भारत के ग्रामीण क्षेत्र में भूजल तथा शहरी क्षेत्र में मुख्यतः सतही जल का उपयोग होता है। सतही जल में रासायनिक प्रदूषण की समस्या साधारणतः कम पायी जाती है, परंतु संचित सतह जल के निचली सतह में कार्बनिक, लोह तथा मैंगनीज घुलनशीलता के कारण प्रायः संपूर्ण जल प्रदूषित हो जाता है। यह समस्या जल के निचली सतह में अधिकतम होती है और ऊपरी सतह तक आते-आते कम हो जाती है। इनकी घुलनशीलता के कारण परंपरागत जल प्रक्रिया (Conventional water treatment) संयंत्र से यह समस्या दूर करना असंभव है, इसलिए वितरण प्रणाली में जलापूर्ति के समय यह तत्व, रंग एवं स्वाद तथा मलीनता (turbidity) के रूप में उभर आते हैं। इस लेख में इन समस्याओं की चर्चा कर उसके निवारण की विधि प्रस्तुत की गई है।
सार्वजनिक जल आपूर्ति में जब लोग तथा मैगनीज अधिक मात्रा में आवे तो लोगों की शिकायते आती है कि पानी की पूर्ति में गंदलापन आता है। लोह तथा मैगनीज जो साधारण परिस्थित में अघुलनशील रहते हैं, इस विशेष परिस्थिति में पानी में घुल जाते हैं और यही विशेष परिस्थिति तालाब के जल की निचली सतह में उत्पन्न होती है। इस विशेष परिस्थिति को लाने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड (Co2) कारक होती है जो निचली सतह में कार्बनिक पदार्थ के सड़न से उत्पन्न होती है। लोह तथा मैगनीज के ऑक्साइड जो अघुलनशील होते हैं वे इस विशेष परिस्थिति में कार्बोनेट तथा बायकार्बोनेट यौगिक बनाते हैं जो पानी में घुलनशील होते हैं। जब यह यौगिक जल पूर्ति में जाते हैं तो हवा की ऑक्सीकरण तथा संयंत्र के क्लोरीन में ऑक्सीजन होकर अघुलनशील रंगीन पदार्थ में परिवर्तित हो जाते हैं और इसी कारण पानी में स्वाद तथा मलीनता आ जाती है।
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