भोपाल के बड़े तालाब को शहर का लाइफ लाइन माना जाता है। इस तालाब से भोपाल की 40 फीसदी आबादी को जलापूर्ति की जाती है। पर प्राकृतिक छेड़छाड़ और तालाब के प्रति उदासीन रवैया ने तालाब के कैचमेंट क्षेत्र को कम कर दिया और नतीजन बारिश में तालाब का पेट नहीं भर पाता है और साल-दर-साल शहर पर जल संकट गहराता जा रहा है। मार्च महीने में ही बड़े तालाब का जल-स्तर 1653.40 फीट पर आ पहुंचा है। इसकी क्षमता 1666.80 से यह 13.40 फीट कम है।
भोपाल ताल ऐतिहासिक रूप से काफी प्रसिद्ध है और संभवतः यह एशिया का सबसे बड़ा मानव निर्मित जल संरचना है। इसके बारे में यह कहावत है कि “तालों में ताल, भोपाल का ताल/बाकी सब तलैया”। भोपाल को झीलों की नगरी भी कहा जाता है। यहां कई प्राकृतिक झील एवं तालाब रहे हैं, जिसमें से कई के नामोंनिशान अब नहीं बचे हैं। शहर एवं आसपास अभी भी 15 से ज्यादा छोटे-बड़े तालाब बचे हैं, पर सभी अतिक्रमण के शिकार हैं।
भोपाल के बड़े तालाब का निर्माण 11वीं सदी में परमार वंश के राजा भोज ने करवाया था। तालाब निर्माण के बारे में किंवदंती भी है। भोपाल तालाब का कुल भराव क्षेत्र 31 किलोमीटर है, पर अतिक्रमण एवं सूखे के कारण यह क्षेत्र 8-9 किलोमीटर में सिमट गया है। बड़े तालाब को बचाने के लिए जापान से सहायता प्राप्त भोजवेटलैंड परियोजना चलाया गया था, जिसके तहत बड़े तालाब को शहर के गंदे नाले से बचाना था,पर अफसोस की बात है कि एक दर्जन छोटे-बड़े नाले का पानी तालाब में जा रहा है।
बड़े तालाब को बचाने के लिए शासन स्तर पर गहरीकरण का काम किया गया था, पर उसकी खूब आलोचना हुई थी। इसके पीछे वजह यह था कि जब वर्तमान भराव क्षेत्र ही नहीं भर पाता तो तालाब को गहरा करने से क्या फायदा। तालाब को बचाने में लगे पर्यावरणविद हमेशा यह कहते हैं कि इसे अतिक्रमण से बचाना जरूरी है। साथ ही जिन जल स्रोतों से तालाब में पानी आता है, उस स्रोतों के साथ-साथ उनके रास्ते को भी बचाना जरूरी है, पर अभी इस दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं दिखाई पड़ता।
बड़े तालाब के कैचमेंट क्षेत्र में 20 से 50 मीटर तक अतिक्रमण है, जिनमें सैकड़ों मकान, मैरिज गार्डन बने हुए हैं। बड़े तालाब को सूखने से बचाने के लिए इसके कैचमेंट क्षेत्र में विस्तार करना जरूरी है। पिछले दिनों राजा भोज के राज्यारोहण के एक हजार साल पूरे होने पर आयोजित समारोह में भी तालाब को बचाने के लिए ठोस योजना बनाने को लेकर बात की गई थी, पर अभी तक उस दिशा में कोई कार्य नहीं दिखाई पड़ता।
एक आशंका यह भी जताई जा रही है कि यदि नर्मदा नदी से पाइपलाइन के सहारे भोपाल में जल प्रदाय होने लगेगा, तो अपना मूल स्वरूप खोते जा रहे बड़े तालाब के अस्तित्व पर संकट गहरा जाएगा। विश्व जल दिवस पर आज भोपाल के विभिन्न समूह बड़े तालाब को बचाने के लिए चर्चा एवं लोगों को जागरूक कर रहे हैं, साथ ही शासन से अपेक्षा कर रहे हैं कि राजा भोज के इस बेमिसाल धरोहर को मूल रूप में बचाने का प्रयास करें।
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