अमर उजाला ब्यूरो, 19 नवंबर 2013, बाँदा। बुंदेलखंड के सूखे खेतों को तालाबों के पानी से तर करने के लिए अब किसानों ने खुद बीड़ा उठाया है। मेहनती किसान अपने खेतों में निजी तालाब खोद रहे हैं। फिलहाल यह अभियान पानी के लिए डार्क जोन घोषित हो चुके महोबा में जोरशोर में चल रहा है। यहाँ छह माह में एक सैकड़ा से ज्यादा तालाब खोदे जा सके हैं। लक्ष्य इस वर्ष एक हजार तालाब खोदने का हैं महोबा के जिलाधिकारी भी इसमें दिलचस्पी ले रहे हैं।
पुराने ऐतिहासिक तालाबों में ज्यादातर खात्मे की कगार पर हैं, तमाम जीर्ण-शीर्ण है। गाँव में तालाबों की बाढ़ मनरेगा चालू होने के बाद आयी। चटियल धरती से पटे पड़े बुंदेलखंड के हरेक गाँवो में तालाब खुद गए। कुछ गाँवो में तो कई-कई तालाब खुद गए। इनमें से एक तालाब को माडल तालाब का नाम दिया गया। औसतन 5 से 10 लाख रुपये तक प्रत्येक तालाब में ठिकाने लगा दिए गए। इक्का-दुक्का छोड़कर ज्यादातर तालाब सूखे पड़े हैं, इनमें धूल उड़ रही है।
महोबा में छह माह में खोदे गए सौ तालाब
सरकारी योजना फ्लॉप होने के बाद अब किसानों ने सिंचाई का पानी जुगाड़ करने के लिए अपने ही खेतों में अपना तालाब खोदने की कमर कस ली है. बुंदेलखंड के कुछ जागरूक किसानों समेत दिल्ली और लखनऊ की स्वयंसेवी संस्थाओं के लोग प्रेरित कर रहे हैं. फिलहाल महोबा में यह अभियान तेजी पकड़े है। यहां अब तक एक सौ तालाब बन चुके हैं। पिछली बारिश में इनमें पानी भी भर चुका है। कबरई ब्लॉक में सर्वाधिक 70 तालाब खोदे गये हैं। ये सारे खेत सिंचाई के मकसद से बनाए गये हैं।
मुहिम में शामिल प्रेरकों का कहना है कि खेत में तालाब खुदने के बाद उसमें आई लागत दो से ढाई वर्षों में वापस आ जाती है। सलाना एक फसल की जगह दो फसल ली जाने लगती है। भूजल अपने आप ऊपर आ जाता है।
अभियान में जुटे जागरूक किसान पुष्पेन्द्र भाई ने बाताया कि खेत में निजी तालाब खोदने में नाममात्र की पूंजी लगती है। इस अभियान में केसर भाई (हिन्दी वाटर पोर्टल), डॉ अरविन्द खरे (ग्रामोन्नति), पंकज बागवान (मातृभूमि संस्थान) विशेष रूप से शामिल रहे। जिलाधिकारी अनुज कुमार झा के कुशल नेतृत्व में महोबा में काम चल रहा है।
प्रस्तुति - पंकज श्रीवास्तव
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