सूखे की आहट

पूर्वी उ.प्र. में दस दिन देरी से मानसून आया है जिससे खरीफ की फसल को 10-15 फीसदी का नुकसान हुआ। एक तरफ धान की रोपाई में देरी हुई वहीं खरीफ की फसल में शामिल मक्का, मूंगफली, ज्वार-बाजरा और जौ की खेती से किसानों को मोह भंग हुआ। मानसून की इस लेटलतीफी के चलते इस बार उन किसानों की कमर टूटेगी जिनके पास सिंचाई के निजी संसाधन नहीं हैं।

सूखे के हालात से निजात दिलाने के लिए आए मानसून ने किसानों के सामने दिक्कत खड़ी कर दी है। एक तो खरीफ की बुआई में देर हो गई है दूसरे उपज को लेकर भी असमंजस की स्थिति है। मानसून ने ऐसे समय दस्तक दी जब न केवल खरीफ की बुआई का लंबा समय निकल गया था बल्कि सरकारें भी सूखे का आकलन करने में जुटी हैं। सामान्यतः आषाढ़ में अच्छी बरसात होती है मगर राज्य में इस बार इस महीने बदरा बरसे बिना गुजर गए। सावन में मानसून ने पहली दस्तक दी। वह भी सिंचाई के लिहाज से उतना नहीं था जिस पर किसान इतरा सकें। बीते छह वर्षों की तुलना में इस वर्ष जून में सबसे अधिक तापमान दर्ज हुआ तो पिछले डेढ़ दशक में सबसे कम बारिश इस साल जून में हुई। इस महीने तापमान 45.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा जबकि बारिश महज 5.9 मिमी हुई। वर्ष 2011 के जून महीने में अधिकतम तापमान 42 डिग्री रहा था जबकि 164.4 मिमी बारिश हुई थी।

खेती के लिए रामबाण दक्षिण-पश्चिमी मानसून के चलते दलहन, तिलहन, धान, गन्ना, कपास और सोयाबीन की पैदावार पर असर पड़ना लाजिमी है क्योंकि जून महीने की बारिश से कुल खेती योग्य भूमि का एक तिहाई हिस्सा सिंचित होता है। मानसून की बेरुखी ने जहां धान की पैदावार को भगवान भरोसे छोड़ने की स्थिति ला दी है वहीं कृषि महकमे का भी सुख-चैन छीन लिया। उनके सामने धान की उपज बढ़ाने के साथ-साथ मोटे अनाजों की पैदावार में इजाफा करने का जो लक्ष्य था वह पूरा होता नहीं दिख रहा। पिछले साल अच्छी पैदावार के चलते ही गेहूं व चावल के मूल्यों में बड़े उतार-चढ़ाव नहीं हुए। हालांकि मोटे अनाजों के दाम में 30-33 फीसदी तक का इजाफा हुआ।

राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किसान रामसरन वर्मा ने बताया कि खरीफ का सत्र इस बार विलंबित हुआ है। पूर्वी उ.प्र. में दस दिन देरी से मानसून आया है जिससे खरीफ की फसल को 10-15 फीसदी का नुकसान हुआ। एक तरफ धान की रोपाई में देरी हुई वहीं खरीफ की फसल में शामिल मक्का, मूंगफली, ज्वार-बाजरा और जौ की खेती से किसानों को मोह भंग हुआ। वर्मा बताते हैं कि किसी भी उपज का पचास फीसदी श्रेय किसान को जाता है तो पचास फीसदी मानसून को। मानसून की इस लेटलतीफी के चलते इस बार उन किसानों की कमर टूटेगी जिनके पास सिंचाई के निजी संसाधन नहीं हैं। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में 23.7 फीसदी सिंचाई नहरों के मार्फत होती है, जबकि बाकी का 77 फीसदी नलकूपों और लघु सिंचाई के मार्फत। उ.प्र. में 41.30 लाख निजी नलकूप हैं जिसमें 85 फीसदी डीजल चालित है।

उत्तर प्रदेश के 820 विकास खंडों में से 76 विकास खंड अति दोहित, 32 विकास खंड क्रिटिकल, 107 विकास खंड सेमी क्रिटिकल तथा शेष 600 विकास खंड सुरक्षित श्रेणी में वर्गीकृत किए गए हैं। 31 मार्च 2004 के आंकड़े बताते हैं कि उस समय केवल 37 विकास खंड अति दोहित, 13 विकास खंड क्रिटिकल और 88 विकास खंड सेमी क्रिटिकल श्रेणी में थे। इससे यह अंदाज आसानी से लगाया जा सकता है कि किसान निजी और सरकारी नलकूपों पर कितने निर्भर हैं। लेकिन जब भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा हो तब इससे भी काम नहीं चलने वाला है। वह भी तब हर साल खेती पर निवेश कम हो रहा हो। पहली पंचवर्षीय योजना में कृषि पर कुल बजट का 14.90 फीसदी खर्च हुआ था जो दसवीं योजना में घटकर 7.70 फीसदी रह गया।

ग्यारहवीं और बारहवीं पंचवर्षीय योजना में कृषि पर कुल बजट का सिर्फ पांच फीसदी खर्च हुआ है। इसमें भी अधिकांश धनराशि केंद्र के खाते से ही आई। इसी घटते रुझान के चलते कृषि विकास दर 3.2 फीसदी पर ठहर गई। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार ने वर्तमान खरीफ सत्र 2012 में 182.59 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न तथा 1.81 लाख मीट्रिक टन तिलहन उत्पादन का लक्ष्य रखा है। पर मौसम के बदलते रुख के चलते इस लक्ष्य को हासिल कर पाना संभव नहीं दिखता है।

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