सूखे के जवाब में ‘जन-जल जोड़ो’

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कर्नाटक, आंशिक तमिलनाडु, आंध प्रदेश, गुजरात... जिस जिस ने बड़े बांधों पर अपनी निर्भरता बढ़ाई, वे बेपानी हुए। क्यों? क्योंकि महाराष्ट्र ने सिंचाई का इंतज़ाम तो किया; लेकिन पानी के उपयोग के अनुशासन को उसने कभी याद नहीं रखा। इसलिए वह बेपानी हुआ। आत्महत्याएँ हुईं। पानी के इंतज़ाम में सबसे कम सरकारी पैसा राजस्थान के हिस्से आया। लेकिन राजस्थान में पानी के अभाव में एक भी आत्महत्या नहीं हुई। क्योंकि राजस्थान पानी के अनुशासन के मामले में मिसाल बनकर हमेशा आगे दिखा। महाराष्ट्र में सूखे के जवाब में पेशाब कर पानी लाने वाला अजीत पवार का बयान है; गुजरात में कांग्रेस की जलयात्रा है; बुंदेलखण्ड में तालाब जगाने और बनाने की पैरवी की मुहिम है, तो ग़रीबों को सूखे की मार से बचाने के लिए देशभर में तरुण भारत संघ का ‘जन-जल जोड़ो अभियान’ है। इस अभियान की योजना को अंतिम रूप देने के लिए तरुण भारत संघ 18-19 अप्रैल को एक सम्मेलन आयोजित किया है। विवरण के लिए संलग्नक देखें। तरुण भारत संघ के अगुवा के शब्दों में आमंत्रण उन सभी के लिए खुला है, जो गरीबी मुक्त भारत की कल्पना करते हैं; जो जलस्वराज के रास्ते ग्रामस्वराज का लक्ष्य हासिल करने और इस हेतु अपनी भूमिका खुद तलाशकर स्वयं को प्रस्तुत करने में विश्वास रखते हैं।

समझना, समझाना, रचना और सत्याग्रह - राजेन्द्र सिंह मानते हैं कि सुनने में इस अभियान के ये चार कदम पुराने लग सकते हैं। मैं दस साल पहले भी यही कहता था और आज भी। मैं हमेशा यही कहता रहा हूं कि बड़े ढांचे बड़ा विनाश करते हैं। भारत के जलसंकट का समाधान छोटी संरचनाओं और छोटे-छोटे कामों में है। लेकिन आज हमारे पास यह कहने के संदर्भ दूसरे हैं। दस वर्ष पहले हमारे पास यह कहने के लिए नहीं था कि जलसंकट को झेलने की सबसे कम क्षमता वहां दिखी, जहां पानी के इंतज़ाम में देश का सबसे ज्यादा पैसा खर्च हुआ। महाराष्ट्र ! आज़ादी के बाद से लेकर अब तक सिंचाई परियोजनाओं का सबसे ज्यादा पैसा महाराष्ट्र में गया। बड़े सिंचाई बांधों की सबसे ज्यादा संख्या महाराष्ट्र के हिस्से में आई। त्रासदी भी सबसे ज्यादा महाराष्ट्र ने ही झेली। कर्नाटक, आंशिक तमिलनाडु, आंध प्रदेश, गुजरात... जिस जिस ने बड़े बांधों पर अपनी निर्भरता बढ़ाई, वे बेपानी हुए। क्यों? क्योंकि महाराष्ट्र ने सिंचाई का इंतज़ाम तो किया; लेकिन पानी के उपयोग के अनुशासन को उसने कभी याद नहीं रखा। इसलिए वह बेपानी हुआ। आत्महत्याएँ हुईं। पानी के इंतज़ाम में सबसे कम सरकारी पैसा राजस्थान के हिस्से आया। लेकिन राजस्थान में पानी के अभाव में एक भी आत्महत्या नहीं हुई। क्योंकि राजस्थान पानी के अनुशासन के मामले में मिसाल बनकर हमेशा आगे दिखा। उसने पानी संजोया ही नहीं, पानी का वाष्पीकरण भी रोका। वाष्पन रोककर बचाए पानी ने न लोगों को मरने दिया और मवेशियों को। वाष्पन रोकने के लिए लगाये पेड़ों और वनस्पतियों ने मवेशियों को भोजन दिया। लोगों को छाछ-दूध भी दिया और मवेशी का पैसा भी।

सरकारें इस सच को समझने को तैयार नहीं है। सरकारें बांधों से भरकर नदियों को सुखाने पर लगी है। सरकार नदियों का जोड़ना चाहती है। ऐसे में हम क्या करें? हमने जन को जल से जोड़ने का संकल्प लिया है। जब जन-जन अपने को जल से जोड़कर अपने जीवन व समुदाय की योजना खुद बनाएगा और उसे क्रियान्वित भी खुद ही करेगा, तब पानी का संकट हमें नहीं डराएगा। तीन साला अकालों में भी हमारे कुओं में पानी रहेगा। 19 अप्रैल को हम इस जुड़ाव के सपने को सच करने देशभर में निकल पड़ेंगे। महाराष्ट्र के संकट को देखते हुए महाराष्ट्र इस मुहिम का मुख्य मुकाम रहेगा। राजेन्द्र सिंह गंगा पर अंतर मंत्रालयी समूह की रिपोर्ट से क्षुब्ध ज़रूर हैं, लेकिन नाउम्मीद नहीं। मानते हैं कि इसी जुड़ाव से आगे चलकर हमारी नदियों के पुनरोद्धार के रास्ते भी निकलेंगे।

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