सूझबूझ से लौटी रौनक

Jungle mai talab
Jungle mai talab

जंगल में एक तालाब था। तालाब में मछली, कछुआ, केकड़ा, मगरमच्छ व अन्य जीव रहते थे। तालाब हमेशा पानी से भरा रहता था। परन्तु इस बार के हालात किसी और तरफ इशारा कर रहे थे। इस बार को गर्मी को देखकर लग रहा था कि तालाब जल्द ही सूख जाएगा। वर्षा न के बराबर हुई थी और आगे भी इसके न होने के पूरे आसार थे। इस बात को लेकर मछलियां सबसे ज्यादा चिंतित थीं। उन्हें पता था कि मेंढक, कछुए मगरमच्छ आदि दूसरी जगह पर अपने लिए ठिकाना ढूंढ़ सकते थे। परन्तु वे इस तालाब को छोड़कर कहीं और नहीं जा सकती थीं।

मछलियां परेशान थीं। मौसम के मिजाज को देखते हुए उन्हें अब चिंता सताने लगी थीं। वे सोचतीं अगर मौसम का यही हाल रहा तो वे क्या करेंगी? उन्हें कोई उपाय भी नहीं सूझ रहा था। इस स्थिति से निपटने के लिए रानी मछली ने अब तालाब के अन्य सदस्यों है इस बारे में सलाह लेने की सोची। वह मेंढकों के पास गयी और अपनी चिंता उन्हें बतायी। मेंढक बोले, ‘यदि तालाब सूख जाए तो हम वापस जमीन के अंदर चले जाएंगे। हमें कोई चिंता नहीं है। समस्या तुम्हारे लिए है। इसका हल भी अब तुम ही खोजो।’

मगरमच्छों ने कहा, ‘यदि ऐसा हुआ तो हम कहीं दूसरे पानी से भरे तालाब में चले जाएंगे। हमारे लिए यह कोई बड़ी समस्या नहीं है। बाकी परेशानी तुम्हारी है। हमें बीच में मत लाओ।’ कछुआ बोला, 'हमें परेशान मत करो। अभी तालाब में पानी है। जब सूखेगा तब सोचेंगे।’

हर तरफ से मछलियों को निराशा ही हाथ लगी। कोई उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया।

दिन बीतते जा रहे थे और गर्मी बढ़ती जा रही थी। बारिश का कोई नामोनिशान न था। मुश्किल की घडियां तालाब के चारों ओर मंडराने लगी थीं। मछलियां तालाब में पानी पीने आने वाले हर जानवर को अपनी व्यथा सुनाती, लेकिन कोई भी उनकी मदद को आगे नहीं आता और न ही कोई इस समस्या से निपटने का सुझाव ही देता। पानी का स्तर काफी नीचे आ चुका था।

मछलियां और पानी के अन्य जीव तालाब के इस सिमटते पानी में अब अपनी आगे की जिंदगी तलाशने लगे थे। इस भीड़ में उन्हें अब सांस लेने में भी परेशानी हो रही थी। गिद्ध, कौए और बाज तालाब के ऊपर मंडराने लगे थे। यह स्थिति उनके लिए और भी मुश्किल पैदा कर रही थी।

कछुआ, मगरमच्छ और मेंढकों ने अपना-अपना आशियाना ढूंढ़ने के लिए तालाब से बाहर निकलना शुरू कर दिया था। रानी मछली ने उन सबको कहा, ‘साथियों, यह हम सभी के लिए मुश्किल घड़ी है। इसमें हम सबको मिलकर काम करना होगा तभी इस विकट स्थिति से निपटा जा सकता। बाकी रही दूसरी। जगह जाने की बात, तो मैं नहीं समझती कि दूसरे तालाब वाले आपको सहर्ष अपनाएंगे। साथियों, अपना घर अपना ही होता है। इसलिए मैं चाहती हूं कि आप सभी यहां रहें और मिलकर इस समस्या का समाधान खोजें।’

लेकिन सभी ने रानी मछली की बात को अनसुना कर दिया और सारे बारी-बारी से तालाब को छोड़कर निकल गये। तालाब में अब वे जीव थे, जो पानी से बाहर नहीं आ सकते थे।

ये सभी जीव रानी मछली के पास पहुंच गये। वे रानी से इस परेशानी से उबरने का उपाय तलाशने की बात कर रहे थे। रानी मछली तो इस बात से पहले ही फिक्रमन्द थी। परन्तु कहते हैं यदि कोई सच्ची लगन से किसी कार्य को करने को ठान लें तो कोई-न-कोई रास्ता जरूर निकल आता है। यही रानी मछली के साथ भी हुआ। बहुत सोचने-विचारने के बाद रानी को अपने मित्र शेखू चूहे की याद आयी। उसने शेखू को उस वक्त तालाब से सुरक्षित बाहर निकाला था, जब वह घायल अवस्था में बिल्ली से खुद को बचता-बचाता इस तालाब में गिरा था। उसने रानी से उस वक्त यह बात कही थी कि जब भी उसकी जरूरत पड़े तो याद कर लेना। इस स्थिति में शेखू से सहारे की उम्मीद की जा सकती थी और शेखू की हां मिलने के बाद ही रानी मछली के दिमाग में चलने वाली योजना हकीकत का रूप ले सकती थी। रानी मछली ने देर न करते हुए चुनमुन चिड़िया द्वारा शेखू को तालाब तक आने का सन्देशा भिजवाया। सन्देशा मिलते ही शेखू दौड़ा चला आया।

रानी ने शेखू को अपनी सारी परेशानी बतायी। दोनों ने मिलकर इस समस्या का हल निकालते हुए एक योजना बनायी। योजना में पास को नदी से पानी लाने की बात हुई। कार्य कठिन था। लेकिन शेखू के बुलंद हौसले और रानी मछली की योजना से यह कठिन कार्य आसान बन गया था।

शेखू चूहे ने रानी मछली की योजना को अमल में लाने के लिए अपने हजारों चूहों को इस कार्य में लगा दिया था। कुछ चूहे नदी से लेकर तालाब तक कुल्ह तैयार करने में लगे थे तो कुछ नदी में एक तरफ से सुराख करने में व्यस्त हो गए थे। तालाब का पानी सूखता जा रहा था और मछलियों के साथ अन्य जीवों को भी अब सांस लेने में कठिनाई हो रही थी। सारे चूहे तेजी के साथ अपना-अपना काम निपटा रहे थे। सभी चूहों की रात-दिन की कड़ी मेहनत रंग लायी। चूहों द्वारा नदी में किये गए सुराख से पानी की धारा प्रस्फुटित हुई और कुल्ह से होतीहुई सीधी तालाब में जा गिरी। तालाब पानी से लबालब भर गया। तालाब के सभी जीवों की जान में जान आ गयी। अब वे खुल कर सांस ले पा रहे थे। उनका जीवन बच गया था। रानी मछली और शेखू की योजना ने आज वह काम कर दिया था कि जब तक नदी रहेगी तब तक तालाब में पानी भरा रहेगा और तालाब के साथ जंगल के अन्य सभी जानवरों का जीवन भी सुरक्षित रहेगा। रानी मछली ने शेखू और उसके मित्रों का तहे दिल से धन्यवाद किया। आज शेखू चूहे ने अपनी सच्ची मित्रता निभायी थी।

तालाब के भरने के दूसरे दिन मगरमच्छ, कछुए, मेंढक और तालाब से गए अन्य प्राणी, मुंह लटकाये अपने तालाब की ओर आ रहे थे। उनके आते ही रानी मछली ने उनके वापस आने का कारण पूछा। उन्होंने रानी मछली की बात का जवाब नहीं दिया। बल्कि झुके सिरों के साथ रानी मछली से माफी मांगी। वे बोले, 'रानी मछली हमें माफ कर दो। हमने बुरे वक्त में अपने ही परिवार का साथ नहीं दिया। उसका फल हमें मिल गया है। और तुम्हारी बात बिल्कुल सही साबित हुई। दूसरे तालाब वालों ने हमें अपने तालाब में घुसने तक नहीं दिया और बेइज्जत करके हमें वहां से खदेड़ दिया। हमने अपनों का साथ न देकर बहुत बड़ी गलती की है। हमें माफ कर दो।’

रानी मछली बोली, ‘तुम सबको अपनी गलती का अहसास हो चुका है। यही सबसे बड़ी बात है। तुम सबके जाने से वैसे भी तालाब की रौनक चली गयी थी। आज वह रौनक वापस लौट आयी है। तुम्हारा अपने घर में फिर से स्वागत है।’

सभी ऐसी गलती दोबारा न करने का प्रण करते हुए तालाब के अन्दर दाखिल होते जा रहे थे।

सम्पर्क- सुन्दर नगर, मंडी हिमाचल प्रदेश- 175048, मो. 09438582242

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