पहाड़ी पर बसे कबरई विकास खंड के मुगौरा गांव की जमीन असमतल, उबड़-खाबड़ होने के कारण प्राकृतिक पानी खेतों में संचित नहीं हो पाता व निजी साधन पहुंच से बाहर होने के कारण लोगों ने कठिया गेहूं को प्राथमिकता दी।
जनपद महोबा के कबरई विकास खंड का ग्राम मुगौरा मगरिया नाले के किनारे पहाड़ी पर बसा हुआ है, जिस कारण यहां की ज़मीन असमतल तथा उबड़-बड़ है। यहां पर खेतों की ढलान एक से डेढ़ मीटर तक की है। खेती यहां की मुख्य आजीविका है, जो पूर्णतया वर्षा पर आधारित है। हालांकि सिंचाई हेतु कुछ निजी साधन जैसे निजी कूप, पम्पसेट आदि भी हैं, परंतु उनकी लागत अधिक होने के कारण अधिकांश लोगों की पहुंच से बाहर होते हैं। निकट स्थिति कबरई बांध में पानी का संग्रह होने के कारण गांव में पानी का स्तर ठीक रहता था और लोग अधिक पानी वाली फसलों जैसे- मसूप, सिंचित गेहूं, लाही की भी बुवाई कर लेते थे, परंतु एक तरफ तो दिनोंदिन बढ़ते रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों के प्रयोग से भूमि ऊसर हुई, तो दूसरी तरफ मानसून की बिगड़ती स्थिति के कारण वर्षा कम हुई। वर्ष 2003 से लगातार कम होती बारिश के कारण कबरई बांध पूर्णतया सूख गया और फ़सलों की सिंचाई तो दूर यहां के लोगों को पीने के पानी की भी किल्लत होने लगी। इन दोनों परिस्थितियों ने मिलकर खेती से लोगों को विमुख कर दिया, क्योंकि उपरोक्त फसलें यहां पर नहीं ली जा सकती थीं।
ऐसी परिस्थिति से निपटने के लिए लोगों ने कठिया गेहूं की खेती करने का विचार बनाया, जो कम पानी वाली या मात्र नमी चाहने वाली प्रजाति होती है। यह सामान्य गेहूं के दाने से थोड़ी छोटी होती है, परंतु खाने में स्वादिष्ट होती है। अतः इससे खाद्य का संकट भी टाला जा सकता है।
भूमि का प्रकार
इसकी खेती के लिए कावर भूमि अधिक उपयुक्त होती है।
बरसात के मौसम में बारिश हो जाने के बाद तुरंत तीन बार जुताई की जाती है और बुवाई के पूर्व ट्रैक्टर/ कल्टीवेटर से खेत में पाटा लगाया जाता है, जिससे खेत में नमी बनी रहे।
कठिया गेहूं की देशी प्रजाति का बीज है।
कठिया गेहूं के साथ चना व अलसी को भी न्यून मात्रा में मिलाते हैं।
प्रति एकड़ (40 किग्रा. गेहूं, 7.5 किग्रा. चना व 2.5 किग्रा. अलसी, तीनों को मिलाकर) 50 किग्रा. के हिसाब से बुवाई की जाती है।
स्वाति नक्षत्र (अक्टूबर माह) में देशी हल के द्वारा इसकी बुवाई लाइनवार दो से ढाई अंगुल की गहराई पर की जाती है।
बुवाई के पूर्व खेत में 4 ट्राली देशी (घूरगड्ढा की खाद) खाद को फैला दिया गया।
हालांकि इसमें निराई-गुड़ाई की विशेष आवश्यकता नहीं होती है, परंतु कभी-कभी बथुआ व हिरनखुरी नामक खर-पतवार दिखता है, जिसकी निराई कर उसे पशुओं को खिलाने के काम में लाते हैं। बथुआ का प्रयोग साग के रूप में भी बहुतायत से किया जाता है।
सिंचाई के लिए बुवाई से पूर्व ही खेत में नमी बनाई जाती है, जिसके लिए खेत की चारों तरफ से मेड़बंदी कर उसमें नमी संरक्षित किया जाता है।
गेहूं में होने वाले गेरूआ व कण्डुआ रोगों के नियंत्रण के लिए 12 ली. मट्ठा, 125 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करते हैं।
कठिया गेहूं 120 से 125 दिन में पक कर कटने के लिए तैयार हो जाता है।
इसकी कटाई हाथ से दराती की सहायता से की जाती है तथा बैलों की सहायता से मड़ाई की जाती है।
एक एकड़ में 4.38 कुन्तल गेहूं, 50 किग्रा. चना व 30 किग्रा. अलसी प्राप्त होती है।
परिचय
जनपद महोबा के कबरई विकास खंड का ग्राम मुगौरा मगरिया नाले के किनारे पहाड़ी पर बसा हुआ है, जिस कारण यहां की ज़मीन असमतल तथा उबड़-बड़ है। यहां पर खेतों की ढलान एक से डेढ़ मीटर तक की है। खेती यहां की मुख्य आजीविका है, जो पूर्णतया वर्षा पर आधारित है। हालांकि सिंचाई हेतु कुछ निजी साधन जैसे निजी कूप, पम्पसेट आदि भी हैं, परंतु उनकी लागत अधिक होने के कारण अधिकांश लोगों की पहुंच से बाहर होते हैं। निकट स्थिति कबरई बांध में पानी का संग्रह होने के कारण गांव में पानी का स्तर ठीक रहता था और लोग अधिक पानी वाली फसलों जैसे- मसूप, सिंचित गेहूं, लाही की भी बुवाई कर लेते थे, परंतु एक तरफ तो दिनोंदिन बढ़ते रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों के प्रयोग से भूमि ऊसर हुई, तो दूसरी तरफ मानसून की बिगड़ती स्थिति के कारण वर्षा कम हुई। वर्ष 2003 से लगातार कम होती बारिश के कारण कबरई बांध पूर्णतया सूख गया और फ़सलों की सिंचाई तो दूर यहां के लोगों को पीने के पानी की भी किल्लत होने लगी। इन दोनों परिस्थितियों ने मिलकर खेती से लोगों को विमुख कर दिया, क्योंकि उपरोक्त फसलें यहां पर नहीं ली जा सकती थीं।
ऐसी परिस्थिति से निपटने के लिए लोगों ने कठिया गेहूं की खेती करने का विचार बनाया, जो कम पानी वाली या मात्र नमी चाहने वाली प्रजाति होती है। यह सामान्य गेहूं के दाने से थोड़ी छोटी होती है, परंतु खाने में स्वादिष्ट होती है। अतः इससे खाद्य का संकट भी टाला जा सकता है।
प्रक्रिया
भूमि का प्रकार
इसकी खेती के लिए कावर भूमि अधिक उपयुक्त होती है।
खेत की तैयारी
बरसात के मौसम में बारिश हो जाने के बाद तुरंत तीन बार जुताई की जाती है और बुवाई के पूर्व ट्रैक्टर/ कल्टीवेटर से खेत में पाटा लगाया जाता है, जिससे खेत में नमी बनी रहे।
बीज
कठिया गेहूं की देशी प्रजाति का बीज है।
मिश्रण
कठिया गेहूं के साथ चना व अलसी को भी न्यून मात्रा में मिलाते हैं।
बीज की मात्रा
प्रति एकड़ (40 किग्रा. गेहूं, 7.5 किग्रा. चना व 2.5 किग्रा. अलसी, तीनों को मिलाकर) 50 किग्रा. के हिसाब से बुवाई की जाती है।
बुवाई का समय व विधि
स्वाति नक्षत्र (अक्टूबर माह) में देशी हल के द्वारा इसकी बुवाई लाइनवार दो से ढाई अंगुल की गहराई पर की जाती है।
खाद
बुवाई के पूर्व खेत में 4 ट्राली देशी (घूरगड्ढा की खाद) खाद को फैला दिया गया।
निराई-गुड़ाई
हालांकि इसमें निराई-गुड़ाई की विशेष आवश्यकता नहीं होती है, परंतु कभी-कभी बथुआ व हिरनखुरी नामक खर-पतवार दिखता है, जिसकी निराई कर उसे पशुओं को खिलाने के काम में लाते हैं। बथुआ का प्रयोग साग के रूप में भी बहुतायत से किया जाता है।
सिंचाई
सिंचाई के लिए बुवाई से पूर्व ही खेत में नमी बनाई जाती है, जिसके लिए खेत की चारों तरफ से मेड़बंदी कर उसमें नमी संरक्षित किया जाता है।
रोग नियंत्रण
गेहूं में होने वाले गेरूआ व कण्डुआ रोगों के नियंत्रण के लिए 12 ली. मट्ठा, 125 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करते हैं।
पकने की अवधि
कठिया गेहूं 120 से 125 दिन में पक कर कटने के लिए तैयार हो जाता है।
कटाई व मड़ाई
इसकी कटाई हाथ से दराती की सहायता से की जाती है तथा बैलों की सहायता से मड़ाई की जाती है।
उपज
एक एकड़ में 4.38 कुन्तल गेहूं, 50 किग्रा. चना व 30 किग्रा. अलसी प्राप्त होती है।
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