सुंदरवन पर प्रकृति और प्रगति का प्रकोप

अभी हाल ही में यूनिसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी ताजा रिपोर्ट में भारत की पीठ ठोकी है कि उसने सुरक्षित जल तक लोगों की पहुंच बनाने के लिए 2015 के लिए रखा लक्ष्य अभी ही हासिल कर लिया है। हमारे कुओं-तालाबों का पानी पीने योग्य नहीं है। स्थानीय डाक्टरों के जरिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की पिलाई इस घुट्टी ने पहले इंडिया मार्का हैंडपंप लगवाये। उन्होंने हमारे कुओं-तालाबों को सुखाया। अब पानी और उसमें से ठोस व धातु तत्व छानने की मशीने आकर हमारे शरीरों की प्रतिरोधक क्षमता को सुखा रही हैं। जैसलमेर के जिन कुण्डों का पानी पीकर राजस्थानी लोग रेगिस्तान की लू से लोहा लेते हैं; विश्व बैंक, यूरोपीयन कमीशन व विश्व स्वास्थ्य संगठन की चले तो वे उन कुण्डों में भी आर ओ लगा दें।

जंगल की हरियाली कम हो रही है और सुंदरवन को नाम देने वाले सुंदरी (मैंग्रोव) के वृक्ष काटे जा रहे हैं। मैंग्रोव के जंगल अक्सर आने वाले तूफानों का असर कम करता रहा है लेकिन तस्करों की मेहरबानी और विकास की दौड़ में जंगल कटाई से प्रकृति को अधिक से अधिक विनाशलीला दिखाने का मौका मिल रहा है। सुंदरवन के अलावा उड़ीसा के समुद्रतटीय इलाकों में भी मैंग्रोव के जंगलों पर जमकर कुल्हाड़ी चल रही है। नतीजा यह कि तूफान से बढ़ते पानी में ज्वार नदी, बांध को आसानी से बहा ले जाता है। कभी भीषण तूफान तो कभी बढ़ते तापमान के हाथों प्रकृति सुंदरवन और वहां के लोगों के जीवन से खेल रही है। समुद्र की सतह में सिर्फ 45 सेंटीमीटर की बढ़ोतरी और सुंदरवन का अच्छा-खासा हिस्सा 'लापता' हो जाएगा। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) का अनुमान है कि अगले 50 वर्षों में समुद्र की सतह एक मीटर बढ़ सकती है और इस कारण 15-18 फीसदी सुंदरवन डूब जाएगा। सुंदरवन की पारिस्थितिकी में तेजी से आ रहे नाटकीय परिवर्तन का यह एक पक्ष है। दूसरी सूचना और भी गंभीर है। गवेषकों की एक टीम ने पिछले तीन दशकों के आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन कर पाया है कि हर 12 साल में यहां के तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो रही है।

पिछले तीन दशकों (वैज्ञानिक शोध की भाषा में एक दशक में 12 साल) में यह औसत बरकरार है। यानी इस बीच तापमान में कुल डेढ़ डिग्री की बढ़ोतरी हो चुकी है। सुंदरवन के पानी की यह तापमात्रा ग्लोबल वार्मिंग की औसत दर से आठ गुना ज्यादा है। इस परिवर्तन के शुरुआती प्रभाव दिखने लगे हैं। मछलियों की कई प्रजातियां कम होने लगी हैं। शोधकर्ताओं की टीम के प्रमुख और कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अभिजित मित्र के अनुसार, 'हिंद महासागर के तापमान को लेकर 'इंटरनेशनल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज' की प्रस्तावना है कि 1970 से 1999 तक हर दशक में तापमान में 0.2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है।' जाहिर है, सुंदरवन का तापमान हिंद महासागर के तापमान से तीन गुना अधिक तेजी से बढ़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग का कितना असर सुंदरवन पर पड़ा है, इसकी जांच के लिए यहां गवेषकों ने पानी में द्रवीभूत ऑक्सीजन की मात्रा, अम्ल-क्षार की आनुपातिक मात्रा, पानी के वजन और स्वच्छता को लेकर किए गए विभिन्न प्रयोगों के जरिए सुंदरवन के तापमान का आंकड़ा निकाला है। सुंदरवन के पूर्वी इलाके की तुलना में पश्चिमी भाग के जल में द्रवीभूत ऑक्सीजन की मात्रा अधिक है। सुंदरवन के कुल 10,230 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले जंगल में 4,200 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र पश्चिम बंगाल में पड़ता है। जंगल के इलाकों से सटे बंगाल के हिस्से के विभिन्न द्वीप 5,400 वर्ग किलोमीटर के इलाके में फैले हैं, जहां 40 लाख से अधिक लोग रहते हैं। यहां जल-थल के दो सौ से अधिक जीवों की प्रजातियां पाई जाती हैं।

मैंग्रोव के जंगल कम होने से समुद्र की सतह में बढ़ोतरी हो रही है और इस कारण सुंदरवन के विभिन्न द्वीपों का आकार तेजी से कम हो रहा है। फिलहाल तो विशेषज्ञ अभी इस बहस में ही उलझे हैं कि क्या यह जलवायु परिवर्तन के चलते हो रहा है, 'अल नीनो इफेक्ट है' या डेल्टा क्षेत्र में नदी के कटान के चलते ऐसा लग रहा है कि समुद्र की सतह में बढ़ोतरी हो रही है। वजह चाहे जो भी हो, भविष्य के लिए सुंदरवन से एक बड़ी समस्या सामने आने वाली है-विस्थापन की इस समस्या की एक झलक हम चक्रवाती तूफान ‘आएला’ के बाद देख चुके हैं। चेतावनी आई है कि अगर सुंदरवन में मैंग्रोव के वन क्षेत्र में कमी आती रही तो 2030 तक यहां के कम से कम 20 द्वीपों का अस्तित्व मिट जाएगा और कम से कम साठ हजार परिवार विस्थापित हो जाएंगे। जियोलॉजीकल सर्वे ऑफ इंडिया के वैज्ञानिक उत्पल चक्रवर्ती के अनुसार, ‘मैंग्रोव की कटाई के चलते डेल्टा क्षेत्र में मिट्टी कटान की समस्या बढ़ी है।

नाव पर जीवन बसर करने की मजबूरीनाव पर जीवन बसर करने की मजबूरीनदियों के डेल्टा क्षेत्र में मिट्टी कटान होते रहते हैं लेकिन सुंदरवन में यह कुछ ज्यादा है। ऐसे में एक किनारे अगर कटान हुआ तो किसी दूसरे द्वीप के किनारे समुद्र की सतह बढ़ सकती है।’ चक्रवर्ती के अनुसार, ‘इस विषय में विस्तृत अध्ययन की जरूरत है।’ जादवपुर विश्वविद्यालय में समुद्र विज्ञान विभाग के प्रोफेसर तुहिन घोष के अनुसार, ‘सुंदरवन में हर साल एक मिलीमीटर से चार मिलीमीटर तक का कटान हो रहा है। इस कारण समुद्र की सतह चार सेंटीमीटर की रफ्तार से बढ़ रही है। पिछले 40 साल में सुंदरवन का दो सौ वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र पानी में समा चुका है।’ सुंदरवन की पारिस्थितिकी को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जताई जा रही चिंता का व्यापक असर दिखने लगा है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के अनुसार, ‘प्राकृतिक कारणों से सुंदरवन के बांग्लादेश वाले हिस्से में विस्थापन का नमूना दिख चुका है। वहां के भोला आइसलैंड का आधा से ज्यादा हिस्सा 1995 में मिट्टी कटान के चलते डूब गया और पांच लाख लोग विस्थापित हो गए।

इस द्वीप को बांग्लादेश के हिस्से में सबसे बड़ा द्वीप माना जाता था। इसके बाद भारत के हिस्से में 1996 में लोहाचरा द्वीप का डूबना और अब साउथ तालपट्टी या न्यू मूर आइसलैंड।’ सुंदरवन के इलाकों में समुद्र की बढ़ती सतह से द्वीपों पर अस्तित्व के संकट को खाद्य संकट से भी जोड़ा जा रहा है क्योंकि सुंदरवन के रिहाइशी द्वीपों को अब तक अनाज उत्पादन की दृष्टि से ‘सोने की खदान’ माना जाता रहा है। 60-70 के दशक में सुंदरवन की लगभग 56 रिहाइशी द्वीपों पर कोलकाता के आसपास के जिलों- उत्तर 24 परगना, हुगली, मेदिनीपुर और मुर्शिदाबाद से लाकर बसाए गए 20 हजार से अधिक परिवारों को सरकार ने मुख्य रूप से चावल की खेती करने के लिए जमीनें दीं। ये धीरे-धीरे संरक्षित 54 अन्य द्वीपों की ओर भी बढ़ते गए। यादवपुर के अशीनोग्राफर सुगत हाजरा द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, पिछले 30 वर्षों में सुंदरवन इलाके की 31 वर्ग मील जमीन समुद्र में लुप्त हो गई है।

मौसम परिवर्तन के चलते पारिस्थितिकी पर यह संकट है। छह सौ परिवार विस्थापित हुए हैं। बढ़ते समुद्र और जंगल की अंधाधुंध कटाई पर अंकुश न होने के चलते यह नौबत आई है।' पर्यावरण से जुड़े ये सवाल स्थानीय लोगों की जीविका से जुड़े हैं। जंगल की हरियाली कम हो रही है और सुंदरवन को नाम देने वाले सुंदरी (मैंग्रोव) के वृक्ष काटे जा रहे हैं। मैंग्रोव के जंगल अक्सर आने वाले तूफानों का असर कम करता रहा है लेकिन तस्करों की मेहरबानी और विकास की दौड़ में जंगल कटाई से प्रकृति को अधिक से अधिक विनाशलीला दिखाने का मौका मिल रहा है। सुंदरवन के अलावा उड़ीसा के समुद्रतटीय इलाकों में भी मैंग्रोव के जंगलों पर जमकर कुल्हाड़ी चल रही है। नतीजा यह कि तूफान से बढ़ते पानी में ज्वार नदी, बांध को आसानी से बहा ले जाता है। पिछले साल के चक्रवाती तूफान ‘आएला’ और वर्ष 2004 में आई ‘सुनामी’ जैसे दो बड़े तूफानों से लगभग छह लाख हेक्टेयर वाला सुंदरवन का एक चौथाई वन प्रदेश नष्ट हो गया। कुल 3,500 किलोमीटर का क्षेत्र बांधों के टूटने से प्रभावित हुआ। इसमें 895 किलोमीटर बांध था। बंगाल के जल संसाधन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, ‘आठ लाख से ज्यादा लोग पलायन कर चुके हैं।’ पाथरप्रतिमा, हिंगलगंज, गोसामा जैसे इलाकों में तो न मिट्टी बची है और न बांस।’

मीठे पानी में बढ़ता खारापन


प्राकृतिक आपदाओं से बेहाल जीवनप्राकृतिक आपदाओं से बेहाल जीवनरिहाइशी इलाकों में खेती की जमीन खारा पानी के चलते चौपट हो रही है। इस कारण वन क्षेत्र को काटने की समस्या बढ़ी है। कोलकाता विश्वविद्यालय और अमेरिका मैसाच्युसेट्स विश्वविद्यालय के समुद्र विज्ञान विभागों से जुड़े पांच-पांच वैज्ञानिकों की टीम 1980 से ही चीख-चिल्ला रही है - 'मीठे पानी के स्रोतों में नमक का घुलना और इलाके के औसत तापमान में बढ़ोतरी भविष्य के किसी बड़े खतरे का संकेत दे रहे हैं, जिसकी तह में जाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर की गवेषणा की जरूरत है।' आशंका है कि पानी में द्रवीभूत ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा बढ़ने पर जलीय जीव-जंतुओं के अस्तित्व पर खतरा हो सकता है। इससे जीवों की प्रजनन और पाचन क्षमता कम होती जाती है। माना जा रहा है कि उष्णायन के चलते ही सुंदरवन के द्वीप कट रहे हैं। नदी के कटान के चलते हरीतिमा नष्ट हो रही है। दूसरे, मीठे पानी के स्रोतों में नमक की मात्रा बढ़ रही है।

पानी में नमक की बढ़ोतरी को लेकर जादवपुर विश्वविद्यालय के समुद्र विज्ञान विभाग ने नाबार्ड के सहयोग से शोध किया है। पाया गया है कि चक्रवाती तूफान 'आएला' के बाद यहां की नदियों के जल में नमक की मात्रा 15 पीपीटी (पार्ट पर थाउजेंड) से बढ़कर 15.8 पीपीटी हो गई है। इस शोधकार्य से जुड़े प्रणवेश सान्याल के अनुसार, 'गांवों के तालाबों में यह आंकड़ा 30 पीपीटी से अधिक है। इसका प्रभाव चिंताजनक है।' वैज्ञानिकों के अनुसार, 'नमकीन पानी में एक किस्म की जलीय काई बनती है जो ऑक्सीजन बनाती है। माना जा रहा है कि दुनिया भर में तीन-चौथाई ऑक्सीजन का निर्माण जलीय काई से होता है लेकिन सुंदरवन में पानी की स्वच्छता कम होते जाने से काई बनना बंद हो गई है। इसके चलते जंगल में प्राकृतिक खाद्य श्रृंखला प्रभावित हो रही है।

जीविका के लिए जीवन की बाजी


सुंदरवन के हर घर में मछली और केकड़ा पकड़ने में बाघ के शिकार हुए परिजनों की कहानी है। हर 48 घंटे में बाघ एक मानव का शिकार करता है। जीविका का दूसरा कोई साधन नहीं है। बेनीपहेली गांव के पालेन नैया को याद है कि कैसे उनकी पत्नी को बाघ उठा ले गया उनकी आंखों के सामने। उसने एक और केकड़ा पकड़ने का लालच किया था। वे कहते हैं, 'मछली और केकड़ा पकड़ने के लिए द्वीप से द्वीप नाव लेकर घूमने के अलावा जीविका की कोई वैकल्पिक व्यवस्था ही नहीं है। यहां के विभिन्न द्वीपों पर बाघों द्वारा मारे गए लोगों की विधवाओं की संख्या 26 हजार है। बासंती का जेलेपाड़ा गांव तो विधवाओं का ही गांव है।' इनके बारे में 1990 में पता चला, जब पत्रकारों के साथ गई पुलिस की एक गश्ती टीम ने बड़ी सी नाव में सफेद साड़ी पहने कई महिलाओं को जाते देखा था। ऐसी महिलाओं की मदद के लिए काम करने वाली संस्था 'ऐक्यतान संघ' के सचिव दिनेश दास के अनुसार, 'सरकार से इन्हें ढाई सौ रुपए की मदद मिलती है। वह भी तब जब मारे गए व्यक्ति के शव की फोटो जमा कराई जाती है। जिनके घरवालों को बाघ जंगल में खींच ले गया, उन्हें तो यह भी नसीब नहीं।'

पानी में खेलते सुंदरवन के बच्चेपानी में खेलते सुंदरवन के बच्चेजंगल की हरियाली कम हो रही है और सुंदरवन को नाम देने वाले सुंदरी के वृक्ष काटे जा रहे हैं। हेताल (एलीफैंट ग्रास) काटे जा रहे हैं, जिनके बीच रॉयल बंगाल टाइगर घर की तरह महसूस करता है। एलीफैंट ग्रास (स्थानीय बोलचाल की भाषा में होगला) के पत्ते ठीक बाघ की पीठ पर बनी धारियों की तरह होते हैं। वहां छुपना बाघ के लिए मुफीद रहता है। खेती-बाड़ी, मछली-झींगा पालन और मधु संचय के लिए जमीन चाहिए जो संरक्षित घोषित वन से छीने जा रहे हैं। आबादी का अतिक्रमण अघोषित रूप से वन क्षेत्र में हो रहा है। ऐसे में जब डेल्टा क्षेत्र में बाढ़ आती है, बाघ और बच्चे बहकर किनारे आ जाते हैं और फिर आसपास के गांवों में जा छुपते हैं।

स्थानीय लोगों द्वारा शिकार के कारण जंगल में बाघ का भोजन कम हो रहा है। हिरण और जंगली सूअर काफी कम हो गए हैं। वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 'वर्ष 2006 के बाद से बाघों के घुस आने की कुल 32 घटनाएं रिकॉर्ड की गई हैं जिनमें 30 बाघों को वापस जंगल में छोड़ दिया गया। खासकर गंगा के डेल्टा-सुंदरवन के पश्चिम बंगाल वाले हिस्से में।' बांग्लादेश का हिस्सा भी ऐसी घटनाओं से अछूता नहीं। बांग्लादेश में तो हर साल लगभग 20 लोग रॉयल बंगाल टाइगर का शिकार बनते हैं।

बांधों के लिए छह हजार एकड़ जमीन के अधिग्रहण की है योजना


लंबे अरसे के बाद प्राकृतिक तांडव से सुंदरवन को बचाने की कवायद शुरू की गई है। बांध बनाने के लिए छह हजार एकड़ जमीन के अधिग्रहण की योजना तैयार की है बंगाल सरकार ने। इसमें से 2,300 एकड़ वाममोर्चा सरकार के जमाने में अधिग्रहीत की गई थी। तृणमूल कांग्रेस की सरकार 3,800 एकड़ का अधिग्रहण करेगी। जमीन अधिग्रहण न करने की तृणमूल कांग्रेस की नीति के विपरीत पार्टी सुप्रीमो और मुख्यमंत्री ने इसके लिए हरी झंडी दी है। साफ है कि हर साल इस इलाके में आने वाले चक्रवाती तूफान से जान-माल के नुकसान की अनदेखी करना अब ठीक नहीं है। यह सत्ता-प्रतिष्ठान की समझ में आने लगा है। सुंदरवन विकास मंत्री श्यामल मंडल के अनुसार, 'पांच सौ एकड़ के लिए तो चेक भी जारी किए जा चुके हैं।'

बांधों के लिए जमीन अधिग्रहण की सरकारी कवायद समूचे मामले का एक पक्ष है। दूसरा पक्ष इसकी धीमी रफ्तार और भ्रष्टाचार से जुड़े सवालों का है। तीन साल पहले आए चक्रवाती तूफान 'आएला' के बाद पीड़ितों को राहत बांटने में राजनीतिक रंग खूब देखा गया था। नकदी धनराशि बांटने का मामला हो या फिर अनाज और कपड़े। तब विपक्ष में रही तृणमूल कांग्रेस ने इसको लेकर सवाल उठाए थे। अब जबकि प्रकृति की तांडव लीला के आगे बेबस होकर ममता बनर्जी की सरकार अपनी पार्टी लाइन से अलग जाकर अधिग्रहण के लिए हरी झंडी दे रही है, पंचायत स्तर पर जमीन के मुआवजे में भाई-भतीजावाद और बंदरबांट के दावे-प्रतिदावे हो रहे हैं। जगह-जगह जमीन के लिए विरोध की सुगबुगाहट शुरू हो गई है।

सुंदरवन का दलदली इलाकासुंदरवन का दलदली इलाकाविशेषज्ञों की राय में अनाप-शनाप तरीके से काम कराने और भ्रष्टाचार के चलते हजारों निरीह लोगों को प्रकृति के ताडंव के आगे बेसहारा छोड़ दिया जाता है। कोलकाता विश्वविद्यालय से रिटायर समुद्र विज्ञानी तुषार कांजीलाल के अनुसार, ‘राज्य में अभी इस बारे में समीक्षा नहीं की गई कि तटबंधों की स्थिति क्या है। 19 ब्लॉकों में कुल 110 द्वीप हैं, जहां बांधों की नियमित समीक्षा जरूरी थी।’ कांजीलाल के अनुसार, ‘तटबंध के आगे पानी घुसने के लिए रिंग बनाने की जरूरत होती है, जिसे कहीं नहीं बनाया गया। रिंग के ज्वार का पानी घुसता है और डेल्टा क्षेत्र में बंटी नदी की धाराओं के साथ निकल जाता है।’ लेकिन जमीनें हड़पने के खेल में सुरक्षा नियमों को ताक पर रखा जाता रहा है। यह खेल चाहे आशियाने बनाने के नाम पर हो या फिर जंगल से खेती के लिए जमीन ‘छीनने’ के नाम पर।

डेल्टा के गांवों में पावर ग्रिड का विरोध


सुंदरवन डेल्टा के गांवों में बिजली लाने के लिए नेशनल पावर ग्रिड के विस्तारीकरण का विरोध किया जा रहा है। पर्यावरणविद् और वैज्ञानिकों की राय में डेल्टा क्षेत्र की मिट्टी बेहद नरम है। बड़े-बड़े ट्रांसमिशन खंभों के निर्माण से जमीन धंसने की समस्या बढ़ेगी और इलाके में ज्वार-भाटा का शेड्यूल और दशा-दिशा भी प्रभावित होगी। पश्चिम बंगाल हरित ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड के पूर्व निदेशक एस.पी. गनचौधरी के अनुसार, 'चक्रवात प्रभावित इस इलाके में हाई-टेंशन तारों के अक्सर टूटने का खतरा बना रहेगा।' पश्चिम बंगाल सरकार डेल्टा क्षेत्र में पड़ने वाले सभी 1,076 गांवों तक बिजली पहुंचाने की योजना बना रही है लेकिन विरोधियों का तर्क है कि सुंदरवन में अभी खपत 50 केडब्ल्यूएच सालाना है जो आपूर्ति का 96 फीसदी है। सुंदरवन विकास निगम के अनुसार, 'इलाके में बिजली की मांग 2020 तक बढ़कर 20 गुनी हो जाएगी इसलिए सरकार इलाके के विद्युतीकरण की 2500 करोड़ रुपए की परियोजना पर काम कर रही है।'

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