सरकार और समाज के समन्वय से सफल होगी अमृत सरोवर योजना

प्रतिकात्मक तस्वीर
प्रतिकात्मक तस्वीर

केंद्र सरकार ने 24 अप्रैल 2022 को अमृत सरोवर योजना को प्रारम्भ किया। स्वाधीनता के 75 वर्ष पूर्ण होने अर्थात अमृतकाल में प्रस्तुत इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक जनपद में 75 अमृत सरोवर का निर्माण होना था। इस सरोवर का न्यूनतम क्षेत्रफल 1 एकड़ का रखा गया, जिसकी जल धारण क्षमता कम से कम 10 हजार घनमीटर हो। इस सरोवरों की परिधि पर नीम, पीपल, बरगद जैसे पर्यावरण अनुकूल वृक्ष भी लगाए जाएं, योजना में ऐसा भी उल्लेख था। 15 अगस्त 202३ तक देश में 50 हजार तालाबों के पुनर्जीवन का यह लक्ष्य सरकारी आंकड़ों के अनुसार पूर्ण हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस महत्वकांक्षी योजना को पूर्ण हुए एक वर्ष होने वाला है, तो इसकी समीक्षा भी बनती है। प्रश्न यह है कि क्या वह लक्ष्य पूर्ण हुआ जिसके दृष्टिगत अमृत सरोवरों का निर्माण हुआ। मेरी दृष्टि में नहीं, क्योंकि कुछ विशेष सरोवरों को छोड़ दें तो अधिकांश जलविहीन हैं। आइए इसकी असफलता के कारण खोजते हैं।

सामाजिक विषय पर जन सहभागिता आवश्यक होती है अन्यथा कार्य टिकाऊ नहीं होता। किसी अगस्त 202३ तक देश में 50 हजार तालाबों के पुनर्जीवन का यह लक्ष्य सरकारी आंकड़ों के अनुसार पूर्ण हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस महत्वकांक्षी योजना को पूर्ण हुए एक वर्ष होने वाला है, तो इसकी समीक्षा भी बनती है। प्रश्न यह है कि क्या वह लक्ष्य पूर्ण हुआ जिसके दृष्टिगत अमृत सरोवरों का निर्माण हुआ। मेरी दृष्टि में नहीं, क्योंकि कुछ विशेष सरोवरों को छोड़ दें तो अधिकांश जलविहीन हैं। आइए इसकी असफलता के कारण खोजते हैं।

सामाजिक विषय पर जन सहभागिता आवश्यक होती है अन्यथा कार्य टिकाऊ नहीं होता। किसी इकाई का निर्माण कर देना अलग बात है और बाद में इसकी समुचित देखरेख करना अलग बात। इस समन्वय के अभाव में यह एक सरकारी कार्य बन कर रह गया है। तालाब वर्षा जल संचयन का सबसे बड़ा माध्यम हैं। कुछ दशक पूर्व तक के तालाबों पर दृष्टि डालें तो ये वर्षा जल से लबालब हो जाते थे। अनेक दिशाओं से वर्षा जल के तालाब तक पहुंचने के प्राकृतिक रूप से बने हुए रास्ते थे जो वर्षाकाल में सक्रिय हो जाते थे। कुछ दशकों के अनियोजित विकास कार्यों में प्रकृति की यह संरचना नष्ट हुई। अमृत सरोवर निर्माण में भी तालाब तक जल ले जाने वाले प्राकृतिक रास्तों का अध्ययन नहीं किया गया। हम तालाब का निर्माण करें और फिर उसे ट्यूबवेल से भूजल निकालकर भरें, यह हास्यास्पद है। होना तो यह चाहिए कि 

वर्षाजल खुद राह बनाए,
जाने को तालाब में।
बाधा कोई आ न जाए,
इस मिलन की राह में।
इतनी चिंता हमको करनी,
अगले वर्षाकाल में।

तालाब के पक्के निर्माण की कुछ नगरीय क्षेत्रों अथवा रेतीले स्थानों पर आवश्यकता हो सकती है, प्रत्येक स्थान पर नहीं। तालाबों को इसके मूल स्वरूप में पुनर्विकसित करने की आवश्यकता है, इससे निर्माण में होने वाला व्यय भी कम होता। 

देश में तालाबों की भूमि को अतिक्रमण मुक्त करने का कार्य व्यवहारिक रूप से अभी भी लाम्बित है। इस कार्य को प्राथमिकता एवं कड़ाई के साथ किया जाना चाहिए। तालाबों के संरक्षण के विषय में समाज अपनी भूमिका से विमुख हुआ है। परिवर्तित जीवनशैली में तालाबों को अनुपयोगी मानते हुए हजारों की संख्या में तालाब भूमि को पाटकर कृषि कार्य अथवा किसी निर्माण में उपयोग कर लिया गया। जबकि नियमानुसार यह नहीं किया जा सकता। इस कुकृत्य का दोषी कौन है, अतिक्रमणकर्ता अथवा निगरानी तंत्र ! समाचार के विभिन्न माध्यमों से प्राप्त सूचनानुसार जिलाधिकारी, रामपुर (उ.प्र.) जल भूमि अतिक्रमण को लेकर अत्यधिक सजग हैं और प्राप्त शिकायत पर प्राथमिकता से साथ कार्यवाही की जाती है। इस प्रकार की सजगता अन्य जनपदों में भी अपेक्षित है।

तालाबों में ग्राम देवता निवास करते हैं। हमारे तालाब स्वच्छ एवं जलयुक्त होंगे तो हमारा गांव रोगमुक्त तथा समृद्ध होगा। इस भाव के साथ नागरिकों को तालाबों के संरक्षण के कार्य से जोड़ना होगा तब ही अमृत सरोवर योजना अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगी। एक और बिंदु हम सभी को समझना आवश्यक है कि मैदानी क्षेत्र के उद्गम वाली नदियों के प्रवाह में इन तालाबों की बड़ी भूमिका है अतः यदि नदियों को प्रवाहमान रखना है तो तालाबों को संरक्षित करना ही होगा। अतः देश के प्रत्येक स्थान पर नागरिकों को तालाबों के संरक्षण विषय पर आगे आना चाहिए। आपके क्षेत्र में बने अमृत सरोवर में पूरे वर्ष जल कैसे बना रहे, सभी ग्रामवासी मिलकर इस पर विचार करें। इस स्थान सहित गांव के सभी तालाब हरियाली से आच्छादित हों, यह प्रयास समाज द्वारा सहज ही किया जा सकता है। लोक भारती द्वारा प्रतिवर्ष गुरु पूर्णिमा से रक्षाबंधन के मध्य मनाए जाने वाले "हरियाली माह" में आप भी अपने निकट के तालाब पर पौधारोपण कर इन्हें संरक्षित करने के कार्य से जुड़ें और अपने तालाब को एक पावन स्थल के रूप में विकसित करें।


लेखक लोक भारती के राष्ट्रीय सह-सचिव हैं।
स्रोत - लोक सम्मान, जून-जुलाई, 2024


 

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Post By: Kesar Singh
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