पिछले 20-25 सालों में पूरे देश में वर्षा की मात्रा में कमी आयी है, यद्यपि इस दौरान कुछ इलाकों में चक्रवात के कारण बहुत ज्यादा बारिश हुई है। इसका उदाहरण 1978 में बंगाल की खाड़ी में हुई 29 और 30 सितंबर की 750 मिलीमीटर वर्षा है। बहुत कम या बहुत ज्यादा वर्षा चक्रवात, अवदाब या निम्न दबाव पर निर्भर करता है। इसलिए चक्रवात के कारण हुई बारिश, कृषि को बहुत अधिक लाभ पहुंचाने के बदले बरबादी का कारण बनता है। लेकिन नियमित अवदाब और अत्यधिक निम्न दाब से हुई बारिश से नुकसान के बजाय फायदा ज्यादा होता है। पिछले कुछ दशकों में तेजी से घटती बारिश की मात्रा के कारण सदाबहार विशाल जल स्रोत हिमालय पर होने वाले हिमपात में भी कमी हुई है। यह अलग-अलग सालों में एक ही मौसम में उपग्रह से लिए गये चित्रों से स्पष्ट है कि इसकी मोटाई और फैलाव क्षेत्र में भी अविश्वसनीय प से कमी आयी है। इसका नतीजा यह हुआ कि हिमालय से निकलने वाली नदियों के पानी के बहाव में भी कमी आई है।
भविष्य की चिंता : राजस्थान की मरुभूमि में नहरों के विस्तार और पानी के अविवेकपूर्ण बंटवारे को लेकर पंजाब के किसान विरोध भी कर चुके हैं। पश्चिमी राजस्थान प्राकृतिक रूप से मरुस्थल है। लेकिन हमने इसके वास्तविक स्वप को बनावटी सिंचाई और आबादी को बसा कर बदल डाला, जिससे हमें भविष्य में एक बड़ी समस्या के रूप में सामना करना पड़ेगा। घटते मानसून और सिकुड़ते हिम प्रदेश के कारण हमारे पास इतना पानी नहीं होगा कि हम इतनी बड़ी आबादी को पाल सकें और सिंचाई पद्धति को बरकरार रख सकें। र्मे डार्लिग सिंचाई क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया को इसी तरह की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। इसलिए, पूरे देश की कीमत पर राजस्थान की यह अल्प उपलब्धि का हासिल कुछ भी नहीं है।
अधिक सूखा अगर राजनीति से प्रेरित इस अवैज्ञानिक कदम को तुरंत नहीं रोका गया तो निम्न दाब का केंद्र, न सिर्फ कमजोर होगा, बल्कि इसका क्षेत्र भी बढ़ेगा, लेकिन यह मध्य भारत के पर्वतीय इलाके में पूर्व की ओर स्थानांतरित भीहोगा, जिससे मध्य भारत का यह क्षेत्र, कम बारिश के कारण धीरे-धीरे सूखेगा। ज्यादा क्षेत्रों में सूखे की अनियमित और चक्रवात की घटनाएं अक्सर घट रही हैं, जो जान-माल के नुकसान का कारण बनती हैं। मजबूत और गहन निम्न दाब केंद्र सामान्यत दूर वाले स्थानों में अत्यधिक बारिश का कारण बनते हैं, और जैसे-जैसे निम्न दाब केंद्र की ओर आता हैं, वर्षा की मात्रा धीरे-धीरे कम होती जाती है। इसलिए, निम्न दाब केंद्र बजाय भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिम में स्थित होने के, अगर धीरे-धीरे मध्य भारत की ओर स्थानांतरित होता है, तो पारंपरिक प से आद्र्र और घने बसे तटीय इलाके के साथ ही उत्तर के मैदानी इलाकों में केंद्र के नजदीक होने के कारण कम बारिश होगी। इस तरह की प्रवृत्ति की शुरुआत हो चुकी है। तब न सिर्फ उत्तर-पश्चिम भाग को सिंचाई के लिए बारिश का पानी कम उपलब्ध होगा, बल्कि दाब बनने की प्रक्रिया के कमजोर होने के कारण समस्त उपमहाद्वीप के शेष भू-भाग में भी कम वर्षा होगी। निश्चित रूप से शुरुआत में राजस्थान, दिल्ली ओद राज्य आशा के विपरीत, कुछ अधिक और अनियमित वर्षा ग्रहण कर सकते हैं। लेकिन कुल मिला कर बारिश की तीव्रता में स्पष्ट प से कमी आयेगी, सौभाग्यवश हम अभी वहां तक नहीं पहुंचे हैं, जहां से लौटा न जा सके। लेकिन, आज हम ऐसी जगह पर पहुंच चुके हैं, जहां से पुरानी स्थिति को हासिल कर पाना तब तक असंभव है, जब तक थार के मरुस्थल को उसके मूल स्वप में वापस न ले आयें।
कोलकाता : मानसून के बढ़ते अनियमित व्यवहार ने भारतीयों को चिंता में डाल दिया है। इसके लिए जनजातियों को दोषी ठहराया जा रहा है कि उन लोगों ने जंगलों का नाश कर दिया। और वही सूखा का कारण बन रहा है। इस समस्या का एक ही हल बताया जा रहा है वन रोपण। लेकिन जंगलों की बरबादी के ये दोनों ही कारण नहीं हैं। सूखा का मूल कारण समझने के लिए पहले तो मानसून की उत्पत्ति को समझना होगा और मानसून की क्रिया पद्धति को बनाये रखने के लिए मरुस्थल की जरत को समझना होगा। वर्षापात से जंगलों का विकास होता है, लेकिन सिर्फ जंगल पर्याप्त वर्षा करा पाने में सक्षम नहीं हैं। यहां यह स्थापित किया गया है कि भारतीय उपमहाद्वीप में मरुस्थल और मानसून हिमालय की उत्पत्ति के बाद उद्भूत हुए हैं।
मानसून के बढ़ते अनियमित व्यवहार ने भारतीयों को चिंता में डाल दिया है। इसके लिए जनजातियों को दोषी ठहराया जा रहा है कि उन लोगों ने जंगलों का नाश कर दिया। और वही सूखा का कारण बन रहा है। इस समस्या का एक ही हल बताया जा रहा है वन रोपण। लेकिन जंगलों की बरबादी के ये दोनों ही कारण नहीं हैं। सूखा का मूल कारण समझने के लिए पहले तो मानसून की उत्पत्ति को समझना होगा और मानसून की क्रिया पद्धति को बनाये रखने के लिए मरुस्थल की जरत को समझना होगा। वर्षापात से जंगलों का विकास होता है, लेकिन सिर्फ जंगल पर्याप्त वर्षा करा पाने में सक्षम नहीं हैं। यहां यह स्थापित किया गया है कि भारतीय उपमहाद्वीप में मरुस्थल और मानसून हिमालय की उत्पत्ति के बाद उद्भूत हुए हैं।
भविष्य की चिंता : राजस्थान की मरुभूमि में नहरों के विस्तार और पानी के अविवेकपूर्ण बंटवारे को लेकर पंजाब के किसान विरोध भी कर चुके हैं। पश्चिमी राजस्थान प्राकृतिक रूप से मरुस्थल है। लेकिन हमने इसके वास्तविक स्वप को बनावटी सिंचाई और आबादी को बसा कर बदल डाला, जिससे हमें भविष्य में एक बड़ी समस्या के रूप में सामना करना पड़ेगा। घटते मानसून और सिकुड़ते हिम प्रदेश के कारण हमारे पास इतना पानी नहीं होगा कि हम इतनी बड़ी आबादी को पाल सकें और सिंचाई पद्धति को बरकरार रख सकें। र्मे डार्लिग सिंचाई क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया को इसी तरह की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। इसलिए, पूरे देश की कीमत पर राजस्थान की यह अल्प उपलब्धि का हासिल कुछ भी नहीं है।
अधिक सूखा अगर राजनीति से प्रेरित इस अवैज्ञानिक कदम को तुरंत नहीं रोका गया तो निम्न दाब का केंद्र, न सिर्फ कमजोर होगा, बल्कि इसका क्षेत्र भी बढ़ेगा, लेकिन यह मध्य भारत के पर्वतीय इलाके में पूर्व की ओर स्थानांतरित भीहोगा, जिससे मध्य भारत का यह क्षेत्र, कम बारिश के कारण धीरे-धीरे सूखेगा। ज्यादा क्षेत्रों में सूखे की अनियमित और चक्रवात की घटनाएं अक्सर घट रही हैं, जो जान-माल के नुकसान का कारण बनती हैं। मजबूत और गहन निम्न दाब केंद्र सामान्यत दूर वाले स्थानों में अत्यधिक बारिश का कारण बनते हैं, और जैसे-जैसे निम्न दाब केंद्र की ओर आता हैं, वर्षा की मात्रा धीरे-धीरे कम होती जाती है। इसलिए, निम्न दाब केंद्र बजाय भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिम में स्थित होने के, अगर धीरे-धीरे मध्य भारत की ओर स्थानांतरित होता है, तो पारंपरिक प से आद्र्र और घने बसे तटीय इलाके के साथ ही उत्तर के मैदानी इलाकों में केंद्र के नजदीक होने के कारण कम बारिश होगी। इस तरह की प्रवृत्ति की शुरुआत हो चुकी है। तब न सिर्फ उत्तर-पश्चिम भाग को सिंचाई के लिए बारिश का पानी कम उपलब्ध होगा, बल्कि दाब बनने की प्रक्रिया के कमजोर होने के कारण समस्त उपमहाद्वीप के शेष भू-भाग में भी कम वर्षा होगी। निश्चित रूप से शुरुआत में राजस्थान, दिल्ली ओद राज्य आशा के विपरीत, कुछ अधिक और अनियमित वर्षा ग्रहण कर सकते हैं। लेकिन कुल मिला कर बारिश की तीव्रता में स्पष्ट प से कमी आयेगी, सौभाग्यवश हम अभी वहां तक नहीं पहुंचे हैं, जहां से लौटा न जा सके। लेकिन, आज हम ऐसी जगह पर पहुंच चुके हैं, जहां से पुरानी स्थिति को हासिल कर पाना तब तक असंभव है, जब तक थार के मरुस्थल को उसके मूल स्वप में वापस न ले आयें।
कोलकाता : मानसून के बढ़ते अनियमित व्यवहार ने भारतीयों को चिंता में डाल दिया है। इसके लिए जनजातियों को दोषी ठहराया जा रहा है कि उन लोगों ने जंगलों का नाश कर दिया। और वही सूखा का कारण बन रहा है। इस समस्या का एक ही हल बताया जा रहा है वन रोपण। लेकिन जंगलों की बरबादी के ये दोनों ही कारण नहीं हैं। सूखा का मूल कारण समझने के लिए पहले तो मानसून की उत्पत्ति को समझना होगा और मानसून की क्रिया पद्धति को बनाये रखने के लिए मरुस्थल की जरत को समझना होगा। वर्षापात से जंगलों का विकास होता है, लेकिन सिर्फ जंगल पर्याप्त वर्षा करा पाने में सक्षम नहीं हैं। यहां यह स्थापित किया गया है कि भारतीय उपमहाद्वीप में मरुस्थल और मानसून हिमालय की उत्पत्ति के बाद उद्भूत हुए हैं।
भारतीय मानसून की उत्पत्ति
मानसून के बढ़ते अनियमित व्यवहार ने भारतीयों को चिंता में डाल दिया है। इसके लिए जनजातियों को दोषी ठहराया जा रहा है कि उन लोगों ने जंगलों का नाश कर दिया। और वही सूखा का कारण बन रहा है। इस समस्या का एक ही हल बताया जा रहा है वन रोपण। लेकिन जंगलों की बरबादी के ये दोनों ही कारण नहीं हैं। सूखा का मूल कारण समझने के लिए पहले तो मानसून की उत्पत्ति को समझना होगा और मानसून की क्रिया पद्धति को बनाये रखने के लिए मरुस्थल की जरत को समझना होगा। वर्षापात से जंगलों का विकास होता है, लेकिन सिर्फ जंगल पर्याप्त वर्षा करा पाने में सक्षम नहीं हैं। यहां यह स्थापित किया गया है कि भारतीय उपमहाद्वीप में मरुस्थल और मानसून हिमालय की उत्पत्ति के बाद उद्भूत हुए हैं।
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