मेजा से मिर्जापुर तक भयंकर अकाल, पशु-पक्षी, इंसान सब बेहाल
इलाहाबाद। इलाहाबाद जनपद की पूर्वी सीमा से 22 किमी. दूर अदवा बाँध को देखकर पहली ही नजर में लगता है, मानो यहाँ गहरी वीरानी छाई हुई है। बाँध से इलाहाबाद के मेजा तहसील की आखिरी सीमा तक बेलन नहर से पानी का ताँता कभी नहीं टूटता था। लेकिन इस साल बाँध का पानी नवम्बर महीने में ही सूख कर पेंदे में चिपक गया।
नहर से पानी मिलने की आखिरी उम्मीद खत्म हो चुकी है। इलाके के किसान भाई मौसम के क्रूर चाल से चारों खाने चित्त हैं। प्रदेश की समाजवादी सरकार इन सब चीजों से इत्तेफ़ाक नहीं रखती। सच बात तो यह है कि कल्याणकारी राज्य की अवधारणा से उपजी प्रजातांत्रिक व्यवस्था की छाती पर सूबे में राजतंत्र का पीपल खूब फल-फूल रहा है।
यूपी में पहले ग्राम पंचायत उसके बाद जिला पंचायत चुनाव में आला अफसरों को खुद अपना पानी (बोले तो इज़्ज़त-मर्यादा) बचाने में जाड़े के समय पसीने छूट गए। उत्तर प्रदेश से उत्तम प्रदेश (मा. मुख्यमंत्री जी का नारा) में ट्रांसफर हुए नए निजाम में आनी-पानी, खेती-किसानी सब बेमायने। इस तर्ज पर कि -कोई मरता है तो मरने दे...।
मिर्जापुर जिले में अदवा नदी को बाँधकर एक कामचलाऊ जलाशय बनाया गया है। स्थानीय भाषा में गाँव वाले इसको अदवा बन्धा कहते हैं। अदवा से थोड़ी दूर पर एक और बाँध है, सुखड़ा बन्धा। फिलवक्त पहले अदवा बन्धा की दास्तान सुनाते हैं, जिसका पानी सूखकर किसानों की आँखों से आँसू बनकर टपक रहा है।
अदवा बाँध से निकली एक नहर मिर्जापुर की लालगंज तहसील के किसानों के लिये वरदान है। वहीं अदवा बाँध से नीचे एक नाला सीधे बेलन नदी में मिल जाता है। बेलन नदी के डाउन स्ट्रीम पर बरौंधा नामक जगह पर एक वीयर बनाया गया है, यहीं से निकाली गयी है बेलन नहर।
65 किमी. लम्बी मुख्य बेलन नहर (बीएमसी) से मिर्जापुर, कोरांव व मेजा तक जुड़े सैकड़ों माइनरों से लाखों एकड़ खेतों की सिंचाई होती है। मेजा जलाशय व अदवा बन्धा का पानी भी बरौंधा वीयर से बेलन नहर में आता है। लेकिन इस साल यह सब नहरें खाली शोपीस बनी हुई हैं।
इस वर्ष कमजोर बारिश की वजह से अदवा बन्धा आधा भी नहीं भरा। खरीफ के सीजन में किसानों को मौसम के मिज़ाज का अन्दाजा नहीं लग पाया और जमकर धान की रोपाई हुई। बाद में बरसात कमजोर होती गई। सितम्बर के अन्त तक आसमान से बादल गायब हो गए। धान के खेत में पानी के लिये नहर ही एक मात्र सहारा बची। तब शुरू हुआ घनघोर संकट।
मौसम के बेरुखी से नहर विभाग के अधिकारी भी सकते में पड़ गए। पानी के लिये नहर विभाग पर किसानों का दबाव बढ़ता गया। ऐसे में नहर नहरों को निरन्तर चलाना पड़ा। परिणामस्वरूप सितम्बर के अन्त तक बन्धे का पानी समाप्त हो गया। पहले तो किसानों ने पानी के धरना-प्रदर्शन किया, लेकिन जब नहर विभाग के अधिकारियों ने डाक बंगलों पर लाल पर्ची लगाकर बन्धा में पानी न होने की सूचना चस्पा कर दिया तो किसान मायूस हो गए।
सितम्बर के आखिरी दिनों में ही किसानों के एक संगठन ने पानी के लिये कोरांव चौराहे पर चक्का जाम कर दिया। किसानों की एकजुटता और आक्रोश को देखते हुए कलक्टर इलाहाबाद ने कहा कि एक सप्ताह के भीतर वाणसागर का पानी अदवा बन्धा में गिराकर नहरें चला दी जाएँगी।
अधिकारियों के आश्वासन पर किसान मान गए, लेकिन पानी का दर्शन आज तक नहीं हुआ। बाद में पता चला कि बाणसागर का पानी अदवा बन्धा में गिराने का अधिकारियों का आश्वासन कोरा था। अदवा बन्धा अभी भी वैसे ही खाली पड़ा है।
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