श्रृंगवेरपुरम का क ख ग

इलाहाबाद के पास हाल में हुई खुदाई से ई.पू. प्रथम शताब्दी में ही भारतीय जल प्रौद्योगिकी का असाधारण प्रमाण मिला है। यहां 250 मीटर लंबा तालाब मिला है। अपने आप में यह अब तक पता लगे तालाबों में सबसे बड़ा तो है ही, इसमें गंगा के पानी को भी जमा किया जाता था। उस समय के दूसरे तालाबों में वर्षा का जल जमा किया जाता था।

रामायण के मुताबिक, श्रृंगवेरपुरा से ही राम ने वनवास पर जाते हुए गंगा को पार किया था। यह स्थान ई.पू. 12 वीं शताब्दी में बसा था। श्रृंगवेरपुरा और इसके जैसे दूसरे स्थान बिलकुल नदी किनारे बसे थे। मगर आबादी बढ़ने के साथ-साथ ही नदी तट से 1 किमी. दूर घर बनाए जाने लगे। बरसात में गंगा सात-आठ मीटर ऊपर उठ जाती है और पानी पास के नालों में भर जाता है। इसलिए अतिरिक्त पानी को बहाने के लिए 11 मीटर चौड़ी और 5 मीटर गहरी नहर खोदी गई।

नहर का पानी पहले एक बड़े गड्ढे में जाता था जहां गाद जमा होती थी और अब थोड़ा साफ हुआ पानी प्रथम तालाब में जमा होता था जो ईंटों से बना होता था। केवल साफ पानी द्वितीय तालाब में जमा होता था और यहीं से जल आपूर्ति की जाती थी। तृतीय तालाब गोलाकार था। जिसमें सीढ़ियां बनी थीं। लगता है इसके किनारे कुछ मूर्तियां लगी थीं। और लोग इसमें स्नान करने के बाद पूजा करते थे। तृतीय तालाब के मलबे से त्रिनेत्र शिव और कुबेर की प्रतिमाएं मिलीं। इस तालाब के एक छोर पर बड़ा बंधारा बना था। इसमें बहाव के सात द्वार, एक श्रृंग और एक मुख्य नहर बनी थी। अतिरिक्त पानी नदी में पहुंच जाता था और एक चक्र पूरा हो जाता था। गरमी में तालाब न सूखे, इसके लिए उसमें कई कुएं खोदे गए थे ताकि भूजल लिया जा सके।

इस तालाब से संबंधित कोई शिलालेख नहीं मिला है। लेकिन लगता है कि इसे अयोध्या के राजा धनदेव ने बनवाया होगा जिसके राज्य में श्रृंगवेरपुरा था।

सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरोनमेंट की पुस्तक “बूंदों की संस्कृति” से साभार

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