सूखे ने सुखा दी जान

मध्य प्रदेश में बारिश न होने से खरीफ की फसल सूख गई है। रबी की फसल के लिये भी बारिश न हुई तो अधिकांश किसानों के घरों का चूल्हा जलना मुश्किल हो जाएगा। सरकार ने मुआवजा देने का भरोसा दिला था, लेकिन अब उसमें कई शर्तें जोड़ देने से हजारों किसान मुआवजे से वंचित हो जाएंगे। स्थिर उपज, गिरती कीमतें और घटते मुनाफे से खेती भयानक संकट के दौर से गुजर रही है।

 

.‘अब लगता है खेती करना बंद कर दूं।’ मध्य प्रदेश में रीवा जिले के किसान जावेन्द्र सिंह यही कहते हैं। उन्होंने दो एकड़ में सोयाबीन बोया था। उपज हुई मात्र पचास किलो। कटाई में जितनी मजदूरी दी, उसके बराबर भी सोयाबीन नहीं मिली। जिले में हजारों किसानों ने सोयबीन की कटाई नहीं की, कारण उपज से ज्यादा मजदूरी देनी पड़ेगी। लिहाजा जितनी भी खड़ी फसल थी, उसके समेत दोबारा खेत जोत दिए।

 

पहले रबी के सीजन में बेमौसम बरिश ने किसानों की कमर तोड़ दी थी। फिर खरीफ के सीजन में सूखे ने किसानों की जान ही सुखा कर रख दी। जिले में ऐसे हजारों किसान हैं जिन पर तीन से चार लाख रु. तक का कर्ज है। इससे किसान और खेती दोनों संकट में है। दोबारा से किसान रबी की फसल बोने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं।

 

सवाल यह है कि आखिर किसान अपने लिये मौत की फसल कब तक बोते रहेंगे। राज्य सरकार ने 114 तहसीलों को सूखाग्रस्त घोषित किया, लेकिन इसके निर्धारण में हर बार की तरह धांधली की शिकायतें सामने आयी हैं। इन दिनों वेतन वृद्धि की मांग को लेकर पटवारी हड़ताल पर हैं। इस बीच राज्य सरकार ने मुआवजा वितरण को लेकर राजस्व पुस्तक परिपत्र खण्ड छह क्रमांक 4 में कई संशोधन किए हैं। माना जा रहा है कि इससे उन हजारों किसानों को मुआवजा नहीं मिलेगा जिनकी फसल बर्बाद हुई है। संशोधन के मुताबिक किसानों को एक घोषणा पत्र भरकर देना होगा कि वे मुआवजा पाने के पात्र हैं। जांच में यदि घोषणा पत्र गलत पाया गया तो किसान के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज होगा। यदि कोई किसान आयकर दाता है, खेती के अलावा वह अन्य कार्य भी करता है तो उसे मुआवजा नहीं मिलेगा। यदि किसी किसान के परिवार में कोई एक सदस्य सरकारी नौकरी में होगा तो भी वह मुआवजा का हकदार नहीं है। किसान परिवार का कोई सदस्य कोई फर्म या संस्था चलाता है तो उसे भी मुआवजा राशि नहीं मिलेगी। यदि किसी किसान की सालाना आय 2 लाख रु. से अधिक है तो भी वह मुआवजे का हकदार नहीं है।

 

प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष और विधायक सुन्दर लाल तिवारी का आरोप है कि सरकार मुआवजा ही नहीं देना चाहती है,इसलिये आरबीसी में संशोधन कर किसानों के साथ नाइंसाफी कर रही है। परिवार में एक व्यक्ति कमाने वाला है लेकिन बंटावारा नहीं हुआ है, पिता के नाम पर जमीन है, ऐसी स्थिति में मुआवजे से वंचित करना कहां का न्याय है।

 

किसान महापंचायत के अध्यक्ष रमाकांत पांडेय ‘रामू’ कहते हैं कि सरकार की मंशा किसानों को मुआवजा देने की ही नहीं रहती। वह पटवारी से सर्वे कराती है, जो कभी सही सर्वे नहीं करते। खेतों के सर्वे का काम सरपंच, ग्राम सेवा सहकारी समिति के अध्यक्ष, हलका पटवारी ग्राम सेवक या कृषि पर्यवेक्षक से कराना चाहिए। दरअसल किसानों की मदद में हमेशा से सरकार की नीति और नियत में फर्क रहा है। इसलिये कि मुआवजा देने के लिये कोई अलग से कानून नहीं है। मुआवजा देने के लिये जो नियम बनाए गए हैं, अक्सर उस परिधि में हजारों किसान बाहर हो जाते हैं।   

 

पटवारी भी सर्वे में अपनी मनमानी करते हैं। उसका नतीजा यह निकलता है, किसान को मुआवजा कम मिलता है अथवा नहीं मिलता है। जैसा कि श्योपुर जिले के बगडुवा गाँव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मथुरालाल मीणा, मंशाराम मीणा और जयराम मीणा के खेतों में सोयाबीन, धनिया और मेथी की फसल देखकर सौ फीसदी नुकसान की बात कही और क्षति की पूरी भरपाई करने का भरोसा दिया था। लेकिन सर्वे टीम ने 60 फीसदी नुकसान का आकलन किया। आस-पास के सभी खेतों में 30 फीसदी नुकसान माना। यह अकेले श्योपुर जिले का मामला नहीं है। सींधी, रीवा, कटनी, दमोह, सिवनी, सिंगरौली, भिंड, पन्ना, शहडोल, कटनी, टीकमगढ़ सहित दर्जनों जिलों के गाँवों की यही स्थिति है।

 

रबी सीजन में प्रदेश के 3500 गाँवों के किसानों की फसल बर्बाद हुई थी। सरकार का अनुमान है इस बार सूखे की वजह से प्रदेश में करीब 22 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है। बसपा के पूर्व सांसद देवराज सिंह पटेल कहते हैं,‘ फसल खराब होने पर मुआवजे के लिये सर्वे तो होता है, लेकिन कोई किसान आज तक नहीं जान पाया कि सर्वे किस तरह होता है। यही वजह है कि जो मुआवजे के हकदार हैं वे पीछे रह जाते हैं और दूसरे मुआवजा पा जाते हैं।

 

मुआवजे की सूची में सिर्फ सोयाबीन

 

सरकार की तरफ से कहा गया कि किसानों को समग्र फसलों का मुआवजा दिया जाएगा। लेकिन पटवारियों ने केवल सोयाबीन बोने वाले किसानों को ही मुआवजे की सूची में शामिल किया। किसान कह रहे हैं कि सोयाबीन ही नहीं धान की भी फसल चौपट हुई है। पर उनकी कोई सुन ही नहीं रहा है। जाहिर है कि रसूख वाले किसान ज्यादा मुआवजा पा जाएंगे और गरीब किसान वाजिब मदद को भी तरस जाएंगे।

 

पन्ना जिले के अमानगंज तहसील के ग्राम पगरा निवासी 55 वर्षीय किसान सुन्दर कुशवाहा कर्ज से परेशान होकर अपने खेत में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। मृतक किसान के पास दो एकड़ खेत था। अन्य किसानों से 7-8 एकड़ भूमि ठेके पर लिया करता था। मृतक के भाई सौखी कुशवाहा ने बताया उस पर सहकारी बैंक का 20 हजार रूपए और साहूकारों का 50 हजार रूपए का कर्ज था। ठेके की जमीन का भी पैसा देना था। कर्ज की वजह से वह चिंतित और परेशान रहता था। गाँव के कालीचरण पटेल से 35 किलो गेहूं खाने के लिये उधार लिया था। पटवारी ने एसडीएम आर. एस. बाकना को बताया कि कोई क्षति नहीं हुई इसलिये सर्वे में उसका नाम नहीं जोड़ा गया। इसके चलते उसने आत्महत्या कर ली। इसके बावजूद पटवारी का कहना था कि सुन्दर की फसल को इतना नुकसान नहीं पहुंचा था कि उसका नाम मुआवजे की सूची में शामिल किया जाए।

 

सर्वे में देरी मौत की वजह

 

सच्चाई यह है कि फसल नुकसान का सर्वे एक सप्ताह में कराकर सरकार मुआवजा वितरित कर दे तो किसानों के मरने की नौबत नहीं आएगी। लेकिन होता उल्टा है। 2010 में केन्द्र सरकार की ओर से गठित हुड्डा कमेटी ने प्राकृतिक आपदा से फसल के नुकसान को लेकर अपनी रिपोर्ट में कहा था, नुकसान का सर्वे जल्द से जल्द होने चाहिए। हुड्डा कमेटी की राय थी कि एक हेक्टेयर में फसल पैदा करने पर किसान को 25 हजार का खर्च आता है। इसलिये मुआवजा भी उसी के हिसाब दिया जाना चाहिए। लेकिन सरकार बड़ी मुश्किल से 3-7 हजार रूपए प्रति हेक्टेयर का मुआवजा देती है।

 

कृषि बीमा सरल होना चाहिए

 

इसके साथ ही कृषि बीमा को सरल बनाने की जरूरत है। वर्तमान मेंं बीमा के लिये व्यक्ति या खेत को इकाई बनाने की बजाए समूह को इकाई बनाकर इसे बहुत जटिल बना दिया गया है। इसमें मुआवजा तभी मिलता है जब पूरी तहसील या गाँव की 50 फीसदी फसल नष्ट हुई हो। नुकसान के  मूल्यांकन की प्रक्रिया भी पारदर्शी नहीं है। जबकि बीमा की राशि व्यक्ति से ली जाती है। इसलिये नुकसान की इकाई समूह की बजाए खेत को बनाना चाहिए। चूंकि मुआवजा की जितनी राशि बनती है, कोई भी सरकार नहीं दे सकती। इसलिये बीमा की प्रक्रिया को सरल किया जाना चाहिए।

 

मध्य प्रदेश में शून्य ब्याज दर पर किसानों को ऋण देने की योजना है, लेकिन एक साल के लिये ही। समय पर राशि जमा नहीं की गई तो उस पर किसानों को ब्याज देना अनिवार्य है। किसान अच्छी फसल लेने के चक्कर मेंं अधिक ऋण लेने लगे हैं। फसल बर्बाद होने पर कर्ज का बोझ ही किसानों के गले का फंदा बन जाता हैं।

 

समाजशास्त्री कौशलेश तिवारी कहते हैं,‘आज के समय में खेती करना फायदेमंद सौदा नहीं है। जितनी मेहनत, निवेश और अनिश्चितता खेती में है उतनी किसी और में नहीं है। उसे देखते हुए यह दूसरे पेशों के तुलना में घाटे का सौदा ही लगता है। जिसके पास जमीन नहीं है उसके लिये तो यह भारी घाटे का सौदा है।’

 

किसानों का साथ नहीं दे रहा मौसम

 

किसान के लिये बारिश अच्छी तो खेती अच्छी। कभी-कभी अधिक बारिश भी खेती के लिये हितकर नहीं होती। देश में 49 फीसदी लोग प्रत्यक्ष या फिर अप्रत्यक्ष तौर पर खेती पर निर्भर हैं। किसान कई सालों से मौसम की मार झेल रहा है। अनावृष्टि की वजह से भू-जल स्तर भी गिरता जा रहा है। मिट्टी की गुणवता भी दिनों-दिन खराब होती जा रही है। पिछड़े इलाकों में सिंचाई साधनों की कमी भी फसल चक्र को चौपट कर देती है। किसान दोनों ओर से मारा जाता है।

 

यदि सूखा पड़े तो नुकसान। और अगर बंपर उपज हो तो भी उसे लागत से कम मूल्य मिलने का नुकसान। साफ है कि किसान दोहरी मार झेल रहे हैं। जैसे प्याज इस समय भले महंगी होती जा रही है, लेकिन पिछले साल प्याज के दाम इतने कम थे कि किसानों ने उसे अपने खेत में सड़ने के लिये छोड़ दिया था। आलू और टमाटर के साथ भी यही होता है।

 

एक साल में 826 किसानों की मौत

 

अनाज की कीमतें कभी आसमान में तो कभी जमींन पर। इस वजह से किसान तय नहीं कर पाता कि क्या उगाएं और क्या नहीं। इस समय अरहर सबसे अधिक कीमत दे रही है। जरूरी नहीं है कि अगले साल भी किसान को अरहर की मुंह मांगी कीमत मिले। यदि दलहन की पैदावार अधिक हो गई तो बाजार में कोई इसे पूछेगा नहीं। मोटे ब्याज दर पर कर्ज लेकर किसान जिसकी कीमत अधिक मिलने की आशा करता है, उसे खेत में उगााने की सोचता है, किस्मत और मौसम ने साथ नहीं दिया तो वही उसके लिये मौत का फंदा बन जाता है।

 

एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल मध्य प्रदेश में 826 किसानों की मौत हुई। इनमें से फसल की बर्बादी के चलते 357 किसानों को मौत लील गई। 208 किसानों ने पारिवारिक कलह के चलते जान दे दी। 152 किसान बीमारी में उचित इलाज न मिलने के चलते असमय चल बसे। 198 किसानों के मरने का कारण पता नहीं चल सका। इस साल अभी तक 59 किसान अपने जीवन को समाप्त कर चुके हैं।

 

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