगर डीसी सूखे की रिपोर्ट दे दें तो प्रदेश को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया जाता है। मंत्रिमंडल की बैठक में भी फैसला लिया जा सकता है। सूखाग्रस्त घोषित करने के बाद किसानों को विशेष लाभ देना होता है।
क्या है मुआवजा नीति
प्रदेश सरकार ने सूखे के मुआवजे के तौर पर इस बार 51 से 100 फीसदी खराबी पर 2100 रुपए प्रति एकड़ देने का प्रावधान किया है। इसके अलावा सरकार को पानी और पशु चारे की व्यवस्था करनी पड़ती है। कम कीमत पर अनाज दिया जाता है।
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