हिमालय में स्थित हिम व हिमनद प्राकृतिक जलाशय का कार्य करते हैं। हिम व हिमनद गलन द्वारा उत्तर भारत की प्रमुख नदियों में ग्रीष्म काल में जल उपलब्ध होता है। हिम गलन से हिम आवरण में मार्च से अक्टूबर तक प्रतिवर्ष परिवर्तन होता है। हिम आवरण में परिवर्तन की जानकारी जलविज्ञानीय अनुकरण व निदर्श में सहायक है। जल अपवाह के आधार पर जल संसाधन व जल विद्युत परियोजनाओं की योजना, प्रबंधन व परिचालन होता है। जल आवरण की जानकारी 1960 के दशक से उपग्रह द्वारा उपलब्ध कराई जा रही है। वर्तमान में नई संवेदन प्रणालियों द्वारा जल आवरण की अधिक शुद्ध जानकारी प्राप्त हो रही है। इस प्रपत्र में सुदूर संवेदन तकनीक की हिम जल विज्ञान में उपयोग की समीक्षा की गई है। आंकिक प्रक्रमण का उपयोग कर गंगा के उप-बेसिन में हिम आवरण किया गया है।
दृश्य व अवरक्त तकनीक का अधिक उपयोग हुआ है। दृश्य व अवरक्त प्रकाश का हिम द्वारा अधिक परावर्तन होता है। अतःमेध के अतिरिक्त अन्य पदार्थों में हिम से स्पष्ट अंतर होता है। नवीन संवेदकों में लघु तरंग अवरक्त बैंड प्रयुक्त होता है इस बैंड में हिम द्वारा मेघ की अपेक्षा कम परावर्तन होने से मेघ व हिम में स्पष्ट अंतर परिलक्षित होता है। यह बैंड लिस-III, टीएम, मोडिस आदि संवेदकों में उपलब्ध है। निष्क्रिय माइक्रोवेव की विभिन्न तरंग लंबाई की तरंगों के ब्राइटनेस तापमान के अंतर द्वारा हिम तुल्य जल ज्ञात किया जाता है। यह माप बड़े क्षेत्र में ही संभव है।
दृश्य व अवरक्त आंकड़ों के आंकिक प्रक्रमण या दृश्य विश्लेषण द्वारा हिमआवरण मानचित्र बनाये जाते हैं। आंकिक प्रक्रमण में एनडीएसआई व वर्गीकरण आदि का प्रयोग होता है। एनडीएसआई द्वारा छाया में स्थित हिम का मानचित्रण संभव हो सका है। इस प्रकार सुदूर संवेदन द्वारा दुर्गम क्षेत्र की जानकारी वर्ष में कई बार प्राप्त की जा सकती है।
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दृश्य व अवरक्त तकनीक का अधिक उपयोग हुआ है। दृश्य व अवरक्त प्रकाश का हिम द्वारा अधिक परावर्तन होता है। अतःमेध के अतिरिक्त अन्य पदार्थों में हिम से स्पष्ट अंतर होता है। नवीन संवेदकों में लघु तरंग अवरक्त बैंड प्रयुक्त होता है इस बैंड में हिम द्वारा मेघ की अपेक्षा कम परावर्तन होने से मेघ व हिम में स्पष्ट अंतर परिलक्षित होता है। यह बैंड लिस-III, टीएम, मोडिस आदि संवेदकों में उपलब्ध है। निष्क्रिय माइक्रोवेव की विभिन्न तरंग लंबाई की तरंगों के ब्राइटनेस तापमान के अंतर द्वारा हिम तुल्य जल ज्ञात किया जाता है। यह माप बड़े क्षेत्र में ही संभव है।
दृश्य व अवरक्त आंकड़ों के आंकिक प्रक्रमण या दृश्य विश्लेषण द्वारा हिमआवरण मानचित्र बनाये जाते हैं। आंकिक प्रक्रमण में एनडीएसआई व वर्गीकरण आदि का प्रयोग होता है। एनडीएसआई द्वारा छाया में स्थित हिम का मानचित्रण संभव हो सका है। इस प्रकार सुदूर संवेदन द्वारा दुर्गम क्षेत्र की जानकारी वर्ष में कई बार प्राप्त की जा सकती है।
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